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    बांदा, 11 जुलाई (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में सड़क इंटरलॉकिंग और जलभराव से निजात के लिए नगर पालिका परिषद के प्रस्ताव को जिलाधिकारी (डीएम) द्वारा यह तर्क देकर वापस करने से कि ‘सड़क पर मुर्दे तो नहीं चलेंगे’ यहां के सभासद बेहद गुस्से में हैं और उन्होंने इसे गैर जिम्मेदाराना बताया है। दरअसल, यह मामला नगर पालिका परिषद को 14वां वित्त आयोग से मिलने वाले बुनियादी अनुदान से जुड़ा है।

    पालिका ने फरवरी माह में ही सड़कों की इंटर लॉकिंग, नगर में जलभराव रोकने, ठोस कचरों का प्रबंधन और फुटपाथों पर स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था करने के प्रस्ताव अनुमोदन के लिए जिलाधिकारी को भेजे थे, लेकिन जिलाधिकारी ने बुधवार को प्रस्ताव यह कहकर वापस कर दिए कि इसमें पेयजल संकट से उबरने का प्रस्ताव शामिल नहीं है।

    पालिका ने दोबारा 137 लाख रुपये की लागत से कुओं की सफाई और पेयजल व्यवस्था के साथ प्रस्ताव भेजा। डीएम ने 137 लाख के प्रस्ताव को तो अनुमोदित कर दिया, लेकिन अन्य प्रस्तावों को वापस कर दिया। इन्हीं प्रस्तावों के अनुमोदन के लिए बुधवार को पालिका के डेढ़ दर्जन सभासदों ने डीएम के कार्यालय में जाकर उनसे अनुरोध किया।

    सभासदों द्वारा तैयार किए गए एक कथित वीडियो फुटेज में जिलाधिकारी यह कहते सुने व देखे जा रहे हैं कि ‘सरकार की प्राथमिकता क्या होती है, जिसमें जनता का हित निहित हो। अगर हम पानी नहीं दे पाएंगे तो हम आपको सड़क देकर क्या करेंगे, जब आप जिंदा ही नहीं रहोगे, सड़क पर मुर्दा तो चलेंगे नहीं।’

    नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष मोहन साहू ने संवाददाताओं से कहा, “जिलाधिकारीका मुर्दा वाला तर्क गैर जिम्मेदाराना है, नगर में बारिश का पानी जगह-जगह भरा हुआ है। प्रस्ताव अनुमोदित न होने पर जनता सभासदों से कई तरह के सवाल कर रही है।”

    उन्होंने कहा कि डीएम के इस तर्क से सभासद और जनता बेहद गुस्से में है।

    उधर, जिलाधिकारी हीरालाल का कहना है कि वह तो तर्क देकर पेयजल संकट दूर करने में प्रशासन का सहयोग करने के लिए सभासदों को समझा रहे थे।

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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