अभिनेता आयुष्मान खुराना (Ayushmann Khurrana) जो लगातार मजबूत कंटेंट वाली फिल्में करते जा रहे हैं, उनका कहना है कि सिनेमा की दुनिया को कंटेंट को मुख्यधारा और गैर-मुख्यधारा में विभाजित करके भेदभाव नहीं करना चाहिए।
उनके मुताबिक, “अंधाधुन, बधाई हो, शुभ मंगल सावधान और बरेली की बर्फी के साथ मुझे जो मान्यता मिली है, उसने मुझे दर्शकों को गुणवत्ता और मनोरंजक सिनेमा प्रदान करने के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है, जिसे देखने वह सिनेमाघर में आये।”
“मेरे लिए, मुख्यधारा एक गाली है। मेरे लिए, मुख्यधारा का सिनेमा वो हर फिल्म है जिसे लोग अपने व्यक्तिगत कारणों के चलते देखना पसंद करते हैं। दुनिया ने लेबल विरोधी होने की प्रगति की है, अब वक़्त हो गया है कि हमारी इंडस्ट्री भी दर्शकों और फिल्मों को लेबल करना छोड़ दे।”
उन्हें लगता है कि मुख्यधारा को अब तक जिस तरह से परिभाषित किया गया है, वह अत्यंत तिरछा और भेदभावपूर्ण है। उन्होंने साझा किया-“हर फिल्म के अपने दर्शक होते हैं और हर फिल्म हर किसी से अपील करने के लिए नहीं होती है। यही फिल्मों की खूबसूरती है। यह व्यक्तिपरक है, यह एक अंतरंग और अत्यधिक व्यक्तिगत प्रतिक्रिया उजागर करता है और समान विचारधारा वाले लोगों का मनोरंजन करता है।”
“सिर्फ इसलिए कि एक फिल्म की अपील उसके अनुरूप नहीं होती जिसे कुछ लोग अखिल भारतीय समझते हैं, वह इसे एक गैर-मुख्यधारा की फिल्म नहीं बनाती है। व्यक्ति तुरंत फिल्मो को एक अलग संवेदनशीलता से आंक लेता है और मेरे लिए यह बेहद भेदभावपूर्ण है। मैंने यह भेदभाव की लड़ाई लड़ी है और आगे भी पूरे करियर के दौरान ऐसा जारी रखूँगा। शुक्र है कि मेरे कंटेंट विकल्पों ने काम किया है और साबित किया है कि हर तरह की फिल्म के लिए एक दर्शक है।”
“हमें केवल अखिल भारतीय मास एंटरटेनर वाले एक फिल्टर के माध्यम से ही फिल्म निर्माण नहीं देखना चाहिए। हम ऐसा करके फिल्मों से अर्थ और सौंदर्य बाहर कर देते हैं। यह एक साहसिक रचनात्मक अभिव्यक्ति का एक माध्यम है और हमें हर किसी के काम का जश्न मनाना चाहिए और विचारों और राय के बारे में समावेशी होना चाहिए। प्रत्येक फिल्म का एक अलग उद्देश्य होता है और शक्तिशाली और विभिन्न आवाज़ों और विचारों का होना बहुत अच्छी बात है।”
इस दौरान, अभिनेता जल्द अनुभव सिन्हा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘आर्टिकल 15’ में नज़र आयेंगे। फिल्म 28 जून को रिलीज़ हो रही है।