भारत के जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकी आत्मघाती हमले को एक 22 वर्षीय अंजाम दिया गया था। इस आतंकी हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तानी समर्थित आतंकी समूह जैश ए मोहम्मद ने ली थी। इस आतंकी हमले से चीन पर भी उंगलिया उठी है। चीन ने पाकिस्तानी आतंकी समूह जेईएम के सरगना मसूद अज़हर को निरंतर बचाने का प्रयास किया है। मसूद अज़हर पर दिसंबर 2011 में भारतीय संसद में हुए हमले और जनवरी 2011 में भारतीय वायु सेना पर हुए हमले का आरोप है।
मसूद अज़हर को यूएन में वैश्विक आतंकी घोषित करने में चीन हमेशा अड़ंगा डालता है। चीन ने कश्मीर हमले की निंदा करने में धीमी प्रक्रिया अपनायी, जिसमे उन्होंने न पाकिस्तान और न ही मसूद अज़हर का नाम जाहिर किया था। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने पत्रकारों से कहा कि “चीन ने फियादीन हमले की रिपोर्ट को देखा है। हम इस हमले से गहरे सदमे में हैं।”
चीन का दोहरा मापदंड
उन्होंने ने कहा कि “हमारी शहीद और जख्मी सैनिकों के परिवारों के साथ सहनुभूति और संवेदना है। हम सभी तरीके के आतंकवाद की कड़ी निंदा करते हैं। उम्मीद है कि क्षेत्रीय देश आतंकी खतरे से निपटने के लिए एकजुट सहयोग करेंगे और क्षेत्रीय शान्ति और स्थिरता के लिए एकसाथ आएंगे।”
बहरहाल, यह बयान हाल ही में चीनी उप मंत्री के बयान से उलट है। चीनी उप विदेश मंत्री ने यूएन में चीन के मत को स्पष्ट करते हुए कहा कि “चीन सभी प्रकार के आतंकवाद के खिलाफ है। आतंक के विरोध में कोई दोहरा मापदंड नहीं होना चाहिए, किसी को भी आतंक के विरोध के नाम पर राजनीतिक फायदा नहीं उठाना चाहिए।”
भारत और पी-5 देशों का समर्थन करने की बजाये चीनी विदेश मंत्री वांग ई ने यूएन में कहा कि यह लोग आतंकी है या नहीं, इसके लिए पुख्ता सबूत और तथ्य होने चाहिए। मसूद अज़हर के कबूलनामे और सबूतों को दरकिनार करते हुए बीजिंग अभी भी दोहरे मापदंड अपना रहा है।
चीन-पाक की दोस्ती
आखिरकार चीन क्यों अज़हर मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने के खिलाफ रहता है? पाकिस्तान को अपना सदाबहार दोस्त कहता है जबकि वह भारत विरोधी है। चीन ने चीन-पाक आर्थिक गलियारे में भारी निवेश कर रखा है, जिससे वह हिंद महासागर तक पहुंचेगा और वह विशाल सैन्य निर्यात बाजार को बरकरार रखना चाहता है।
इंडो-पैसिफिक के अमेरिकी कमांडर ने बताया कि “मुक्त और स्वतंत्र इंडो पैसिफिक के लिए चीन सबसे बड़ा रणनीतिक खतरा है। उत्तर कोरिया अभी भी उभरती हुई चुनौती है।” चीन की सेना पीएलए अमेरिकी हितो, जनता और उसके सहयोगियों के लिए खतरा है। चीन की निगाहे अब फर्स्ट आईलैंड चैन पर है। चीन निरंतर सैन्यकरण पर जोर दे रहा है।
चीन, ब्रूनेई, मलेशिया, वियतनाम, ताइवान और फिलीपीन्स दक्षिणी चीनी सागर पर अपने अधिकार का दावा करते हैं और हर वर्ष इस मार्ग से 3 ट्रिलियन डॉलर के सामान का आयात-निर्यात किया जाता है। हाल ही में अमेरिका ने कहा था कि दक्षिणी चीनी सागर में सैन्य गतिविधियां बढ़ाकर चीन अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने की कोशिश कर रहा है।
राष्ट्रपति ओबामा के आठ साल के कार्यकाल में दक्षिणी चीनी सागर में सिर्फ चार बार नौचालन अभियान किया गया था, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के दो वर्ष के कार्यकाल में अभी तक बारह बार इस विवादित सागर में अभियान किया जा चुका है। अमेरिकी कमांडर ने बताया कि चीन की सेना निरंतर अपने प्रभुत्व का विस्तार कर रही है और इसके लिए वह वित्तीय और भय का इस्तेमाल कर रही है। इसके ताजा उदाहरण मालदीव व मलेशिया है।
चीन का सैन्यकरण
चीन आधुनिक तकनीक का निर्माण कर रहा है और निरंतर अपनी सेना में सुधार कर रह है। बीजिंग दुनिया में सबसे ताकतवर बनना चाहता है। यह एक शांतिप्रिय देश की नीति तो बिल्कुल नहीं हो सकती है। चीन के लक्ष्य स्पष्ट है। शार्ट रेंज मिसाइल का इस्तेमाल ताइवान और अमेरिकी कैरियर स्ट्राइक ग्रुप्स के लिए, इंटरमीडिएट रेंज मिसाइल जापान और गुआम में स्थित अमेरिकी सैन्य बेस के लिए और आईसीबीएम अमेरिका के लिए है।
चीन अन्य भांति एक लाइन को दोहराता है “चीन के हितों और चिंताओं का सम्मान किया जाना चाहिए।” हालाँकि चीन इस पर यकीन नहीं करता है। मसूद अज़हर को लेकर भारत की वाजिब चिंता और संवेदनशीलता को चीन नज़रअंदाज़ करता है।