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    उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव

    उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में गोरखपुर नगर निगम चुनाव को लेकर सभी पार्टियों ने अपना मोर्चा सँभाल लिया है। गोरखपुर उत्तर प्रदेश की सियासत में अहम स्थान रखता है। गोरखपुर से उत्तर प्रदेश राजनीति की असली पहचान होती है क्योंकि यहाँ की राजनीति समीकरण चौतरफा होता है। हालाँकि पिछले 5-6 वर्षों में यहाँ की राजनीति ने एक नया रंग ले लिया है। हिंदुत्ववादी छवि वाले भाजपाई दिग्गज और उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का राज जब से गोरखपुर में शुरू हुआ है केवल गोरखपुर ही नहीं अपितु पूरा पूर्वांचल भगवामय हो गया है।

    गोरखपुर की राजनीति में धर्म और जाति दोनों फार्मूले कारगर साबित होते आए है। सपा, बसपा और भाजपा यह तीन पार्टियां शुरूआती दौर से ही इस क्षेत्र पर अपना दारोमदार साबित करती आई है। इसके पहले गोरखपुर विधानसभा सीट बसपा और बीजेपी की झोली में रूहति थी लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव ने उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण को उलट-पलट कर रख दिया। गोरखपुर की 9 विधानसभा सीटों में से 8 पर भाजपा ने कब्जा जमाया वहीं एक सीट बसपा की झोली में गई।

    2017 विधानसभा चुनाव के नतीजे को भाजपा मोदी लहर के नजरिए से देख रही है पर गोरखपुर का राजनीतिक विश्लेषण कुछ और ही कहानी बयाँ करता है। बीजेपी की एकतरफा जीत ने गोरखपुर ही नहीं पूरे उत्तर प्रदेश का राजनीतिक नजरिया बदल दिया है। 2012 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा गोरखपुर से मात्र 3 सीटें जीत पाई थी।

    गोरखपुर निकाय चुनाव में सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपना दमखम दिखाना शुरू कर दिया है। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को काम पर लगा दिया है। लेकिन इस बार क्षेत्रीय पार्टियों ने भी निकाय चुनाव में अपना दबदबा कायम करने के लिए जोर आजमाइश शुरू कर दिया है। गोरखपुर में बीजेपी ने अपने मेयर के पद के लिए सीताराम जायसवाल को नामांकित किया है। खबरों की मानें तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पसंदीदा उम्मीदवार को टिकट ना देकर बीजेपी ने सीताराम जायसवाल को चुना है।

    इस निकाय चुनाव में सभी पार्टियां भाजपा को एक साथ घेरने की कोशिश करेंगी। भाजपा की ओर से चुनाव प्रचार के लिए केवल योगी का चेहरा जनता के सामने है। अब योगी अपने आप को साबित करने में लगे है। उन्होंने चुनावी जिम्मा स्वीकारते हुए चुनाव प्रचार की बागडोर सँभाल ली है।

    गोरखपुर का क्षेत्रफल 141 वर्ग किलोमीटर है और यहाँ की कुल आबादी 6,73,446 है। यहाँ 90% लोग हिंदी शब्द का उपयोग करते है और यहाँ का लिंग अनुपात 944 है। गोरखपुर में साक्षरता 73.25% है। गोरखपुर की कुल जनसंख्या की 80.22% आबादी गाँवों में निवास करती है और 19.78% आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास करती है। गोरखपुर में हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग रहते है। हिन्दुओं में ब्राह्मण, कायस्थ, यादव, राजपूत, मारवाड़ी, और वैश्य वर्ग शामिल है जो राजनीतिकरण के आधार पर बँटे हुए है।

    गोरखपुर के बड़े शहरी इलाकों में निषादों की संख्या ज्यादा होने कारण चुनावी मुद्दों पर ज्यादा जोर देना होता है। माना यह जा रहा है कि योगी ने अपना लक्ष्य शहरी इलाकों के बजाय ग्रामीण क्षेत्रों पर दिया है। जानकारों का मानना है कि शहरी क्षेत्र के लोगों में समझने की परख होती है वह पार्टी के आधार पर अपना मतदान करते है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में जातिगत राजनीति का माहौल देखा जाता है।

    दलित राजनीति के अग्रदूत कांशीराम ने एक वाक्य कहा था, “जिसकी जितनी संख्या भरी, उसकी उतनी भागीदारी।” आज सिर्फ वैसी ही राजनीति देखने को मिल रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में गोरखपुर से भाजपा के योगी आदित्यनाथ 5,39,127 वोट पाकर जीते थे वहीं दूसरे नंबर पर रही सपा की राजमती निषाद को 2,26,344 वोट मिले थे। तीसरे नंबर पर रहे बसपा के राम भुआल निषाद को 1,76,412 वोट मिले थे। इनके वोटों में पार्टी का भी योगदान रहा होगा लेकिन टिकट किस आधार पर मिला होगा यह सभी जानते है।

    योगी के लिए गोरखपुर जीतना इस बार उतना आसान नहीं होगा जितना आसान नजर आ रहा है। जानकारों के मुताबिक योगी केवल एक ही मुद्दे को अपनाते है किसी चुनाव प्रचार में वह हिंदुत्व के मुद्दे को अपने आप से दूर नहीं रखना चाहते है। लेकिन इस बार योगी को घेरने के लिए विपक्ष के पास बहुत मुद्दे है। लेकिन अब देखने की बात यह होगी कि योगी अपनी पार्टी की जीत की हैट्रिक लगवाते है या नहीं।

    योगी के रथ को उनकी ही पार्टी के कुछ लोग रोकने पर लगे है। यह वह लोग है जिन्हे पार्टी ने टिकट नहीं दिए है अब वह अपना बागी तेवर दिखाने में लगे है। यह योगी आदित्यनाथ के सियासी भविष्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। योगी अपने संकल्प पत्र के जरिये जनता को अपने मुद्दे गिनाने में लगे है क्योंकि वह इस निकाय चुनाव को व्यक्तिगत प्रतिष्ठा के आधार पर देख रहे है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने सरकार में हुए विकास के सहारे चुनावी बिगुल फूँक रहे है।