आरबीआई आज दोपहर बाद मौद्रिक नीति की घोषणा करेगा। ऐसा माना जा रहा है कि देश में बढ़ती मुद्रास्फीति के चलते भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं करेगा। 15 अर्थशास्त्रियों के साथ किए गए सर्वे के अनुसार न्यूज पोर्टल मिंट ने बताया कि रिजर्व बैंक आफ इंडिया अपने पुराने रेपो दर 6 फीसदी को बरकरार रखेगा।
आइए जानें, रिजर्व बैंक ब्याज दरों से परे किन चीजों को लेकर बड़ी घोषणाएं कर सकता है…
विकास दर-
इस वित्तीय साल में भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट में सुधार तथा मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी को लेकर आरबीआई अपना ध्यान विशेष रूप से केंद्रित कर सकता है। आप को बता दें कि पिछले पांच तिमाहियों के दौरान भारत की विकास दर बिल्कुल धीमी थी, लेकिन जुलाई-सितंबर में जीडीपी ग्रोथ रेट का यह आंकड़ा 6.3 फीसदी के पार पहुंच गया।
जबकि पिछली तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 5.7 फीसदी थी। जीएसटी लागू किए जाने के बाद से विनिर्माण क्षेत्र में आई गिरावट के कारण आरबीआई ने अपनी पिछली समीक्षा नीति में वित्तीय वर्ष 2017-18 के जीडीपी विकास लक्ष्य को 7.3 फीसदी को घटाकर 6.7 फीसदी कर दिया था।
महंगाई-
जहां तक मुद्रास्फीति की बात है, इसमें काफी तेजी आई है। अक्टूबर के बाद मुद्रास्फीति 4 फीसदी के करीब पहुंच चुकी है। अक्टूबर महीने की खुदरा महंगाई दर 3.58 फीसदी के पार पहुंच चुकी है। जिसके चलते खाद्य उत्पाद तथा ईंधन की कीमतें पिछले सात महीनों में अपने उच्चतम स्तर पर हैं।
नवंबर के अंत में भारत में कच्चे तेल की कीमतें बढ़कर 61.60 डॉलर प्रति बैरल हो गईं, जबकि अक्टूबर के शुरूआती दिनों में यही कीमत 55.36 डॉलर प्रति बैरल थी। इस प्रकार रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक समीक्षा नीति में महंगाई को लेकर कोई बड़ी घोषणा कर सकता है।
राजकोषीय घाटा-
मुद्रास्फीति में वृद्धि तथा राजकोषीय घाटे का प्रभाव आगामी महीनों में दिख सकता है, इसलिए आरबीआई द्वारा राजकोषीय घाटे को लेकर सावधानी बरतने की संभावना दिखाई दे रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश राजकोषीय घाटा अक्टूबर के अतं में पूरे साल के बजट अनुमान का 96 फीसदी तक पहुंच चुका है। ऐसे में सरकार किसी बड़े सार्वजनिक खर्च से बचने की कोशिश करेगी। हांलाकि सरकार ने इस राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई है। जुलाई में जीएसटी लागू किए जाने के बाद से अप्रत्यक्ष कर संग्रह में अनिश्चितता देखने को मिली है।
सरकार फरवरी में जो आम बजट पेश करेगी, उसमें कुछ लोकलुभावन उपायों को शामिल किया जा सकता है। क्योंकि लोकसभा चुनाव 2019 से पहले मौजूदा सरकार का यह अंतिम बजट होगा। इस अलावा बजट में राज्यों के कृषि ऋण में छूट तथा सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को दरकिनार नहीं किया जा सकता है।