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    उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव

    आगरा निकाय चुनाव बेहद ही खास बना हुआ है। विधानसभा चुनावों की तरह भाजपा निकाय चुनावों में भी अपना परचम फहराना चाहती है। यही कारण है कि बीजेपी को प्रत्याशी तय करने में काफी देर हो रही है। आगरा में कुल 100 वार्ड है। आगरा के वर्तमान मेयर इंद्रजीत बाल्मीकि है जो एक भाजपा नेता है। निकाय चुनावों के लिहाज से आगरा को भाजपा का मजबूत गढ़ माना जाता है और इसका सबसे बड़ा कारण है आगरा की हिन्दू बाहुल्य आबादी।

    आगरा निकाय चुनाव में भाजपा छठी बार जीत दर्ज करवाने की कोशिश में जुटी हुई है। इसके पहले आगरा निकाय चुनाव में भाजपा लगातार पांच बार जीत दर्ज कर चुकी है। पारम्परिक सीट होने के कारण भाजपा आगरा में अपनी जीत का सिलसिला बरकरार रखना चाहती है। 2017 के निकाय चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के चुनावी मैदान में उतरने से भाजपा को अपनी दावेदारी मजबूत बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है। अगर आगरा का चुनावी समीकरण दूसरे चुनाव की अपेक्षा देखा जाए तो सभी पार्टियां एक ही इकाई में नजर आती है। आगरा जिले के अंतर्गत 9 विधानसभा क्षेत्र आते है। इनमे आगरा छावनी, आगरा उत्तरी, आगरा दक्षिणी, आगरा ग्रामीण, बाह, एत्मादपुर, फतेहपुर, फतेहाबाद और खेरागढ़ शामिल है।

    आगरा छावनी पर पिछले तीन बार से विधानसभा चुनाव में बसपा का दबदबा कायम है। आगरा उत्तरी से बीजेपी ने 2002 से अपनी हुकूमत बनाई हुई है। वहीं आगरा ग्रामीण में बसपा ने अपना कब्जा जमाया हुआ है। वहीं आगरा दक्षिणी सीट को बीजेपी का गढ़ माना जाता है। ये बात अलग है कि 2007 के चुनाव में बसपा ने ये सारी सीटें हथिया ली थी, लेकिन 2012 के चुनाव में भाजपा ने इनमे से कुछ सीटों पर वापस अपना कब्जा जमा लिया।

    बाह विधानसभा सीट पर इस समय सपा का अधिकार है, इस सीट पर समाजवादी पार्टी के विधायक राजा महेंद्र अरिदमन सिंह विधायक है। इससे पूर्व वह भाजपा और जनता दल के टिकट पर भी इस सीट पर विधायक रह चुके है। एत्मादपुर की कुर्सी पर पिछले 10 सालों से बहुजन समाज पार्टी का कब्जा है। अगर फतेहपुर की बात की जाए तो यहाँ पिछले तीन बार से तीन पार्टियों को जनादेश मिला है। पूरा मिलकर देखा जाए तो आगरा का चुनावी समीकरण पार्टी स्तर पर नहीं बल्कि प्रत्याशी पर निर्भर करता है। यहाँ के लोग प्रत्याशी को मद्देनजर रखते हुए अपना मत देते है।

    बीजेपी के लिए आगरा निकाय चुनाव इस बार किसी परीक्षा से कम नहीं है। इसके मुख्य कारणों में से एक है बहुजन समाजवादी पार्टी का निकाय चुनाव में दावेदारी करना। विधानसभा चुनाव में बसपा का प्रभाव आगरा क्षेत्र में कितना है यह सबको मालूम है। शहरी क्षेत्रों से लेकर ग्रामीण इलाको में भी इस पार्टी का दबदबा रहा है। लेकिन बहुजन समजवादी पार्टी के निकाय चुनाव में आने से भाजपा का चुनवी समीकरण बिगड़ सकता है। इसको देखते हुए भाजपा ने नवीन जैन को आगरा से अपना मेयर प्रत्याशी घोषित किया है। उनके सामने कांग्रेस के विनोद बंसल की चुनौती होगी। सपा ने युवा नेता और ब्राह्मण चेहरे राहुल चतुर्वेदी पर दांव खेला हैं। बसपा ने दिगंबर सिंह धाकरे को अपना मेयर प्रत्याशी घोषित किया है।

    बीजेपी आगरा में योगी और मोदी सरकार की उपलब्धियां गिनाने में लगी है वहीं दूसरी पार्टियां भाजपा को घेरने की फिराक में है। भाजपा के कुछ नेता पार्टी की छवि खराब करने में लगे है। कुछ सप्ताह पहले भाजपा के एक नेता ने ताजमहल को लेकर विवादित बयान दिया था कि ताजमहल हमारा इतिहास नहीं है और ना ही धरोहर है। इस पर उत्तर प्रदेश की सियासत गरमा गई थी। लेकिन कुछ जानकारों का मानना है कि संगीत सोम के उस विवादित बयान का असर निकाय चुनाव में देखने को मिल सकता है।

    आपको बता दें कि आगरा की कुल जनसंख्या 15,85,704 है। आगरा की साक्षरता दर 69.44% है और लिंग अनुपात 859 है। आगरा का क्षेत्रफल 188 वर्ग किलोमीटर है। निकाय चुनाव में बीजेपी को अपनी जीत का सिलसिला बरकरार रखने के लिए हिंदुत्व और राम मंदिर जैसे शब्दों का उल्लेख करना पड़ेगा जैसा वह पिछले पांच चुनावों से करती आई है। भारतीय जनता पार्टी ने निकाय चुनाव की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंपी है। लेकिन जानकारों का कहना है कि पार्टी इस निकाय चुनाव में बीजेपी अपनी संकल्प पत्र के जरिये चुनाव लड़ना चाहती है। वैसे देखा जाये तो अब भाजपा को अपने पुराने एजेंडे पर ही कायम रहना होगा।

    बीजेपी अगर आगरा में जीतने की दावेदारी कर रही है तो इसका सबसे बड़ा कारण आगरा में हिन्दुओं की जनसंख्या। आगरा में 88% हिन्दू है वहीं 9.14% मुस्लिम है। पिछले पांच बार से निकाय चुनाव में भाजपा को मिल रही सफलता की यह भी बड़ी वजह रही है। आगरा निकाय चुनाव उत्तर प्रदेश की सत्ताधारी योगी सरकार के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है और अब देखना है कि वह इससे कैसे पार पाती है।