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    एप्लीकेशन लेयर application layer in hindi

    विषय-सूचि

    एप्लीकेशन लेयर क्या है? (application layer in hindi)

    एप्लीकेशन लेयर ओपन सर्विस इंटरकनेक्शन यानी OSI और TCP/IP लायेरेड मॉडल का सबसे उपरी लेयर है।

    इसके महत्त्व का अंदाजा इसी बात से आप लगा सकते हैं कि ये दोनों ही layered मॉडल में उपस्थित रहता है।

    यही वो लेयर है जो सीधा यूजर या यूजर एप्लीकेशन से संवाद करता है। संचार व्यवस्था में आने वाले सभी एप्लीकेशन के लिए ये लेयर का होंना आवश्यक है।

    कोई भी यूजर एप्लीकेशन से सीधा संवाद कर भी सकता है या नही भी लेकिन एप्लीकेशन लेयर ही वो जगह है जहां यूजर असली इंटरेक्शन करता है।

    चूँकि ये लेयर स्टैक में सबसे उपर होता है, इसे किसी भी अन्य लेयर को सर्विस देने कि कभी जरूरत नही होती।

    एप्लीकेशन लेयर अपने नीचे वाले सभी लेयर जैसे कि ट्रांसपोर्ट लेयर से डाटा लेता है और सुदूर होस्ट तक इसे पहुंचाता है।

    जब संदर का एप्लीकेशन लेयर प्रोटोकॉल रिसीवर के एप्लीकेशन लेयर प्रोटोकॉल से संवाद स्थापित करता है, ये डाटा या सूचनाओं को ट्रांसपोर्ट लेयर को दे देता है।

    बांकी के काम ट्रांसपोर्ट लेयर अपने नीचे आने वाले सभी लेयर्स कि मदद से पूरा करता है।

    एप्लीकेशन लेयर के फंक्शन (function of application layer in hindi)

    एप्लीकेशन लेयर के निम्नलिखित फंक्शन हैं जो महत्वपूर्ण हैं:

    मेल सर्विसेज (mail services in application layer)

    ये लेयर ईमेल को फॉरवर्ड करने और फिर स्टोर करने के लिए आधार प्रदान करता है।

    नेटवर्क वर्चुअल टर्मिनल (network virtual terminal in application layer)

    ये यूजर को किसी दूओर के सर्वर या फिर होस्ट में लॉग-ऑन करने कि सुविधा देता है। ये दूर के होस्ट के टर्मिनल का सॉफ्टवेर एमुलेटर बनाता है।

    यूजर का कंप्यूटर उस सॉफ्टवेर टर्मिनल से बात करता है और फिर टर्मिनल होस्ट से संवाद करता है।

    ऐसा होने से होस्ट को लगता है कि वो अपने ही किसी टर्मिनल से बात कर रहा है और यूजर आसानी से लॉग-इन कर पता है।

    डायरेक्टरी सर्विसेज (directory services in application layer)

    एप्लीकेशन लेयर दुनियाभर में अलग-अलग सर्विसेज के बारे में सूचनाएं देता है।

    फाइल ट्रान्सफर, एक्सेस और मैनेजमेंट (FTAM)

    ये फाइल को एक्सेस करने और फिर उसे मैनेज करने के लिए एक अच्छा मैकेनिज्म देता है। किसी दूर के कंप्यूटर से फाइल को निकालने और फिर पढने के लिए भी एक एक स्टैण्डर्ड सिस्टम है।

    एप्लीकेशन लेयर की समस्याएँ (issues with application layer in hindi)

    प्रत्येक लेयर कि तरह इसकी भी अपनी कुछ दिक्कतें हैं जिन्हें हम नीचे लिस्ट कर रहे हैं:

    • कुछ ऐसे सामान्यतः होने वाली समस्याएं है जो जो एप्लीकेशन लेयर प्रोटोकॉल्स को डिजाईन और implement करते समय आती है और विभिन्न अलग-अलग पैटर्न लैंग्वेज द्वारा इसे ठीक किया जा सकता है।
    1. एप्लीकेशन लेवल कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल के पैटर्न लैंग्वेज से।
    2. एर्विस डिजाईन पैटर्न द्वारा।
    3. एंटरप्राइज एप्लीकेशन आर्किटेक्चर के पैटर्न से।
    4. पैटर्न ओरिएंटेड सॉफ्टवेर आर्किटेक्चर द्वारा।

    एप्लीकेशन लेयर के प्रोटोकॉल्स (application layer protocols in hindi)

    एप्लीकेशन लेयर कि कार्यप्रणाली को समझने के लिए इसके प्रोटोकॉल्स को समझना काफी जरूरी है। इन प्रोटोकॉल्स को एप्लीकेशन लेयर के केस में दो भागों में बांटा जा सकता है:

