केंद्रीय कैबिनेट ने मंगलवार को एक उच्च स्तरीय बैठक के बाद घोषणा की कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को अपडेट करने के लिए लगभग 3,500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। यह प्रक्रिया अगले साल अप्रैल से शुरू होगी और सितंबर तक पूरी हो जाएगी।
एनपीआर पहली बार 2010 में किया गया था और बाद में 2015 में अपडेट किया गया था। 2015 में एनपीआर को आधार के साथ जोड़ा गया था। राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर देश में चल रहे पुरजोर विरोध के बीच एनपीआर अपडेट की घोषणा होने के बाद से दोनो के बीच व्यापक भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है। जिसके बाद यह लोगों के बीच जबरदस्त बहस का मुद्दा बना हुआ है।
कई लोगों ने वर्ष 2021 में होने वाली जनगणना प्रक्रिया के साथ राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को लेकर भी भ्रमित हैं। लेकिन एनपीआर किस तरह जनगणना या फिर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से भिन्न है। जानते हैं इनसे संबंधित कुछ महत्वपूर्ण सवालों के जवाब:-
क्या है एनपीआर ?
एनपीआर देश के सामान्य निवासियों का एक रजिस्टर है। इसमें नागरिकता अधिनियम, 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना) नियम, 2003 के प्रावधानों के तहत स्थानीय (गाँव / उप नगर), उपखंड, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर एकत्रित जानकारी शामिल है।
कौन है भारत का सामान्य नागरिक ?
एनपीआर के उद्देश्य से एक सामान्य निवासी को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है, कि वह एक व्यक्ति जो पिछले छह महीने या उससे अधिक समय से स्थानीय क्षेत्र में रहता है, या एक व्यक्ति जो अगले छह महीनों के लिए उस क्षेत्र में निवास करने का इरादा रखता है।
कानून अनिवार्य रूप से भारत के प्रत्येक नागरिक को पंजीकृत करने और एक राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने का प्रयास करता है। एनपीआर को अपडेट करने की प्रक्रिया को रजिस्ट्रार जनरल और पदेन जनगणना आयुक्त, भारत के संरक्षण में होगी।
एनपीआर को कब और कहां तैयार किया जाएगा ?
एनपीआर की प्रक्रिया की आयोजन केवल असम राज्य छोड़कर पूरे भारत में किया जाएगा। असम में पहले ही राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर लागू किया जा चुका है। जिस वजह से असम को एनपीआर प्रक्रिया से बाहर रखा गया है। एनपीआर के लिए राजपत्र अधिसूचना केंद्र सरकार द्वारा अगस्त में प्रकाशित की गई थी। जिसके अनुसार जानकारी एकत्र करने की प्रक्रिया को अप्रैल 2020 में शुरू किया जाएगा और सितंबर तक इसे समाप्त किया जाएगा।
एनपीआर के अंतर्गत क्या जानकारी एकत्रित की जाएगी ?
एनपीआर का उद्देश्य देश में हर सामान्य निवासी का एक व्यापक पहचान डेटाबेस तैयार करना है। डेटाबेस में यह जनसांख्यिकीय विवरण शामिल होंगे:
- नाम
- घर से मुखिया से संबंध
- पिता का नाम
- माता का नाम
- पति या पत्नी का नाम (यदि विवाहित है)
- लिंग
- जन्म तिथि
- वैवाहिक स्थिति
- जन्म स्थान
- राष्ट्रीयता (घोषित के रूप में)
- सामान्य निवास का वर्तमान पता
- वर्तमान पते पर रहने की अवधि
- स्थायी निवास पता
- व्यवसाय
- शैक्षणिक योग्यता
एनपीआर के लिए किन दस्तावेजों को पेश करना जरूरी होगा ?
एनपीआर के दौरान एक प्रतिवादी को किसी भी दस्तावेज को पेश करने की आवश्यकता नहीं होगी। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि एनपीआर की जानकारी स्व-सत्यापित होगी। जिसका मतलब है, प्रतिवादी द्वारा जो भी जानकारी प्रदान की गई होगी। उसे सही माना जाएगा और किसी दस्तावेज या बायोमेट्रिक की आवश्यकता नहीं होगी।
एनपीआर जनगणना से किस प्रकार अलग है ?
