कहा जाता है कि राजनीति में कोई किसी का स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता। तभी 2019 लोकसभा चुनाव से 5 महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता में दोबारा वापसी करने से रोकने के लिए आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन की सुगबुगाहट दिल्ली के राजनितिक गलियारों में सुनाई दे रही है।
हालाँकि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की तरफ से अभी इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक रूप से बात करने को तैयार नहीं है लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो दोनों ओर से इसकी कोशिशें हो रही है।
बीते सप्ताह में विपक्षी दलों की बैठक में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के साथ हिस्सा लेने के बाद इन अटकलों को और बल मिला है। सूत्रों के अनुसार आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता इस संभावना को टटोल रहे हैं और दोनों पार्टियों को करीब लाने की कोशिश कर रहे हैं।
हालांकि ये इतना आसान नहीं है। आम आदमी पार्टी की नींव कांग्रेस विरोध पर रखी गई थी। कांग्रेस को दिल्ली की सत्ता से बेदखल करने के बाद पार्टी ने 2014 लोकसभा चुनाव में अपना एजेंडा कांग्रेस विरोध से हटा कर भाजपा विरोध पर शिफ्ट कर लिया जबकि उस वक़्त केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी।
लोकसभा चुनाव में पार्टी अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल खुद भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव में खड़े हो गए। पार्टी को चुनावों में बुरी तरफ से नाकारा गया। दिल्ली में सभी सात सीटों पर पार्टी हार गई।
अब आम आदमी पार्टी ने भाजपा को अपना मुख्य दुश्मन मानना शुरू कर दिया है। जबकि कांग्रेस के साथ पार्टी अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल को कई बार मंच साझा करते देखा गया।
कर्नाटक में कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण के अवसर पर मंच पर विपक्षी नेताओं के जमघट में अरविन्द केजरीवाल भी नज़र आये थे। इसके अलावा पिछले महीने दिल्ली में हुए किसान आन्दोलन के दौरान भी केजरीवाल ने विपक्षी नेताओं के साथ मंच साझा किया था। उस वक़्त मंच पर कांग्रसे अध्यक्ष राहुल गाँधी भी उपस्थित थे।
सूत्रों के अनुसार कांग्रेस के साथ गठबंधन की स्थिति में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस को दिल्ली की 7 सीटों में से 2 सीट से ज्यादा नहीं देगी।
हालाँकि कांग्रेस की दिल्ली इकाई आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं है। जबकि पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व ने गठबंधन के विकल्पों को खुला रखा है।