अमेरिका आगामी दिनों में ईरान पर नए प्रतिबंधों को लागू करने की योजना में जुटा हुआ है ताकि ईरानी अर्थव्यवस्था को ध्वस्त किया जा सके। इस बार व्हाइट हाउस ईरानी अर्थव्यवस्था के नए क्षेत्र में प्रतिबंधों को लागू कर सकते हैं हालाँकि नए प्रतिबन्ध ऊर्जा क्षेत्र पर नहीं होंगे।
ईरान पर दबाव बढ़ाने के लिए अमेरिका ने ईरान में कैर्रिएर स्ट्राइक ग्रुप और बॉम्बर टास्क फाॅर्स की तैनाती के संकेत दिए हैं। बीते माह अमेरिका ने ऐलान किया था कि ईरानी तेल खरीददारों को अब कोई रिआयत नहीं दी जाएगी। सभी को ईरानी तेल खरीदना शून्य करना होगा नहीं तो प्रतिबंधों की मार झेलनी होगी।
अमेरिका ने आगाह किया कि ईरान के बुशेहर न्यूक्लियर पावर प्लांट का विस्तार नए प्रतिबंधों को न्योता दे सकता है। अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु संधि के खत्म होने के बाद तनाव काफी बढ़ गया है। दोनों पक्षों के मध्य शब्दों की जंग शुरू हो चुकी है।
अमेरिका के 45 वे राष्ट्रपति के तौर पर डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के साथ साल 2015 में हुई परमाणु संधि को तोड़ने के संकेत दिए थे और आखिरकार साल 2018 में उन्होंने यह कारनामा कर दिया था। उन्होंने बीते वर्ष परमणु संधि को तोड़ दिया था जिसके तहत ईरान कुछ नियमो और शर्तो के साथ अपने परमाणु मंसूबो को जारी रख सकता था।
अमेरिका के संधि तोड़ने के बावजूद अन्य वैश्विक सहभागी अभी भी इस संधि में कायम है। इसमें जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन शामिल है। ईरान ने अमेरिका के समक्ष झुकने से इंकार कर दिया और अमेरिकी प्रतिबंधों को आर्थिक आतंकवाद करार दिया था।
ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जावेद ज़रीफ़ ने कहा कि “वह ईरानी की नीतियों में तबदीली के लिए ईरानी आवाम पर दबाव बना रहे हैं। अमेरिका का 40 वर्षों तक इसी तरीके का व्यवहार रहा था। डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने अन्य राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा किए वादे का उल्लंघन किया था।”
ईरान ने धमकी दी कि यदि अमेरिका प्रतिबंधो को लागू करने की कोशिश करेगा तो वह होर्मुज जलमार्ग को बंद कर देंगे। यह एक रणनीतिक जलमार्ग है जो विश्व के 20 फीसदी तेल के ट्रांसपोर्ट के लिए जरुरी है। रूस ने ईरान के साथ द्विपक्षीय सम्बन्धो को कायम रखने का संकल्प लिया है।
अमेरिका ईरान संबंध:
ईरान और अमेरिका के बीच किसी भी प्रकार के द्विपक्षीय संबंधन वर्तमान में नहीं हैं। अमेरिका में ईरान का पक्ष पाकिस्तान रखता है, वहीँ ईरान में अमेरिका का पक्ष स्विट्ज़रलैंड रखता है।
रायटर्स के मुताबिक साल 2018 में ईरान के सुप्रीम लीडर अली खमेनी नें अमेरिका से सीधा संवाद बंद कर दिया था।
साल 2015 में ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु हथियारों को लेकर एक संधि हुई थी, जिससे अमेरिका की कोशिश थी कि वह ईरान में बन रहे परमाणु हथियारों पर रोक लगा सके। इसके बाद जब ईरान नें सभी शर्तों को मान लिया था, तब अमेरिका में ओबामा प्रशासन नें ईरान पर लगे सभी प्रतिबन्ध हटा लिए थे।
इसके बाद जब डोनाल्ड ट्रम्प सत्ता में आये, तो उन्होनें साल 2018 में फिर से ईरान पर प्रतिबन्ध लगा दिए थे।
दोनों देशों में संबंध सिर्फ इस बात पर सुधरते हैं कि दोनों देश सुन्नी आतंकवाद के खिलाफ लड़ रहे हैं।
डोनाल्ड ट्रम्प की ईरान के प्रति नीति
डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार बनने के बाद अमेरिका नें ईरान के नागरिकों को अमेरिका में घुसने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।
ट्रम्प नें इस दौरान सऊदी अरब, इजराइल, संयुक्त अरब अमीरात और अन्य सुन्नी बहुल देशों से सम्बन्ध मजबूत करने शुरू किये, जिससे की ईरान को मजबूत चुनौती दी जा सके।
मई 2018 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प नें घोषणा की कि वह परमाणु संधि को तोड़ देंगे और ईरान पर फिर से प्रतिबन्ध लगा देंगे।
इसके बदले में ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी नें धमकी दी कि यदि ट्रम्प ऐसा करते हैं तो वे फिर से परमाणु हथियारों का निर्माण करेंगे। इसके बाद 5 जुलाई 2018 को ईरान नें धमकी दी कि वह होर्मुज समुद्री मार्ग को बंद कर देगा।
इसके बाद से दोनों देशों के बीच कई तनावपूर्ण घटनाएं हुई हैं।
इसी के चलते 13 अगस्त 2018 को ईरानी सुप्रीम लीडर अली खामेनी नें अमेरिका से सीधी बातचीत से मना कर दिया था। उन्होनें कहा था, “अमेरिका से ना युद्ध होगा और ना ही बातचीत होगी।”
हाल ही में अमेरिका नें संयुक्त राष्ट्र से आग्रह किया था कि वह ईरान पर फिर से प्रतिबन्ध लगा दे।