ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जावेद जरीफ ने रविवार को कहा कि “तेहरान परमाणु अप्रसार संधि से अपना नाम वापस ले लेगा और यह अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद काफी मौजूद विकल्पों में से एक है।”
रायटर्स के मुताबिक विदेश मंत्री ने आईआरएनए न्यूज़ एजेंसी को दिए इंटरव्यू में कहा कि “परमाणु अप्रसार संधि को तोड़कर हम अमेरिकी प्रतिबंधों का प्रतिकार करेंगे।”
बीते वर्ष अमेरिका ने साल 2015 में हुई परमाणु संधि को तोड़ दिया था और ईरान पर सभी प्रतिबंधों को वापस थोप दिया था। इसके बावजूद ईरानी सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए निरंतर प्रतिबन्ध थोपता रहता है। बीते वर्ष नवंबर में अमेरिका ने बैंकिंग, ऊर्जा और शिपिंग उद्योग पर प्रतिबन्ध लगा दिए थे।
प्रतिबंधों के दौरान अमेरिका ने आठ देशों को ईरान से तेल खरीदने की छह माह की मोहलत दी थी इसमें तेहरान के प्रमुख तेल खरीददार भारत, चीन, जापान और अन्य देशों को रिआयत दी थी। यह प्रतिबन्ध 1 मई तक वैध हैं और इस समयसीमा तक सभी को तेहरान से तेल आयात शून्य करना है।
जावेद जरीफ ने कहा कि “जेसीपीओए ने दर्शाया है कि बातचीत के जरिये प्रतिबन्ध हटाए जा सकते हैं। देश ने कभी अपनी प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन नहीं किया है।” परमाणु अप्रसार संधि को साल 1970 में प्रभाव में लाया गया था और इसका मकसद परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना था। इस संधि पर 190 सरकारों ने हस्ताक्षर किये थे।
ईरान ने बुधवार को ऐलान किया कि “वह अंतर्राष्ट्रीय खरीददारों को खोजना जारी रखेगा और उन्हें तेल का निर्यात भी करेगा लेकिन अमेरिका ने अगर हमें रोकने की कोशिश की तो अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहे।”
भारत और चीन ईरानी तेल के सबसे बड़े खरीददार हैं। अगर डॉनल्ड ट्रम्प की मांगो को नज़रअंदाज़ किया गया तो इसका असर द्विपक्षीय संबंधों पर हो सकता है।