चुनाव सुधार के प्रति नरेंद्र मोदी व भाजपा की महत्वाकांक्षी योजना को स्वरूप देने के लिए विधि मंत्रालय ने रिपोर्ट दी है। कानून आयोग ने अपनी आंतरिक रिपोर्ट मे कई सुझाव दिए है।
वर्तमान सरकार चुनाव सुधार के प्रति कुछ ठोस कदम उठाना चाहती है। जिनमे से प्रमुख है, लोकसभा और विधानसभा के चुनावों को एक साथ कराना। इसके तहत कानून आयोग ने दो चरणों मे चुनाव कराये जाने का सुझाव दिया है।
ऐसे मे पहला चरण 2019 व दूसरा चरण 2024 में पहले चरण मे उन राज्यो मे चुनाव होंगे, जहां 2020 मे चुनाव होने है। जैसे बिहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र आदि। तथा 2024 मे उन राज्यो मे चुनाव होंगे, जहां हाल ही मे चुनाव होने है व आगे 2023 मे है। ऐसे मे इन राज्यो के विधान सभाओ को अतिरिक्त वैद्यता प्रदान करनी पड़ेगी।
साथी उन राज्यो को एक साल पहले विधानसभा भंग करनी पड़ेगी जहां 2020 मे चुनाव होने थे। इन सुधारो को लागू कराने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ेगी।
सुधारो की आवश्यकता
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहां हर साल लोकतंत्र का जमघट कही न कही लगा ही रहता है।
ऐसे मे राजनीतिक पार्टियां अपना किरदार सिर्फ राजनैतिक अखाड़े तक ही सीमित रखती है। इन पार्टियों के सभी संसाधन चुनाव लड़ने मे ही खर्च हो जाते हैं।
चुनाव आयोग की बात ना भी करें तो स्थानीय प्रशासन लोकसभा चुनाव, विधान सभा चुनाव, पंचायत चुनाव, जिला परिषद चुनावों समेत और कई चुनावों का बोझ 5 साल के अंतर में कई बार झेलता है। ऐसे में सरकार की काम करने की शक्ति कम हो जाती है व नौकरशाहों को तथा जनता की जेब को अतिरिक्त बोझ झेलना पड़ता है।
बार-बार होने वाले इन चुनावों में होने वाले खर्च ही अथाह हैं। सुरक्षा बलों पर भी अतिरिक्त दबाव पड़ता है। साथ ही संवेदनशील जगहों पर बार-बार सुरक्षा इंतजाम करना भी मानव संसाधनों के लिए काफी खतरनाक होता है।
फायदे
एकसाथ चुनाव कराने से हमारे लोकतन्त्र को मजबूती मिलेगी। क्षेत्रीय पार्टियों का लोकसभा में मजबूती मिलेगी, व केंद्रीय पार्टियों को विधानसभा में महत्व मिलेगा। ऐसे में एक सन्तुलन स्थापित होगा।
राजनैतिक पार्टियां चुनाव जीतने व हारने के बाद जब पूरी तरह खाली होंगी तब व समाज सुधार अथवा सेवा के कार्य कर सकेंगी। अभी हमेशा चुनाव का मौसम रहता है इसलिए गन्दी बयानबाजी भी चलती रहती है।
चुनाव आयोग का रुख
चुनाव आयोग इस सुधार को स्वीकार करने के लिए तैयार है। हालांकि वर्तमान मुख्य चुनाव आयोग ने इस मामले पर थोड़ी चिंता जाहिर की है और कहा कि इस फैसले को लागू करने में समय लगेगा व गम्भीरता से विचार करने के लिए जरूरी है कि पहले इस योजना का स्वरूप तैयार हो।
राजनैतिक मतभेद
प्रधानमन्त्री इस सुधार पर काफी जोर दे रहे हैं। कई बार उन्होंने इसका उल्लेख किया है। हालांकि बाकी पार्टियां खुल कर इस कदम का विरोध नहीं कर रही हैं पर समर्थन के लिए सामने भी नहीं आ रही हैं।
यह एक एतिहासिक सुधार है और हर किसी को इसका श्रेय चाहिए। हालांकि देखना यह है कि कौन इसे प्राप्त करेगा?