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    निर्मला सीतारमण

    नई दिल्ली, 4 जुलाई (आईएएनएस)| आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 में राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) तथा अपीली न्यायाधिकरण को मजबूत बनाने का प्रस्ताव दिया गया है। दिवाला और दिवालिएपन के लिए प्रणालीबद्ध तरीके से व्यवस्था मजबूत बनाई जा रही है और फंसे हुए कर्जो की वसूली हो रही है।

    31 मार्च, 2019 तक कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) से 94 मामलों का समाधान हुआ है और परिणाम स्वरूप 1,73,359 करोड़ रुपये के दावों का निपटारा किया गया है। केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को संसद में 2018-19 का आर्थिक सर्वेक्षण संसद में पेश किया, जिसमें कहा गया कि दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 के प्रभावी होने से ऋण वसूली में हाल की सफलता को देखते हुए राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) तथा अपीली न्यायाधिकरण को मजबूत बनाने का प्रस्ताव दिया गया है।

    आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि 28 फरवरी, 2019 तक 2.84 लाख रुपये की कुल राशि के 6,079 मामले दिवाला तथा दिवालियापन संहिता के प्रावधानों के अंतर्गत सुनवाई से पहले वापस लिए गए हैं।

    सर्वेक्षण में कहा गया कि आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार बैंकों को पहले के गैर-निष्पादित खातों से 50,000 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं। आरबीआई की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अतिरिक्त 50,000 करोड़ रुपये की संपत्ति को गैर-मानक से उन्नत बनाकर मानक संपत्ति कर दिया गया है।

    दिवाला तथा दिवालियापन संहिता को गैर-निष्पादक कॉरपोरेट कर्जदारों से कारगर ढंग से निपटने के लिए हाल के समय का सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार मानते हुए आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि एनसीएलटी के आधारभूत ढांचे को बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि ऋण वसूली का समाधान समयबद्ध तरीके से किया जा सके।

    सर्वेक्षण में कहा गया है कि सरकार विलंब की समस्या के समाधान के उपायों पर गंभीरता से विचार कर रही है और सरकार ने एनसीएलटी के लिए न्यायिक तथा तकनीकी सदस्यों के 6 अतिरिक्त पदों का सृजन किया है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि एनसीएलटी के स*++++++++++++++++++++++++++++र्*ट पीठों की स्थापना पर विचार किया जा रहा है।

    वर्तमान में प्रमुख शहरों में स्थित 20 पीठों में एनसीएलटी के 32 न्यायिक सदस्य तथा 17 तकनीकी सदस्य हैं।

    सर्वेक्षण में कहा गया है कि आईबीसी से ऋणदाता, कर्जदार, प्रवर्तक तथा कर्जदाता के बीच सांस्कृतिक बदलाव की शुरुआत हुई है। आईबीसी पारित होने से पहले ऋणदाता लोक अदालत, ऋण वसूली न्यायाधिकरण तथा एसएआरएफएईएसआई अधिनियम का सहारा लेते थे। पहले की व्यवस्था से 23 प्रतिशत की कम औसत वसूली हुई जबकि आईबीसी व्यवस्था के अंतर्गत ऋण वसूली में 43 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

    आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि आईबीसी पारित किए जाने के बाद से भारत की दिवाला समाधान 2014 की रैंकिंग 134 से सुधर कर 2019 में रैंकिंग 108 हो गई।

    भारत के दिवाला तथा दिवालियापन बोर्ड (आईबीबीआई) ने ग्रेजुएट इंसॉलवेंसी प्रोग्राम (जीआईपी) लांच करने की घोषणा की है। यह अपने तरह का पहला कार्यक्रम उन लोगों के लिए है जो दिवाला कार्यक्रम को अपने कैरियर के विषय के रूप में तथा मूल्य श्रंखला की भूमिका के रूप में लेते हैं।

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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