प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को बैंकाक के लिए उड़ान भरी थी, इस एजेंडे में एक महत्वपूर्ण व्यापारिक सौदा था जो भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है: क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership) या आरसीईपी (RCEP)। यह सौदा क्या है और भारत में सभी इसपर चर्चा क्यों कर रहे हैं?
RCEP क्या है?
रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 16 देशों के बीच एक मुफ्त व्यापार समझौता है जो सदस्य देशों के बीच टैरिफ और नियमों को कम करता है, ताकि उनके बीच सामान और सेवाएं स्वतंत्र रूप से प्रवाहित हो सकें।
आरसीईपी मुख्य रूप से आसियान देशों से मिलकर बनाहै, जिसमें 10 दक्षिण पूर्व एशियाई देश – ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम आते हैं। चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड आदि के लिए इस समूह से जुड़े हुए हैं।
मुक्त व्यापार समझौते नए नहीं हैं। लेकिन RCEP इस मामले में काफी अलग है। यदि इसे लागु किया जाता है, तो यह दुनिया की आधी आबादी और वैश्विक जीडीपी के लगभग एक तिहाई के साथ दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक ब्लॉक बन जाएगा।
हालाँकि RCEP आसियान देशों का एक समूह है लेकिन मुख्यत्त यह चीन के चारों ओर घूमता है। चीन नें 2012 के आसपास से इस अभियान पर अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू की थी। अमेरिका के नेतृत्व वाली ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप में चीन को शामिल नहीं किया गया था इसलिए चीन नें आरसीईपी में अपनी स्थिति मजबूत की। 2016 में हालाँकि, जब डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिकी सत्ता संभाली, तो अमेरिका स्वयं ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप से पीछे हट गया।
अब भी, हालांकि, आरसीईपी चीन और अमेरिका के बीच व्यापार करने के लिए बीजिंग के लिए एक प्रमुख उपकरण है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के तहत, अमेरिका ने 2018 से चीनी सामानों पर शुल्क और व्यापार बाधाओं को स्थापित करना शुरू कर दिया है, एक आर्थिक संघर्ष जिसे चीन-अमेरिका व्यापार युद्ध कहा जाता है।
भारत में लोग RCEP का विरोध क्यों कर रहे हैं?
एक और जहाँ मुक्त व्यापार चीन के लिए काफी मददगार साबित होगा, भारत के लिए यह काफी नुकसानदायक हो सकता है।
कई भारतीयों को डर है कि आयात नियमों के खत्म हो जाने के बाद, हमारे उद्योग चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ होंगे और चीनी सामान भारतीय बाजारों में बड़ी मात्रा में आ जाएगा।
आपको बता दें कि भारत और चीन के बीच व्यापार के कुल मूल्य का दो-तिहाई से अधिक भारत को चीन द्वारा निर्यात होता है। मामलों को बदतर बनाने के लिए, भारत का अधिकांश निर्यात कच्चा, असंसाधित सामग्री जैसे कपास और लौह अयस्क है, जो भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था के लिए बहुत कम मूल्य जोड़ते हैं। दूसरी ओर, चीन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और विद्युत उपकरणों जैसे उच्च मूल्य के सामानों का निर्यात करता है।
यदि किसी तरह चीन के इन उत्पादों से निर्यात शुल्क हट जाएगा, तो यह भारतीय उद्योगों के लिए काफी मुश्किल भरा होगा।
लेकिन यह केवल उद्योगपतियों के लिए बुरी बात नहीं है। भारत के किसान भी बहुत चिंतित हैं क्योंकि वे भी वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ हैं। विशेष रूप से दुग्ध क्षेत्र इससे चिंतित है।
न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के अत्यधिक विकसित डेयरी उद्योगों से भारत को प्रतिस्पर्धा करनी होगी और इससे करोड़ों किसान, जिनकी आय का स्त्रोत दुग्ध सम्बंधित पदार्थ हैं, प्रभावित होंगे।
भारत पहले से ही विमुद्रीकरण (Demonetization) और नए माल और सेवा कर (GST) के मद्देनजर गहन मंदी का शिकार है। उदाहरण के लिए, भारतीय उद्योग के आठ प्रमुख क्षेत्र – कोयला, कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली के उत्पादन में सितंबर में 5.2% की गिरावट आई है।
भारत की राजनीति में इसका क्या असर पड़ रहा है?
लोकप्रिय असंतोष को तूल देने के अवसर को देखते हुए, इस मुद्दे पर बड़े पैमाने पर राजनीतिक विरोध हो रहा है। आरसीईपी पर विचार करने के लिए शनिवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सरकार पर हमला किया। सोनिया गांधी नें कहा था कि इस प्रकार का मुक्त व्यापार भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका होगा और इससे किसान, दुकानदार और छोटे और मध्यम उद्योग कठिनायों का सामना करेंगे।
कांग्रेस नें इससे पहले RCEP को अर्थव्यवस्था के लिए विमुद्रीकरण और जीएसटी के बाद तीसरा बड़ा प्रहार बताया था।
वामपंथियों ने भी आरसीईपी का विरोध किया है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के किसान विंग, किसान सभा ने सोमवार को इस ब्लॉक के खिलाफ देशव्यापी विरोध की घोषणा की।
यहां तक कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के मूल निकाय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी आरसीईपी को लाल झंडे दिखाए हैं और इसे आर्थिक रूप से संरक्षणवादी एजेंडे के खिलाफ बताया है।
इस विरोध ने मोदी सरकार को इस अभियान में शामिल होने से सावधान कर दिया है। नतीजतन, भारत ने कई अंतिम बदलावों की मांग की है जो इस सौदे को खत्म कर सकती है।
RCEP को लागु करने के फायदे क्या हैं?
एक और जहाँ लेफ्ट और दक्षिण पंथ के लोगों नें इसका विरोध किया है, उदारवादी सोच के कुछ लोग इसका समर्थन भी करते आये हैं।
ब्लूमबर्ग में छपे एक लेख नें लिखा है कि मुक्त व्यापार होने से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी जिससे लोकल उद्योग का उत्पादन भी बढेगा। इसमें आगे लिखा गया कि इससे उत्पादन बढेगा, नौकरियां बढेंगी और चीजों की गुणवत्ता पर भी असर पड़ेगा।
यह तर्क भी दिया गया है कि भारत आजादी के इतने सालों के बाद भी कृषि-प्रधान देश है और पूर्ण रूप से मुख्य व्यापार होने से भारतीय अर्थव्यवस्था की निर्भरता कृषि से उठकर अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर बढ़ेगी।