भारत इसी वर्ष नवंबर तक ईरान से खरीदे जाने वाले तेल की मात्रा को घटा कर शून्य कर देगा।
तात्पर्य यह है कि भारत नवंबर से ईरान के किसी भी तरह का कोई कच्चा तेल नहीं लेगा। मालूम हो कि सऊदी अरब और इराक़ के बाद ईरान, भारत का तीसरा सबसे बड़ा कच्चे तेल का आपूर्तिकर्ता है।
आखिर क्यों पीछे हट रहा है भारत?
भारत कि ओर से ये फैसला एक तरह से अमेरिकी दबाव की वजह से लिया गया है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को देखते हुए अमेरिका ने उसपर प्रतिबंध लगाया था कि ईरान किसी भी अनैतिक स्थिति के लिए अपने परमाणु कार्यक्रम को बढ़ावा न दे। इसी के साथ अमेरिका ने सभी देशों को कहा था कि वे ईरान से किसी भी तरह के व्यापार से पीछे हट जाएँ।
तेल का निर्यात ईरान के लिए उसके सबसे बड़े आय के श्रोतों में से एक है इस तरह यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को अमेरिका के हिसाब से सीमित करता है या नहीं?
हालाँकि अमेरिका द्वारा सभी देशों पर लगाए प्रतिबंध के बावजूद ईरान से तेल के आयात को लेकर चीन का रुख अभी स्पष्ट नहीं है। चीन तेल व्यापार के मामले में ईरान का सबसे बड़ा ग्राहक है।
क्या होगा अगर कोई देश इस प्रतिबंध को न माने तो ?
अमेरिका ने बड़े ही साफ शब्दों में कहा है कि यदि कोई भी देश इस प्रतिबंध का पालन नहीं करता है तो उस देश की बैंको को विश्व बैंकिंग प्रणाली से बाहर किया जा सकता है या उसपर भी प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। हालाँकि अमेरिका अपने अंदाज़ में अंजाम भुगतने वाली धमकी देता रहता है।
इसी के साथ ही सभी भारतीय कंपनीयों ने ईरान से आने वाले तेल में कटौती करने की शुरुआत कर दी है, जिससे नवंबर तक तेल के आयात को घटाकर शून्य पर लाना है।
भारत को इसी के साथ अब नए आपूर्तिकर्ता को खोज़ना होगा या फिर भारत को सऊदी अरब या इराक़ से आने आले तेल की मात्रा में इजाफ़ा करना होगा।
माना ये जाता है कि ईरान से मिलने वाले तेल की कीमत बाकी अन्य देशों से आने वाले तेल की अपेक्षा कम होती है।