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    नई दिल्ली, 4 जून (आईएएनएस)| कार्पोरेट मामलों के मंत्रालय के टॉप सीक्रेट रिपोर्ट में आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) पर काफी गंभीर आरोप लगाए गए हैं। मंत्रालय ने आईएफआईएन (आईएलएंडएफएस फाइनेंशियल सर्विसेज) द्वारा सीएआर (कैपिटल एडक्वेंसी रेशियो) मानदंडों की अवहेलना पर आरबीआई द्वारा कार्रवाई नहीं करने को लेकर केंद्रीय बैंक द्वारा मामले की आंतरिक जांच करने की बात कही है।

    एमसीए की रिपोर्ट में आरबीआई को उपयुक्त कार्रवाई करने को कहा गया है तथा साथ ही ऐसी धोखाधड़ी को आगे रोकने के लिए उपयुक्त नीतिगत उपाय शुरू करने को कहा है। रिपोर्ट का सार यह है कि आरबीआई को जब आईएफआईएन पर कार्रवाई करनी चाहिए थी, तब वह सो रहा था।

    एमसीए की रिपोर्ट में सिफारिश की गई है : यह पाया गया कि आरबीआई ने 2015 के बाद से अपनी निरीक्षण रिपोर्ट में ग्रुप एक्सपोजर नॉर्म्स के अनुपालन न करने और नेट स्वामित्व वाले फंड्स (एनओएफ) की गलत गणना के बारे में बताया था। लेकिन इस अवधि के दौरान कोई जुर्माना नहीं लगाया गया था और आईएफआईएन को बिना किसी सुधारात्मक कार्रवाई के अपने कार्यों को जारी रखने की अनुमति दी गई थी।

    इसके अलावा, 1 नवंबर, 2017 के अपने पत्र में केवल आरबीआई अधिनियम के अनुसार, एनओएफ और सीएआर पर पहुंचने के लिए समूह की कंपनियों के वर्गीकरण पर मुद्दा भी उठाया गया था, जिसे आईएफआईएन को ²ढ़ता से अवगत कराया गया। इसमें बहुत स्पष्ट रूप से कहा गया कि अगर सही समय पर कार्रवाई की जाती तो इस मामले को रोकने की कोशिश हो सकती थी।

    एमसीए ने आईएफआईएन के मौजूदा वैधानिक ऑडिटर – बीएसआर एंड एसोसिएट्स एलएलपी को जल्दबाजी में पद से हटाने की सिफारिश की है और डेलोइट, हास्किन्स और सेल के खिलाफ कार्रवाई की है, जो 2017-18 तक ऑडिटर थे, जब उनके अनिवार्य रोटेशन के कारण उन्हें बदल दिया गया था। वैधानिक लेखा परीक्षक के रूप में उनकी अवधि के दौरान धोखाधड़ी की गतिविधियां हुईं।

    एमसीए यह भी चाहता है कि कंपनी के प्रबंधन गुट की धोखाधड़ी से आईएफआईएन को जो नुकसान हुआ उसकी कंपनीज अधिनियम 2013 के तहत वसूली की जाए।

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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