पिछले कुछ समय में ई-कॉमर्स एक बहुत तेजी से विकसित होने वाला क्षेत्र बन गया है। भारत में आज हर तीसरा व्यक्ति ई-कॉमर्स पर खरीददारी करता है। ऐसे में ई-कॉमर्स पर फेक प्रोडक्ट यानी नकली सामान का चलन भी बढ़ गया है।
लोकलसर्किल नामक एक संस्था द्वारा किये गए शौध में यह पाया गया है कि आज के समय में भारत के ई-कॉमर्स बाजार में सबसे ज्यादा नकली पदार्थ बिक रहे हैं। ऑनलाइन सामान खरीदने वाले लोगों में से एक-तिहाई लोगों को नकली पदार्थ मिल रहे हैं, जो कि एक बहुत बड़ी संख्या है।
लोकलसर्किल द्वारा किये गए सर्वे में यह पाया गया है कि 6,923 लोगों में से, जिनपर सर्वे किया गया था, 38% लोगों को पिछले एक साल में नकली सामान मिला है।
सर्वे में यह भी बताया गया है कि इनमें से 12 फीसदी लोगों को स्नैपडील, 11 फीसदी को अमेज़न और 6 फीसदी लोगों को फ्लिप्कार्ट से नकली पदार्थ मिले हैं।
एक अन्य संस्था वेलोसिटी एमआर नें 3000 लोगों पर सर्वे किया और उसमें पाया कि हर तीसरे व्यक्ति को पिछले 6 महीनें के भीतर किसी प्रकार का नकली प्रोडक्ट मिला है।
इन लोगों नें यह बताया है कि नकली पदार्थों में मुख्य रूप से परफ्यूम और इत्र, जूते, खेल से जुड़ी चीजें, बैग आदि शामिल हैं।
ई-कॉमर्स में इस बढ़ते नकली मायाजाल को देखते हुए उपभोगता मंत्रालय नें सभी ई-कॉमर्स वेबसाइट पर नियम लगाने की बात कही है। दरअसल उपभोगता मंत्रालय को लगातार नकली चीजों की शिकायतें मिल रही हैं।
दरअसल नकली पदार्थ सिर्फ ग्राहकों के लिए ही नहीं, बल्कि ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए भी सिरदर्द बनता जा रहा है।
ऐसे मामले कंपनी की इज्जत पर तो बट्टा लगाते ही हैं, साथ ही देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरा हैं।
ऊपर जिन शौध का जिक्र किया गया है उनमें लोगों नें यह भी बताया है कि जब कंपनियां नकली पदार्थ वापस लेती हैं और रिफंड देती हैं, तो उन्हें इसके साथ एक प्रकार का जुर्माना भी ग्राहकों को देना चाहिए।
शौध में यह बात सामने आई है जिन लोगों नें सामान वापस किया है उनमें से करीबन 8 फीसदी लोगों को पुरे पैसे वापस नहीं मिलते हैं।
रेडसीर नाम की एक कंपनी नें एक शौध किया था जिसमें यह पाया गया है कि साल 2017 में सामान वापस करने के मामलों में ही ई-कॉमर्स कंपनियों को लगभग 3.4 अरब डॉलर का नुकसान झेलना पड़ा है।
ई-कॉमर्स कंपनिया भी अपनी ओर से नकली प्रोडक्ट से लड़ रही हैं।
उदाहरण के तौर पर स्नैपडील नें पिछले तीन सालों में लगभग 45 हजार विक्रेताओं को अपनी वेबसाइट से हटा दिया है। अमेज़न नें भी बताया है कि वे ऐसा ही कर रहे हैं और जो भी विक्रेता दोषी पाया जाता है उसे सामान नहीं बेचने दिया जाता है।
पिछले साल ही एक अमेरिकी कंपनी स्केचेर्स नें दिल्ली हाई कोर्ट में एक मामला दर्ज किया था जिसमें कंपनी नें यह दावा किया था कि फ्लिपकार्ट समेत कुछ कंपनियां उस कंपनी के नाम से नकली पदार्थ बेच रही हैं।
इसके तुरंत बाद इस बात का खुलासा हुआ था कि 60 फीसदी खेल-कूद से सम्बंधित पदार्थ और 40 फीसदी फैशन सम्बन्धी चीजें नकली बेचीं जाती हैं। सभी कंपनियों नें इस विषय पर जानकारी दी थी।
अमेज़न नें कहा था, “अमेज़न के ग्राहक हमसे यह आशा करते हैं कि जब वे अमेज़न की वेबसाइट के जरिये कुछ खरीदते हैं, तो उन्हें असली चीज मिले। इस बात की सुरक्षा के लिए अमेज़न यह कोशिश कर रहा है कि वह ग्राहकों, विक्रेताओं और सामान बनाने वालों के लिए एक मजबूत प्लेटफार्म का निर्माण करे। अमेज़न इस बात पर भी काम कर रहा है कि किसी भी पदार्थ को उसका असली मालिक ही बेचे। हमें जब भी ऐसी सुचना मिलती है कि हमारी प्रणाली में किसी नियम का उल्लंघन हो रहा है तो हम तुरंत एक्शन लेते हैं और उस विक्रेता को बाहर कर देते हैं। हमनें ऐसे लोगों के खिलाफ पहले भी कार्यवाई की है और हम ऐसा करते रहेंगे। हम क़ानूनी संस्थाओं के साथ भी इस विषय में काम कर रहे हैं।”
फ्लिपकार्ट नें इसके बारे में कहा, “फ्लिपकार्ट एक ऐसी कंपनी है जो देशभर में मौजूद विक्रेताओं को उनके ग्राहकों से जोड़ती है। हम इसमें सिर्फ बीच में काम करते हैं लेकिन हम इसकी पूरी जिम्मेदारी लेते हैं। फ्लिपकार्ट के पास ऐसा सिस्टम मौजूद है जिसके जरिये हम यह पता लगा लेते हैं कि किसी प्रकार का कोई गलत काम तो नहीं हो रहा है। हमारे विक्रेता भी हमारे सभी नियमों का पालन करते हैं। यदि हमें ऐसा कोई मामला मिलता है, जहाँ कोई विक्रेता कंपनी के नियमों का पालन नहीं कर रहा है तो हम इसे बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं करते हैं। हम अपना काम पूरी लगन और ईमानदारी के साथ करते हैं। फ्लिपकार्ट ऐसे प्रोग्राम का भी चालन करता है जिसमें हम ग्राहकों और विक्रेताओं को जागरूक बनाते हैं।”
स्नैपडील नें इस बारे में कहा था, “हमारी कंपनी पूरी निष्ठा और लगन के साथ अपना काम करती है और किसी भी प्रकार के गलत कार्य पर कड़ी कार्यवाही करती है।”
इन सब बातों से एक चीज तो साफ़ है कि नकली पदार्थ का यह खेल देश के लिए बहुत खतरनाक है। सरकार और अन्य क़ानूनी संस्थाओं के लिए यह जरूरी है कि वे इसपर कोई कानून बनाएं, जिससे इसपर काबू पाया जा सके।