सरकार ने जन कल्याणकारी योजनाओं में पारदर्शिता लाने के नाम पर आधार को अनिवार्य तो जरूर कर दिया लेकिन देश में हजारों ऐसे गरीब हैं जो आधार कार्ड के चलते भूखों मर रहे हैं, यहां तक कि उनकी रोजी-रोटी भी बंद हो चुकी है।
सरकार जहां एक तरफ राशन कार्ड को आधार से जोड़े जाने के बाद खाद्य आवंटन में भ्रष्टाचार दूर होने की बात कर रही है वहीं दूसरी ओर यही आधार कुछ लोगों के लिए भूखों मरने का सबब बन चुका है। आइए देश के ऐसे कुछ उन पीड़ितों पर नजर डालते हैं जिनके पास अधार कार्ड तो है लेकिन यही आधार इन लोगों के लिए गलफांस बन चुका है।
भूखों मरने को विवश 8 ग्राम पंचायतों के मनरेगाकर्मी :
आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम जिले मुनगपाका मंडल की 20 पंचायतों में से 8 पंचायतों के मनरेगाकर्मियों को बैंक के जरिए भुगतान किया जाता है। सबसे बड़ी बात 8 पंचायतों के इन सभी मनरेगा मजदूरों के पास आधार कार्ड भी है लेकिन बेचारे रोटी-रोटी के लिए तरस रहे हैं। आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि इन मनरेगा मजदूरों का सालभर का मेहनताना अभी तक नहीं मिल पाया है।
कई बार ये मनरेगा मजदूर अपने बैंक खातों से आधार विवरण को लिंक करने की अर्जी डाल चुके हैं बावजूद इसके इनका आधार कार्ड काम नहीं करता है। ऐसे में आधार कार्डधारी ये मनरेगा मजदूर बिना मेहनताना पाए सालभर से दाने-दाने के लिए तरस रहे हैं।
मुनगपाका गांव की कहानी यह है कि इस गांव में कुल 480 मनरेगाकर्मी हैं जिनमें 20 लोगों को सालभर का मेहनताना नहीं मिल पाया है।
इसी गांव की एम रामुलम्मा का कहना है कि वो मनरेगा के सहारे ही अपने घर का खर्च चलाती थी लेकिन आधार कार्ड होने के बावजूद भी इनको सालभर का मेहताना नहीं मिल पाया है। रामुलम्मा बताती हैं कि बार-बार बैंक का चक्कर काटने के बावजूद भी उनके खाते में अबतक एक भी पैसा नहीं आया है। उनका कहना है कि आधार कार्ड का विवरण नहीं मिलता है ऐसे में बैंकवाले खाते में पैसे नहीं डालते हैं। आज उनका परिवार भूखों मर रहा है।
कुछ ऐसी ही कहानी इसी गांव की महिला मनरेगाकर्मी अर्जुनाअम्मा और पद्मा की भी है। अर्जुनाअम्मा का कहना है कि हर बार आधार कार्ड लेकर वो बैंक जाती हैं लेकिन बैंक वाले यही कहकर वापस लौटा देते हैं कि उनका आधार अपडेट नहीं है। ठीक यही हाल पद्या का भी है, पद्या कहती हैं कि वो हर रोज काम करने के लिए मनरेगा स्थल पर जाती हैं लेकिन सालभर से उन्हें मजूदरी नहीं मिली है। मुनगपाका गांव ही नहीं बल्कि पी अनंदापुरम और पतिपल्ली गांव के मनरेगा मजदूर भी कुछ इसी तरह से आधार कार्ड के शिकार बन चुके हैं।
आखिर इस विकलांग बच्चे की क्या गलती है:
आॅटिस्टिक से पीड़ित साढ़े आठ का नितिन भी आधार कार्ड के चलते ही दिन-दिनभर भूखों रह जाता है। दिल्ली जैसी राजधानी के मालवीय नगर इलाके में रहने वाला नितिन कोली आॅटिस्टिक से पीड़ित है जिसके चलते आधार कार्ड बनवाते समय वो अपनी उंगलियों के निशान नहीं दे पा रहा है। ऐसी स्थिति में इस बच्चे का आधार कार्ड नहीं बन पा रहा है। जिसका खामियाजा इस बच्चे को भूखे रहकर चुकाना पड़ता है।
नीतिन की मां अनीता कहती हैं कि घर में केवल उनके पास ही आधार है, ऐसे में उन्हें हर महीने केवल चार किलों गेहूं और एक किलो चावल मिलता है। इसी पांच किलों राशन से अनीता, नितिन और उसके पांच वर्षीय भाई आयुष कोली का पेट भरता है। विकलांग नीतिन कोली की मां अनीता कहती हैं कि उनका बेटा विकलांग है और ठीक ढंग से देख भी नहीं पाता है, ऐसे में उसका आधार कार्ड नहीं बन पा रहा है।
अनीता बताती हैं कि जब नितिन छोटा था तब उसका आधार कार्ड बनवाया था लेकिन अब उसका आधार कार्ड अपडेट नहीं हो पा रहा है, इसके लिए आधार केंद्रों का चक्कर लगाकर थक चुकी हूं। हर जगह से यही सुनने को मिलता है कि किसी दूसरी जगह जाओ।
काल के गाल में समा गई 10 साल की यह बच्ची:
झारखंड के सिमडेगा एक ऐसा परिवार जिसे आठ महीने से राशन नहीं दिया गया। गलती सिर्फ इतनी थी कि इस परिवार ने अपना राशन कार्ड आधार से लिंक नहीं करवाया था। घर में खाने को राशन नहीं था और चार दिन तक भूखा रहने के बाद दस साल की संतोषी कालकवलित हो गई।
इस गरीब की पुकार काश आधार नहीं होता…
रांची जिले के सिल्ली डीह प्रखंड के जगदीश हजाम को डीलर राशन नहीं दे रहा है। जगदीश हजाम का कहना है कि वो हर माह अपना अंगूठा लगाकर राशन ले आते थे लेकिन आधार कार्ड डीलर के बायोमिट्रिक मशीन में अपलोड नहीं हैं, ऐसे में डीलर उन्हें राशन नहीं देता है।
जगदीश हजाम बतातें हैं कि उनकी मां के पास लाल कार्ड है। उनका कहना है कि वो इसी कार्ड के सहारे राशन ले आते थे।
उन्होंने बताया कि राशन के लिए पिछले दो महीनों में उन्होंने डीलर के यहां पांच बार चक्कर लगाया लेकिन डीलर ने यह कहते हुए राशन देने से इनकार कर दिया कि उनका आधार नंबर बायोमिट्रिक मशीन में मैच नहीं कर पा रहा है। जगदीश कहते हैं काश यह आधार नहीं होता।
पीएम मोदी ने इस वर्ष फरवरी महीने में लोकसभा में बयान जारी किया था कि आधार के जरिए चार करोड़ फर्जी राशन उपभोक्ता का पता लगाया जा चुका है और सरकारी खजाने को करीब 14 14 हजार करोड़ रुपए की चपत से बचाया जा चुका है। लेकिन क्या पीएम मोदी बताएंगे कि बिना मेहनताने के जीवन-यापन कर रहे मनरेगाकर्मियोें, नितिन कोली जैसे देश के हजारों विकलांगों तथा जगदीश हजाम जैसे उन लोगों का क्या होगा जो आधार कार्ड के होते ही भी भूखों मरने पर विवश हैं।