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    अमेरिका और ईरान

    ईरान ने शुक्रवार को कहा कि वह खाड़ी में आसानी से अमेरिकी युद्धपोतों को निशाना बना सकते थे। अमेरिका और ईरान के बीच संधि के बाद विवाद काफी गहराते जा रहे हैं। अमेरिका-ईरान के संघर्ष की आशंका बीते कुछ दिनों में बढ़ी है  इस सप्ताह की शुरुआत में अमेरिका ने बगदाद से अपने दूतावास के कर्मचारियों को वापस बुला लिया था और यूएई के तट पर चार तेल टैंकरों को निशाना भी बनाया गया था।

    संसदीय मामलो के उपसचिव मोहम्मद सालेह जोकार ने कहा कि “हमारी शार्ट रेंज मिसाइल भी पर्शियन गल्फ में तैनात अमेरीवी युद्धपोतों पर आसानी से पंहुच सकती थी। अमेरिका एक नयी की क्षति को बर्दाश्त नहीं कर सकता है और अमेरिका की इस वक्त मैनपावर और सामाजिक हालातो पर हालत बहुत बुरी है।”

    वांशिगटन ने ईरान पर आर्थिक प्रतिबंधों को बढ़ाया है और क्षेत्र में सैनिको की मौजूदगी में इजाफा किया है। उन्होंने ईरान को क्षेत्र में अमेरिकी सैनिको और हितो के लिए खतरा बताया है। तेहरान ने इस कार्रवाई को मानसिक युद्ध और एक राजनीतिक खेल करार दिया है।

    वांशिगटन में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने कहा कि “अमेरिका फ़ोन के साथ चिपका हुआ है लेकिन ईरान की तरफ से अभी तक कोई सन्देश नहीं आया है कि वह ट्रम्प के सीधे बातचीत के प्रस्ताव को स्वीकार करने के इच्छुक है। हमारे ख्याल से उन्हें तनाव कम करना चाहिए और बातचीत के लिए आना चाहिए।”

    डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान के नेतृत्व से उनके परमाणु कार्यक्रम और क्षेत्रीय प्रभाव के बाबत बातचीत के लिए कहा था। दोनों देशों के बीच संघर्ष के हालात बनते जा रहे हैं और अमेरिका ने क्षेत्र में युद्धपोत की तैनाती भी की है। ईरान की आर्मी के मेजर जनरल अब्दुलरहीम मौसवी ने कहा कि “अगर दुश्मन गलत आँकलन करेंगे और एक रणनीतिक भूल करेंगे तो उन्हें इसका जवाब मिलेगा जो उन्हें पछताने पर मज़बूर कर देगा।”

    वरिष्ठ संसद हशमतोल्लाह फलहतपीशेह ने ट्वीटर पर कहा कि “अमेरिका और ईरान के आला विभागों ने जंग को ख़ारिज कर दिया है लेकिन तीसरे पक्ष विश्व के एक बड़े भाग को तबाह करने की जल्दबाज़ी में हैं। दोनों पक्षों के अह्दिकारियों के लिए इराक या क़तर में एक रेड डेस्क की स्थापना होनी चाहिए जो तनाव को कम करेगा।”

    डोनाल्ड ट्रम्प को यकीन है कि आर्थिक दबाव के आगे तेहरान अपने परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम पर कड़ी पाबन्दी लगाने के लिए घुटने टेक देगा और यमन, सीरिया और इराक में सहयोग करना बंद कर देगा। जावेद जरीफ ने जापान, भारत और चीन की यात्रा की है।

    विदेश मंत्री ने कहा कि “अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और संधि के शेष सदस्यों को परमाणु संधि को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए, सिर्फ सहयोग के बयान देना पर्याप्त नहीं है।” बीते हफ्ते ईरान ने संधि की कुछ प्रतिबद्धताओं से पीछे हटने का का ऐलान किया था। तेहरान ने संधि पर दस्खत करने वाले देशों से उनकी अर्थव्यवस्था को अमेरिकी प्रतिबंधों से बचाने की मांग की थी।

    जावेद जरीफ ने कहा कि “अगर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को परमाणु संधि मूलयवान उपलब्धि महसूस होती है तो इसकी रक्षा के लिए ठोस कदम उठाने की जरुरत है। ठोस कदम का अर्थ स्पष्ट है कि ईरान के आर्थिक सम्बन्ध सामान्य होने चाहिए।” दुसरे वर्ष में ईरान में महंगाई 40 फीसदी पर पंहुच सकती है।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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