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    लोकसभा विधानसभा चुनाव

    भारत एक लोकतांत्रिक देश है। जहां पर जनता द्वारा अपना प्रतिनिधि चुना जाता है। देश में सरकार का कार्यकाल पांच साल का होता है। लेकिन मुख्य परेशानी यह है कि लोकसभा व विधानसभा चुनाव अलग-अलग होते है। विभिन्न राज्यों में भी एक साथ चुनाव न होकर अलग-अलग समय पर चुनाव होते है।

    लेकिन देश में अब संकेत मिल रहे है कि लोकसभा व विधानसभा चुनाव आने वाले समय में एक साथ हो सकते है। इसके सरकारों को निश्चित रूप से पांच साल तक बिना किसी बाधा व आचार संहिता के काम करने का मौका मिल सकेगा।

    साल 2018 के बजट सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा था कि देश में एक साथ चुनाव होने चाहिए। जिसके लिए राजनीतिक दलों को बातचीत करनी चाहिए और समन्वय बनाना चाहिए। लोकसभा व विधानसभा चुनावों को एक साथ करवाने के लिए समझौते का प्रयास किया जाना चाहिए।

    राष्ट्रपति से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी एक साथ चुनाव कराये जाने की बात कह चुके है। रामनाथ कोविंद ने कहा था कि देश में बार-बार चुनाव होने से न केवल मानव संसाधनों पर अतिरिक्त भार पड़ता है बल्कि आचार सहिता लागू होने के कारण देश की विकास प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है। साथ ही सरकारी अधिकारियों हर समय चुनावी प्रक्रिया में ही व्यस्त रहना पड़ता है।

    अटल बिहारी वाजपेयी व आडवाणी भी कर चुके है पैरवी

    राष्ट्रपति के भाषण के बाद से ही चर्चा तेज होने लगी है कि अगले चुनाव साथ में करवाए जा सकते है। हो सकता है कि बीजेपी का ऐसा प्रस्ताव देना चुनावी वादा हो सकता है। पीएम मोदी ने यह मांग मार्च 2016 में बीजेपी नेताओं को संबोधित करते हुए कही थी।

    मोदी ने कहा था कि केन्द्र व राज्य के चुनावों को एक साथ कराया जाना चाहिए, यहां तक कि एक ही समय में पंचायत निकायों के चुनावों को भी कराने का आग्रह किया था। लालकृष्ण आडवाणी भी पहले ही इस मांग पर विचार विमर्श करने के लिए कह चुके है।

    साल 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे मुद्दे के अनुसार पहले ही लोकसभा चुनाव करवाया था जिसमें कांग्रेस की जीत हुई थी।

    नियमित चुनाव शासन के लिए हानिकारक

    पीएम मोदी भी अब एक साथ चुनाव करवाने की मांग को जोर दे रहे है। इसके लिए पेशेवरों व विपक्षी दलों के साथ विचार-विमर्श किया जाना आवश्यक है। नियमित चुनावों को शासन और विकास के लिए हानिकारक माना गया है।

    चुनावों के समय आचार संहिता लग जाती है जिस वजह से क्षेत्र में विकास कार्य नहीं हो पाता है। इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति बनाई जानी आवश्यक है।

    इसमें साधारण परिवर्तन कार्यकारी आदेशो के जरिए किया जा सकता है। इसके लिए संविधान में संशोधन मुश्किल नहीं होगी। एक साथ चुनाव करवाने के लिए जनता का मत जानना भी अत्यन्त आवश्यक है।