लखनऊ, 17 जुलाई (आईएएनएस)| बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती व समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव का संकल्प उत्तर प्रदेश के 12 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में बड़ी संख्या में सीटें जीतकर राज्य की राजनीति में फिर से आधार को मजबूत करने का है, लेकिन यह योजना वास्तव में फलीभूत होते नहीं दिख रही है।
दोनों नेता वर्तमान में सीबीआई की पूछताछ में सख्ती का सामना कर रहे हैं और संभावना है कि इन्हें अपनी-अपनी पार्टी के लिए प्रचार करने से ज्यादा समय जांच एजेंसियों की पूछताछ से निपटने में लगाना होगा।
सीबीआई दो घोटालों के मामलों में अपना शिकंजा कसने जा रही है। इसमें राज्य सरकार के स्वामित्व वाली 21 चीनी मिलों की बिक्री के साथ-साथ मायावती के शासनकाल का स्मारक घोटाला व करोड़ों रुपये का खनन घोटाला शामिल है, जिसमें अखिलेश यादव के पास खनन पोर्टफोलियो रहने के दौरान खनन पट्टों की दी गई मंजूरी शामिल है। खनन विभाग बाद में गायत्री प्रसाद प्रजापति को दे दिया गया था।
सीबीआई सूत्रों का दावा है कि सभी मामलों में दोनों नेताओं को जल्द पूछताछ के लिए सम्मन जारी किए जाएंगे।
छह नौकरशाहों के यहां पहले ही छापेमारी की जा चुकी है। ये नौकरशाह खननपट्टों के बंटवारे में मददगार रहे।
आईएएस अधिकारी अभय कुमार सिंह के यहां छापेमारी में अन्य कीमती सामानों के अलावा 49 लाख रुपये नकद मिले।
सूत्रों के अनुसार, प्रजापति के खनन मंत्री नियुक्त किए जाने से पहले, तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मार्च 2012 से जुलाई 2013 तक विभाग के मंत्री थे। उन्होंने खनन पट्टों से जुड़ी फाइलों को मंजूरी दी थी।
सीबीआई नियमों के किसी तरह के उल्लंघन को लेकर इन फाइलों की ऑडिटिंग कर रही है। प्र्वतन निदेशालय की एक टीम ने मंगलवार को गायत्री प्रसाद प्रजापति से छह घंटों तक पूछताछ की। उनके बेटों से भी मामले में पूछताछ की गई है।
गायत्री प्रजापति मामले में सीबीआई ने ई-टेंडरिंग के नियमों का उल्लंघन पाया है और तत्कालीन खनन सचिव व फतेहपुर, बांदा, देवरिया, प्रयागराज, कौशांबी, गाजीपुर व दर्जनभर दूसरे जिलों के जिलाधिकारियों ने फाइलों पर हस्ताक्षर किए हैं।
मुख्यमंत्री के तौर पर अखिलेश यादव ने विभाग में घोटाले को नजरअंदाज किया, जो सैकड़ों करोड़ का है।
मायावती के मामले में सीबीआई सख्त रुख अख्तियार कर पूछताछ करने जा रही है।
सेवानिवृत्त आईएएस नेतराम ने चीनी मिलों की बिक्री में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इसकी वजह से सरकारी खजाने को 1,170 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। नेतराम के यहां पहले ही छापेमारी हो चुकी है और सीबीआई दो बार पूछताछ कर चुकी है। ईडी भी जांच में शामिल रही है।
नेतराम, मायावती के कार्यकाल में सचिवालय के वरिष्ठ अधिकारी के तौर पर रहे हैं।
स्मारक घोटाले में सीबीआई ने 39 अधिकारियों की सूची बनाई है, जो निर्माण की लागत को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने के लिए जिम्मेदार हैं। इसमें सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी रामबोध आर्य, उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम के पूर्व सीएमडी सी.पी.सिंह व कई अन्य इंजीनियर व टेक्नोक्रेट शामिल हैं।