हालांकि, एनपीआर और जनगणना की प्रक्रिया एक साथ शुरू होगी। लेकिन दोनों के डेटाबेस एक समान नहीं हैं।
जनगणना भारत की जनता की विभिन्न विशेषताओं पर विभिन्न जन सांख्यिकीय जानकारी का सबसे बड़ा एकल स्रोत है। जबकि एनपीआर में केवल जनसांख्यिकीय जानकारी शामिल है। एनपीआर की तुलना में जनगणना के लिए अधिक जानकारी की आवश्यकता होती है जैसे कि जनसांख्यिकी, आर्थिक गतिविधि, साक्षरता और शिक्षा, आवास और घरेलू सुविधाओं के अलावा अन्य जानकारी।
भारत में पहली जनगणना 1872 में गैर समकालिक रूप से देश के विभिन्न भागों में शुरू की गई थी। जनगणना पिछले एक दशक में देश की प्रगति की समीक्षा करने और सरकार की चल रही योजनाओं की निगरानी करने और भविष्य की योजना बनाने का आधार है।
जनगणना जनसांख्यिकी, आर्थिक गतिविधि, साक्षरता और शिक्षा, आवास और घरेलू सुविधाओं, शहरीकरण, प्रजनन और मृत्यु दर, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति, भाषा, धर्म, प्रवास, विकलांगता के अलावा अन्य पर विस्तृत और प्रामाणिक जानकारी प्रदान करती है।
जनगणना में प्रगणक खेती करने वालों और खेतिहर मजदूरों, उनके लिंग, गैर-घरेलू उद्योग में श्रमिकों के व्यावसायिक वर्गीकरण, श्रमिक और सेक्स के वर्ग द्वारा सेवा, व्यवसाय से संबंधित डेटा भी एकत्र करते हैं। इसमें लिंग और साक्षरता कस्बों की संख्या, झुग्गी-झोपड़ी वाले घर और उनकी आबादी पर एक विस्तृत सर्वेक्षण होगा।
साथ ही ठोस, कच्चे या अन्य प्रकार के घरों में पीने योग्य पानी, ऊर्जा, सिंचाई, खेती की विधि के स्रोतों पर भी जानकारी एकत्र की जाती है।
जनगणना, 2021 दो चरणों में की जाएगी। पहले चरण में, हाउस-लिस्टिंग या हाउसिंग जनगणना का काम अप्रैल से सितंबर 2020 तक आयोजित किया जाएगा। दूसरे चरण में, जनसंख्या की गणना 9 फरवरी से 28 फरवरी, 2021 तक की जाएगी। जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बर्फ से ढके क्षेत्रों के लिए, संदर्भ तिथि 1 अक्टूबर, 2020 होगी।
एनपीआर एनआरसी के किस प्रकार अलग है?
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर भारत में रहने वाले लोगों का एक डेटाबेस है। चाहें वह भारत के नागरिक हैं या नहीं। लेकिन नेशनल रेजिस्टर ऑफ सिटीजन केवल भारतीय नागरिकों का डेटाबेस है। एनआरसी प्रक्रिया उत्तरदाताओं से नागरिकता का प्रमाण मांगती है। जो लोग प्रमाण प्रस्तुत करने में विफल होंगे। उन्हें लंबे समय में निर्वासन या निरोध का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन एनपीआर में, कोई दस्तावेज प्रदान करने की आवश्यकता नहीं है।
क्या एनपीआर की वजह से किसी की नागरिकता छिन सकती है ?
गृहमंत्री अमित शाह ने इस पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा है कि “यह संभव है कि एनपीआर में कुछ नाम छूट जाएं। फिर भी उनकी नागरिकता निरस्त नहीं की जाएगी क्योंकि यह एनआरसी की प्रक्रिया नहीं है। एनआरसी एक अलग प्रक्रिया है। मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि एनपीआर के कारण कोई भी नागरिकता नहीं खोएगा। साथ ही, उन्होंने यह भी स्पष्ट तौर पर कहा है कि एनपीआर और एनआरसी दोनों किसी प्रकास से संबंधिन नहीं हैं।
जनगणना होते हुए एनपीआर की क्या आवश्यकता ?
लेकिन सवाल यह उठता है कि कि जब सरकार के पास जनगणना के आंकड़े हैं तो फिर एनपीआर की क्या आवश्यकता है ?
इस पर अधिकारियों का कहना है कि एनपीआर डेटा वास्तविक निवासियों की जनसांख्यिकी की पहचान करने में मदद करेगा। जो क्षेत्र में शुरू की गई किसी भी योजना के प्रत्यक्ष लाभार्थी होंगे।