    • पहले वो जो यूजर द्वारा उपयोग किये जाते हैं। उदाहरण के तौर पर; ईमेल।
    • दूसरे वो जो यूजर द्वारा प्रयोग किये जाने वाले प्रोटोकॉल्स कि मदद करते हैं।

    अब हम एक-एक कर उन सारे प्रोटोकॉल्स के बारे में जानेंगे।

    डोमेन नेम सिस्टम (DNS protocol)

    ये क्लाइंट-सर्वर मॉडल पर काम करता है। ये ट्रांसपोर्ट लेयर कम्युनिकेशन के लिए यूडीपी का इस्तेमाल करता है। ये नामकरण के स्कीम पर आधारित hierarchical डोमेन में काम करता है।

    सबसे पहले दिएनेस सर्वर को फुल्ली क्वालिफाइड डोमेन नेम्स (FQDN) से कॉन्फ़िगर किया जाता है और फिर ईमेल पतों को उके IP पते के साथ मैप किया जाता है।

    इस तरह से दिएनेस को FQDN द्वारा रिक्वेस्ट किया जाता है और फिर ये उसके IP एड्रेस द्वारा जवाब देता है। ये यूडीपी पोर्ट 53 का प्रयोग करता है।

    हाइपर टेक्स्ट ट्रान्सफर प्रोटोकॉल (HTTP protocol in hindi)

    ये सबसे महत्वपूर्ण प्रोटोकॉल में से एक है जिसपर आज सारा इन्टरनेट आधारित है। ये वर्ल्ड वाइड वेब यानी कि www का आधार है।

    हाइपरटेक्स्ट एक काफी सुव्यवस्थित डॉक्यूमेंटेशन सिस्टम है जो कि हाइपरलिंक कि मदड्स इ टेक्स्ट डॉक्यूमेंट के सारे पेजों को एक साथ जोड़ता है।

    ये क्लाइंट-सर्वर मॉडल पर काम करता है। जब यूजर इन्टरनेट पर किसी भी HTTP पेज को एक्सेस करना चाहता है, तब क्लाइंट मशीन सर्वर से एक TCP कनेक्शन स्थापित करता है जो कि पोर्ट 80 पर आधारित होता है।

    इसके बाद सर्वर उस निवेदन को स्वीकार करता है और यूजर उस वेब पेज को एक्सेस कर पाता है।

    फाइल ट्रान्सफर प्रोटोकॉल (FTP protocol in hindi)

    ये फाइल के आदान-प्रदान के लिए सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाने वाला प्रोटोकॉल है।

    ये संचार के लिए TCP/IP का प्रयोग करता है और TCP के पोर्ट 21 का प्रयोग करता है। ये क्लाइंट-सर्वर प्रोटोकॉल पर काम करता है जहां क्लाइंट के निवेदन पर सर्वर रिसोर्सेज एक्सेस करने कि अनुमति देता है।

    ये आउट ऑफ़ बैंड controlling पर काम करता है।

    पोस्ट ऑफिस प्रोटोकॉल (POP protocol in hindi)

    ये एक सादा मैं रिट्रीवल प्रोटोकॉल है जो कि यूजर एजेंट्स (क्लाइंट ईमेल सॉफ्टवेर) द्वारा मेल को मेल सर्वर से निकालने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

    POP दो मोड पर काम करता है:

    • डिलीट मोड– इसमें ईमेल को यूजर के कंप्यूटर में डाउनलोड होने के बाद डिलीट कर दिया जाता है।
    • कीप मोड– इसमें ईमेल को सर्वर में यूजर के पास जाने के बाद भी रखा जाता है।

    सिंपल मेल ट्रान्सफर प्रोटोकॉल (SMTP protocol in hindi)

    इसका प्रयोग इलेक्ट्रॉनिक मेल को एक यूजर से दूसरे यूजर तक ट्रान्सफर करने के लिए किया जाता है। इसे यूजर द्वारा उपयोग किये जाने वाले यूजर क्लाइंट सॉफ्टवेर के द्वारा किया जाता है जिन्हें हम यूजर एजेंट्स भी कहते हैं।

    इस लेख से सम्बंधित यदि आपका कोई भी सवाल या सुझाव है, तो आप उसे नीचे कमेंट में लिख सकते हैं।

    By अनुपम कुमार सिंह

    बीआईटी मेसरा, रांची से कंप्यूटर साइंस और टेक्लॉनजी में स्नातक। गाँधी कि कर्मभूमि चम्पारण से हूँ। समसामयिकी पर कड़ी नजर और इतिहास से ख़ास लगाव। भारत के राजनितिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक इतिहास में दिलचस्पी ।

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