उज्ज्वला योजना (PMUY): एक ऐसी स्कीम जिसे वर्तमान भारतीय जनता पार्टी के सरकार में प्रधानमंत्री से लेकर एक अदना कार्यकर्ता तक बड़े ही जोश-ओ-खरोश के साथ अपनी उपलब्धियों में गिनवाता है…
उज्ज्वला योजना एक ऐसी योजना जिसे मेरी तरह हजारों लोग बतौर देश का नागरिक प्रधानमंत्री मोदी की सबसे अच्छी स्कीम बताते हैं- खासकर वे लोग जो ग्रामीण क्षेत्रो से आते होंगे और अपने घर की माताओं, बहनों व अन्य महिलाओं को चूल्हा फूँकते और लकड़ियों पर खाना बनाने के दौरान उठने वाले काले धुएं से जूझते हुए देखा है…
एक ऐसी योजना जिस से भारत दुनिया के बड़े बड़े पर्यावरण मंचों पर कार्बन फुटप्रिंट कम करने के लिए उठाया गया बड़ा कदम बताता है…
यह तमाम गुणवत्ता से लबरेज प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना को लेकर किये जाने वाले सरकारी दावे उंस समय हवा हवाई लगने लगे जब संसद के राज्यसभा में गैस कनेक्शन के रिफिलिंग के आँकड़े बताए।
आंकड़ों के आईने में आईने में उज्ज्वला योजना (PMUY)
केन्द्र सरकार के तरफ से पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने सदन में एक प्रश्न के लिखित जवाब में बताया कि उज्ज्वला योजना के तहत वितरित कुल 9 करोड़ से अधिक लाभार्थियों में से पिछले पाँच सालों में 4.13 करोड़ लाभार्थियों ने एक बार भी रसोई गैस सिलेंडर को रिफिल नहीं करवाया है।
The number of Ujjwala beneficiaries have gone up from 3.5 crore in 2017-18 to around 9 crore in 2021-22! pic.twitter.com/wBFGJaf1lz
— Rameswar Teli (@Rameswar_Teli) August 4, 2022
मंत्री महोदय ने बताया कि वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान कुल 30.53 करोड़ घरेलू LPG ग्राहकों में से 2.11 करोड़ ग्राहकों ने कोई सिलेंडर रिफिल नहीं करवाया है जबकि 2.91 करोड़ घरेलू LPG ग्राहकों ने केवल एक बार सिलेंडर रिफिल करवाये हैं।
2016 में शुरू हुई प्रधानमंत्री उज्जवला योजना का एक पक्ष यह भी है कि सरकार अब घरेलू गैस सिलेंडर पर सब्सिडी सिर्फ इसी योजना के तहत लिए गए गैस सिलेंडर पर देती है जो 200₹/- प्रति सिलेंडर है। यह सब्सिडी साल में अधिकतम 12 सिलेंडरों पर ही मिलेगी, उस से ज्यादा पर नहीं।
इस योजना के बाहर अगर किसी ग्राहक ने सिलेंडर का कनेक्शन लिया है तो वह सब्सिडी का पात्र नहीं माना जायेगा। जाहिर है कि चूंकि उज्जवला योजना के अंदर लगभग 45% लोग ऐसे हैं जिन्होंने एक भी बार सिलेंडर रिफिल नही करवाये हैं तो सब्सिडी के पैसे सरकार के खाते में ही रह जा रहे होंगे।
महंगाई का शिकार PMUY
उज्ज्वला योजना मुझे निजी तौर पर मोदी सरकार की सबसे ज्यादा तारीफ लायक योजना लगती है। ग्रामीण इलाकों की महिलाएं चूल्हे पर लकड़ी, गोइठा या उपला (Cow Dung cake) आदि को जलावन के तौर पर खाना पकाने के लिए इस्तेमाल करती हैं।
इस से उन महिलाओं को श्वसन, हृदय, फेफड़ा, आँख और मस्तिष्क की तमाम समस्याओं का शिकार होना पड़ता है। विश्व की अनीमिया कैपिटल की ये ग्रामीण महिलाओं के पास स्वास्थ सुविधाओं का क्या स्तर उपलब्ध है, यह कोई रहस्य नहीं है। ऐसे में यह उनके सम्पूर्ण जीवन चक्र को प्रभावित करता है।
साथ ही खाना पकाने के यह तरीका प्रदूषण के मानकों के लिए भी सही नहीं है। हवा की शुद्धता के प्रभावित होने से न सिर्फ यह महिलाएं बल्कि घर के अन्य सदस्य भी तमाम तरह के स्वास्थ समस्याओं से दो-चार होते रहते हैं।
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) के तहत इन महिलाओं को सरकार द्वारा निःशुल्क गैस कनेक्शन उपलब्ध कराना एक बड़ा कदम था और इसीलिए इस योजना के मंसूबो की जितनी तारीफ की जाए वह कम है। लेकिन सरकार द्वारा सदन के पटल पर जो हालिया आँकड़े पेश किए गए हैं, वह इस योजना के वास्तविक हक़ीक़त को राजनीतिक दावे से कोसों दूर दर्शाती हैं।
दरअसल भले ही बीजेपी सांसद जयंत सिन्हा को महंगाई नहीं दिखाई देती हो लेकिन RBI के आंकड़ों से लेकर CMIE के रिपोर्ट्स ने महँगाई की समस्या को माना है। इसे लेकर सरकार ने भी कुछ कदम उठाये हैं लेकिन तब तक शायद ऐसी योजनाओं के लक्ष्य-पूर्ति के लिहाज से देरी हो चुकी थी।
भारत का जीडीपी विकास दर 2017-18 से ही नीचे जा रहा था जिसमें ताबूत की आखिरी कील के तरह कोरोना के असर ने भारतीय अर्थतंत्र की कमर तोड़ दी। इस अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कहे जाने वाले लघु उद्योग व मध्यम उद्योग की हालत दिन व दिन खराब होते गए; नतीजतन ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति खराब होती गयी।
इसका असर यह हुआ कि जिन परिवारों को उज्जवला योजना के तहत कनेक्शन मिला, वे पहली बार के बाद दुबारे गैस सिलेंडर को रिफिल नहीं करवा सके।
इस दौरान गैस सिलेंडर के दाम भी लगातार बढ़ते रहे। अब फर्ज कीजिये किसी मनरेगा जैसी योजना के अंदर काम करने वाला दिहाड़ी मजदूर एक बार मे 1000₹ से भी ज्यादा कहाँ से लाये और गैस रिफिल करवाये। इसलिये इन परिवारों ने पुराने ढर्रे पर ही चलना शुरू के दिया।
अब इन सब से सरकार ने जरूर सब्सिडी के पैसे बचाये हों, लेकिन उज्जवला योजना का जो मूल मक़सद था वह कहीं खो गया है। महंगाई पर लगाम लग भी जाये तो भी शायद गैस सिलेंडर के वर्तमान कीमतें इन परिवारों के पहुँच से बाहर हैं।
इसलिए सरकार और नीति निर्धारकों को कुछ अलग व्यवस्था सोचना चाहिए क्योंकि इस योजना के उद्देश्य में कोई खराबी नही है, समस्या इस से जुड़ी अन्य मोर्चे जैसे महँगाई आदि पर है। समस्या इसके क्रियान्वयन पर है जिसे सरकार के तमाम तंत्रों को गंभीरता से लेना होगा।