गुजरात में सियासी जंग के पहले दौर के बाद अब दूसरे दौर के लिए राजनीतिक दलों ने अपनी कमर कस ली है। पार्टियां अब मध्य गुजरात और उतर गुजरात के लिए चुनाव प्रचार में सक्रियता बरत रही है। इन दोनों क्षेत्रों में से उतर गुजरात भारतीय जनता पार्टी का मजबूत गढ़ माना जाता है। बीजेपी पिछले दो दशकों से उतर गुजरात के जरिये सत्ता पर विराजमान होती रही है। लेकिन इस बार उतर गुजरात को जीतना भाजपा के लिए आसान नहीं लग रहा है। ऐसे में बीजेपी के सामने अपने मजबूत किले को बचाने की बड़ी चुनौती है।
बता दें कि उतर गुजरात में बीजेपी का दबदबा रहा है, पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को इस क्षेत्र से 53 सीटों में से 32 सीटों पर जीत मिली थी वही कांग्रेस के खाते में 21 सीटें आई थी। लेकिन इन पांच सालो में बदले गुजरात चुनाव के समीकरण से यह स्पष्ट हो गया है कि इस बार उतर गुजरात में बराबर का मुकाबला है। दोनों पार्टियों ने उतर गुजरात से अपनी जीत को स्पष्ट कर दिया है।
उत्तरी गुजरात के जिले
उत्तरी गुजरात में गांधीनगर, बनासकांठा, साबरकांथा, अरवली, मेहसाना और पाटन जिले आते हैं। माना जा रहा है कि इस बार गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस कड़ी टक्कर देने की स्थिति में है। देखा जाये तो उत्तर गुजरात का चुनावी समीकरण इस बार कुछ अलग दिख रहा है। क्योकिं इसी क्षेत्र से हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर भी आते है, जो बीजेपी के विरोध में चुनाव प्रचार कर रहे है।
किसे मिली कितनी सीटें
अगर देखा जाये तो पिछले विधानसभा चुनाव में उत्तर गुजरात की बनासकांठा जिले की 9 विधानसभा सीटों में बीजेपी ने 4 और कांग्रेस के कब्जे में 5 सीटें हैं। पाटन जिले की 4 सीटों में से 3 पर बीजेपी और 1 पर कांग्रेस का कब्जा है। मेहसाणा जिले में 7 विधानसभा सीटें है इनमे से 5 पर बीजेपी ने कब्ज़ा जमाया है और 1 सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। गुजरात के उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल मेहसाणा से ही विधायक है और दोबारा से चुनाव मैदान में है। वहीं साबरकांठा जिले की 4 सीटों में से 3 कांग्रेस और 1 बीजेपी के पास है। जबकि अहमदाबाद से सटे गांधीनगर की पांच विधानसभा सीटों में से 2 बीजेपी के पास है तो 3 पर कांग्रेस का कब्ज़ा है।
2012 चुनाव में वोट शेयर को देखें तो कांग्रेस से बीजेपी करीब 10 फीसदी आगे थी। शंकर सिंह वघेला इसी क्षेत्र से आते हैं। वघेला कांग्रेस से बगावत करके चुनावी मैदान में है। वाघेला फैक्टर कांग्रेस के लिए नुकसान साबित हो सकता है। लेकिन अगर शंकर सिंह वाघेला फैक्टर काम नहीं करता है तो कांग्रेस और बीजेपी के बीच अंतर और कम हो सकता है। उत्तर गुजरात की सीमाएं राजस्थान से सटी हुई है, इसी कारण कांग्रेस ने राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को गुजरात चुनाव प्रभारी के रूप में पेश इन क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत बनायीं है।
उत्तर गुजरात के सियासी फैसले में किसानों, पाटीदारों, ओबीसी और आदिवासियों की अहम भूमिका रहती है। पाटीदारों और किसानो पर अच्छी पकड़ के कारण बीजेपी गुजरात की सत्ता पर अपने आप को कायम करती आ रही है। बता दें कि पाटीदार आंदोलन का असर इसी क्षेत्र में ज्यादा रहा है। इसी को देखते हुए जानकारों का कहना है कि उत्तर गुजरात में बीजेपी की पकड़ ढीली हुई है। अब देखना है कि भारतीय जनता पार्टी अपने किले को कैसे बचाती है।