पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान रविवार को अमेरिका की यात्रा करेंगे। इसमें चरमपंथ नेता के सिर पर एक करोड़ डॉलर की रकम पर गिरफ्तारी और अफगान शांति प्रक्रिया में प्रगति के बात बातचीत करेंगे। खान को बाड़ को हटाने की उम्मीद है और अधिकतर निवेश को आकर्षित करने की जरुरत है।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ मुलाकात के दौरान अफगानिस्तान जंग को खत्म करने के लिए पूरा सहयोग और चरमपंथियों की लड़ाई के खतरे में सहयोग को आश्वस्त किया था। डोनाल्ड ट्रम्प और इमरान खान दोनों ही राजनीति से काफी दूर है और दोनों के बीच केमिस्ट्री काफी निर्णायक है।
रॉयल इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंटरनेशनल अफेयर्स इन लन्दन के एसोसिएट फरजाना शेख ने कहा कि “काफी कुछ राष्ट्रपति ट्रम्प और प्रधानमन्त्री इमरान खान के मूड पर निर्भर करता है। इनमे से कोई भी पूर्वसूचनीय नहीं है।”
पाकिस्तान अभी नकदी के संकट से जूझ रहा है और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से बेलआउट पैकेज की मांग कर रहा है। पाकिस्तान को बेहद विदेशी निवेश की जरुरत है लेकिन सुरक्षा इस यात्रा के मुख्य फोकस में होगा। इमरान खान के साथ सेना के ताकतवर सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा भी होंगे।
विश्लेशको के मुताबिक, बाजवा बातचीत में एक महत्वपूर्ण किरदार निभा सकते हैं। इस यात्रा के दौरान गंभीर कारोबारी मुद्दों पर भी बातचीत होगी। सेना वांशिगटन के वित्त सहायता और सहयोग को बहाल करने की कोशिश करेंगे।”
लेखक और विश्लेषक एषा सिद्दीका ने कहा कि “इस यात्रा को सेना करीबी से देखेगी क्योंकि उन्हें पैसो की सख्त जरुरत है।” बीते वर्ष ट्रम्प ने पाकिस्तान को दी जाने वालो अरबो की सैन्य सहायता पर रोक लगा दी थी। उन्होंने आरोप लगाया कि पाकिस्तान ने उन्हें धोखा और झूठ के सिवाये कुछ नहीं दिया है। वह आतंकवादियों को सुरक्षित पनाह देता है और इन आरोपों को इस्लामाबाद ने खारिज किया था।
इमरान खान को यकीन है कि हाफिज सईद की गिरफ्तारी ट्रम्प को स्पष्ट सन्देश भेजेगी। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस गिरफ्तारी का स्वागत किया था। ट्वीट में उन्होंने लिखा कि “10 वर्षों की जांच के बाद मुंबई आतंकी हमलो के कथित मास्टरमाइंड को पाकिस्तान में गिरफ्तार कर लिया गया है। उसे ढूँढने के लिए बीते दो वर्षों में अत्यधिक दबाव बनाकर रखना पड़ा था।”
इस मुलाकात के दौरान इमरान खान अमेरिका के साथ तालिबान को बातचीत के लिए मुख्यधारा में लाने की बात पर जोर देंगे। शेख ने कहा कि “अमेरिका, रूस और चीन जानते है कि पाकिस्तान के सहयोग के बगैर अफगानिस्तान में सुलह संभव नहीं है।”
नई दिल्ली ने फाइनेंसियल एक्शन टास्क फाॅर्स, वैश्विक धनाशोधन और आतंकी वित्तीय निगरानी समूह से पाकिस्तान को काली सूची में शामिल करने का दबाव बनाया है। भारत की अभी ट्रम्प प्रशासन के साथ व्यापार को लेकर चिंता जारी है और भारत अफगान शांति प्रक्रिया में चुप्पी साधे बैठा है।