मानवाधिकार निगरानी समिति ने उत्तर कोरिया में महिलाओं की दयनीय स्थिति का वर्णन एक रिपोर्ट को जारी करके बताया है। ख़बरों के मुताबिक उत्तर कोरिया के अधिकारियों ने कबूल किया कि उनके देश में महिलाओं का यौन शोषण करने पर कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं होती है।
मानवधिकार की 98 पन्नो की रिपोर्ट में उत्तर कोरिया से भागे 106 उत्तर कोरियाई नागरिक, उत्तर कोरिया की 72 महिलाओं, चार बच्चियों और तीस पुरुषों के बयानों पर आधारित है। इस रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि उत्तर कोरिया में महिलाओं के साथ उत्पीड़न के जुर्म में कोई सज़ा नहीं दी जाती है।
रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर कोरिया में महिलाओं के साथ हिंसा और यौन उत्पीड़न एक सामान्य बात है और वह लोगों ने इसे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बना रखा है।
निगरानी समिति के निदेशक ने बताया कि उस देश में यौन हिंसा एक खुला, गैरजवाबदेही और बर्दास्त करने वाला मुद्दा है। उन्होंने कहा कि उत्तर कोरिया की महिलाओं को न्याय के लिए ‘मी टू’ अभियान की मुहीम शुरू करनी चाहिए। हालांकि उनकी आवाज़े तानाशाही किम जोंग के समक्ष खामोश हो जाती है।
उन्होंने बताया कि इतने इंटरव्यू में मात्र एक महिला ने पुलिस में शिकायत करने की कोशिश की थी। किसी अन्य पीड़िता ने इसके खिलाफ आवाज़ उठाने की कोशिश नहीं कि क्योंकि उत्तर कोरिया की पुलिस परा रत्ती भर भी यकीन नहीं है। और न ही विश्वास है कि पुलिस इसके खिलाफ कार्रवाई करने की इच्छा रखती है।
उत्तर कोरिया के मेडिकल विशेषज्ञ ने बताया कि वहां यौन उत्पीड़न के पीड़ितों के लिए मेडिकल इलाज का कोई प्रोटोकॉल नहीं है और न ही पीड़िता का जांच करने का कोई उपकरण मौजूद है। उत्तर कोरिया की पूर्व पुलिस अधिकारी ने खुद को इस घृणित कृत्य का पीड़ित बताया और दावा किया कि वहां 90 फीसदी महिलाए यौन उत्पीड़न का शिकार हुई है।
पियोंयांग में मानव तस्करी, दुष्कर्म और अप्राकृतिक संबंधों के खिलाफ कानून है। लेकिन उत्तर कोरिया में बमुश्किल ही दुष्कर्म के खिलाफ कोई शिकायत दर्ज की जाती है। उत्तर कोरिया में साल 2008 में नौ, साल में सात और साल 2015 में पांच व्यक्तियों ने महिलाओं पर हिंसा का आपराध कबूला है।