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    जैसा कि इसके नाम से ही जाहिर है, हिंद यानी हिंद महासागर और प्रशांत यानी प्रशांत महासागर के कुछ भागों को मिलाकर जो समुद्र का एक हिस्सा बनता है, उसे हिंद प्रशांत क्षेत्र कहते हैं। विशाल हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के सीधे जलग्रहण क्षेत्र में पड़ने वाले देशों को ‘इंडो-पैसिफिक देश’ कहा जा सकता है। इस्टर्न अफ्रीकन कोस्ट, इंडियन ओशन तथा वेस्टर्न एवं सेंट्रल पैसिफिक ओशन मिलकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र बनाते हैं। इसके अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र दक्षिण चीन सागर आता है। हालांकि हिंद महासागर क्षेत्र की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है, हर देश अपने हित के मुताबिक इसकी परिभाषा तय करता है।

    यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे अमेरिका अपनी वैश्विक स्थिति को पुनर्जीवित करने के लिये इसे अपनी भव्य रणनीति का एक हिस्सा मानता है, जिसे चीन द्वारा चुनौती दी जा रही है। ट्रंप द्वारा उपयोग किये जाने वाले ‘एशिया-प्रशांत रणनीति’ का अर्थ है कि भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य प्रमुख एशियाई देशों, विशेष रूप से जापान और ऑस्ट्रेलिया, ‘शीत युद्ध’ के बढ़ते प्रभाव के नए ढाँचे में चीन को रोकने में शामिल होंगे।

    मौजूदा वक्त में, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में 38 देश शामिल हैं, जो विश्व के सतह क्षेत्र का 44 फ़ीसदी, विश्व की कुल आबादी का 65 फ़ीसदी, विश्व की कुल जीडीपी का 62 फीसदी और विश्व के माल व्यापार का 46 फ़ीसदी योगदान देते हैं।

    भारत इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य करने को तत्पर है। भारत के लिये इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का अर्थ एक मुक्त, खुले और समावेशी क्षेत्र से है। यद्यपि यह अभी विकास की प्रक्रिया से गुज़र रही एक अवधारणा है, किंतु कई विश्लेषक इस अवधारणा को पश्चिम से पूर्व की ओर सत्ता तथा प्रभाव के स्थानातंरण की तरह देखते हैं।इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का भौगोलिक प्रसार अभी तक सही ढंग से परिभाषित नहीं किया गया है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-अलग हितधारकों ने इसे अलग-अलग तरह से मान्यता दी है। उदाहरण के लिये अमेरिका के लिये यह क्षेत्र भारत के पश्चिमी तट तक फैला हुआ है, जो कि यूएस इंडो-पैसिफिक कमांड की भौगोलिक सीमा है, जबकि भारत के लिये इसमें पूरा हिंद महासागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर शामिल है।

    इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का महत्त्व

    वर्तमान में हम कह सकते हैं कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र विश्व में आर्थिक विकास का गुरुत्वाकर्षण केंद्र बना हुआ है। विश्व की चार बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ यथा- अमेरिका, चीन, जापान और भारत इसी क्षेत्र में स्थित हैं, जो कि इस क्षेत्र की महत्ता को काफी अधिक बढ़ा देते हैं। इस प्रकार यह क्षेत्र या तो विश्व के आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने वाले एक इंजन के तौर पर कार्य कर सकता है या फिर विश्व की अर्थव्यवस्था के विध्वंसक के रूप में कार्य कर सकता है।

    इंडो-पैसिफिक क्षेत्र संपूर्ण विश्व में शांति और समृद्धि को बढ़ावा देने में अनिवार्य भूमिका अदा कर सकता है। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला देश (चीन), सबसे अधिक आबादी वाला लोकतांत्रिक देश (भारत) और सबसे अधिक आबादी वाला मुस्लिम बहुल राज्य (इंडोनेशिया) शामिल हैं, जिसके कारण यह देश भू-राजनीतिक दृष्टि से भी काफी महत्त्वपूर्ण हो जाता है। दुनिया की दस सबसे बड़ी स्थायी सेनाओं में से सात इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शामिल हैं, यही कारण है कि अमेरिका के मतानुसार, ‘इंडो-पैसिफिक क्षेत्र अमेरिका के भविष्य के लिये सबसे अधिक परिणामी क्षेत्र है।’

    इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ

    इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की अभी तक कोई स्पष्ट परिभाषा मौजूद नहीं है और सभी देश अपने-अपने रणनीतिक हितों को ध्यान में रख कर इसे परिभाषित करने का प्रयास कर रहे हैं। जानकारों का मानना है कि विगत कुछ वर्षों में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र अमेरिका और चीन की प्रतिद्वंद्विता का एक नया केंद्र बिंदु बन गया है, इस क्षेत्र की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं (अमेरिका और चीन) के बीच व्यापार युद्ध तथा तकनीकी प्रतिस्पर्द्धा के कारण इस क्षेत्र के अन्य देशों और संपूर्ण वैश्विक अर्थव्यवस्था पर काफी गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

    भारत और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र

    इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के कई देश खासतौर पर ऑस्ट्रेलिया, जापान, अमेरिका और इंडोनेशिया आदि भारत की भूमिका को इस क्षेत्र में काफी महत्त्वपूर्ण मानते हैं। ये सभी देश दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में चीन का मुकाबला करने के लिये भारत को एक विकल्प के रूप में देख रहे हैं।

    हालाँकि भारत इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य करने को तत्पर है, भारत के लिये इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का अर्थ एक मुक्त, खुले और समावेशी क्षेत्र से है।

    भारत हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के सभी देशों और उन सभी देशों को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की परिभाषा में शामिल करता है, जिनके हित इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। इस प्रकार भारत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की अमेरिकी परिभाषा का अनुपालन नहीं करता है, जिसका एकमात्र लक्ष्य चीन की प्रभाव को सीमित करना अथवा समाप्त करना है।

    भारत द्वारा इंडो पैसिफिक की अवधारणा की मजबूती के हालिया प्रयास

    हिन्द प्रशांत और एशिया प्रशांत क्षेत्र महाशक्तियों के सामरिक आर्थिक हितों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण और संवेदनशील क्षेत्र के रूप में सामने आए हैं । सैन्य और नौसैन्य अड्डों , ऊर्जा आवश्यकताओं , खाद्य सुरक्षा हेतु मत्स्य संसाधन पर बढ़ती निर्भरता आदि कई अन्य कारणों से ये क्षेत्र भू-सामरिक, भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक महत्व के हो गए हैं । इसी बात को ध्यान में रखकर भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने हाल ही में हिंद प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान देने के लिए एक अलग ही प्रभाग का गठन किया है।

    इसे ओसेनिया डिवीजन नाम दिया गया है । यह अतिरिक्त सचिव की अध्यक्षता में कार्य करेगा और यह दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों, प्रशांत द्वीपीय देशों – कुक आइलैंड्स , तुवालू , पापुआ न्यू गिनी , नौरू , मार्शल द्वीप , सोलोमन द्वीप और टोंगा पर विशेष ध्यान केंद्रित करेगा और वृहद हिंद प्रशांत क्षेत्र के मुद्दों और भारत के उससे जुड़े हितों पर ध्यान केंद्रित करेगा । इसके साथ ही भारत द्वारा इंडो पैसिफिक और आसियान नीति को एक एकल यूनिट के अन्तर्गत लाया गया है। इसे चीन से निपटने का कारगर उपाय माना जा रहा है ।

    चीन द्वारा हिंद महासागरीय क्षेत्र के साथ ही एशिया प्रशांत और हिंद प्रशांत क्षेत्र के देशों को अपने प्रभाव में लेने के लिए अति सक्रिय होते पाया गया है । ऐसे में भारत का ओशनिया डिवीजन इन सभी क्षेत्रों को एकीकृत रूप से देखते हुए भारत के हितों के लिए नीतिगत निर्णय ले सकेगा । इस निर्णय के जरिए भारत पश्चिमी प्रशांत ( प्रशांत द्वीपीय देशों ) से लेकर अंडमान सागर और चीन द्वारा सामरिक रूप से महत्वपूर्ण समझे जाने वाले क्षेत्रों को समान महत्व वाले स्थलों के रूप में देखेगा । इस नए डिवीजन में ऑस्ट्रेलिया , न्यूजीलैंड के साथ संबंधों पर विशेष बल दिए जाने का निर्णय किया गया है।

    क्वाड में ऑस्ट्रेलिया की भूमिका और प्रभाव को देखते हुए ऐसा किया जाना स्वाभाविक भी था । क्वाड सुरक्षा समूह के सदस्य देशों – अमेरिका , जापान , भारत और ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रियों की बैठक जो इंडो पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर हुई थी , उससे पूर्व ही ओशेनिया डिविजन को बनाकर भारत ने इंडो पैसिफिक के लिए अपनी संवेदनशीलता भी जाहिर कर दी थी । ओशेनिया डिवीजन को इंडो पैसिफिक क्षेत्र के संबंध में एक नई नीतिगत प्राथमिकता के आधार पर सृजित किया गया है। यह दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों, प्रशांत द्वीपीय देशों और वृहद हिंद प्रशांत क्षेत्र के मुद्दों और भारत के उससे जुड़े हितों पर ध्यान केंद्रित करेगा । इसमें दो डायरेक्टर रैंक के प्राधिकारियों को संबंधित विषय से जुड़े मुद्दे पर भूमिका देने का प्रावधान किया गया है।

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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