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    आईसी 814 अपहरण

    इंडियन एयरलाइन्स की उड़ान संख्या 814, 24 दिसंबर 1999 को अपनी नियमित उड़ान के तहत नेपाल के काठमांडू अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डे से दिल्ली के इंदिरा गाँधी अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डे तक जा रही थी जब उसका हरकत-उल-मुजाहिदीन के आतंकियों ने अपहरण कर लिया था।

    इस यात्री विमान में 15 क्रू मेंबर सहित 191 लोग सवार थे। इस उड़ान की कमान कप्तान देवी शरण ने संभाली हुई थी व अनिल शर्मा इसके मुख्य कर्मी दल थे।

    जैसे ही शाम साढ़े पांच के करीब यह विमान भारतीय वायु सीमा के अंदर पहुंचा वैसे ही विमान में मौजूद पांच आतंकियों में से एक अपनी कुर्सी से उठा और प्लेन को बम से उड़ा देने की धमकी दी। इसके बाद उसने विमान के कप्तान को इसे पश्चिम की ओर मोड़ने को कहा और फिर इसे लाहौर ले जाने का आदेश दिया।

    तब तक विमान में मौजूद अन्य 4 आतंकी भी अपनी कुर्सी से उठे और विमान में अलग-अलग जगह अपने लिए जगह ले ली। विमान में ईंधन की कमी बताते हुए पायलट्स ने विमान को पंजाब

    के अमृतसर में उतरवाने के लिए आतंकियों को मना लिया। इस दौरान भारतीय अधिकारियों को मौका मिला कि वे इसे अमृतसर में ही रोके रख सकें। पंजाब पुलिस का आतंक विरोधी दस्ता इस वक्त विमान में घुसने के लिए तैयार था मगर दिल्ली में बैठे संकट प्रबंधन समूह (सीएमजी) ने इसकी अनुमति नहीं दी क्योंकि वे किसी भी तरह की जान के नुकसान खतरा नहीं चाहते थे।

    आतंकियों के बढ़ते दबाव के बीच पायलट्स को एक घंटे के भीतर ही दोबारा उड़ान भरनी पड़ी। इस तरह भारत ने इस घटना का हल विमान के भारत में ही रहते हुए निकालने से चूक गया।

    इसके बाद विमान पाकिस्तान के लाहौर की तरफ़ बढ़ चला। भारत के साथ हुए हाल ही में कारगिल युद्ध की वजह से पाकिस्तान के अधिकारी किसी भी तरह से अपने आप को इस घटना के साथ जोड़कर नहीं देखना चाहते थे। इसलिए  जब विमान लाहौर के करीब पहुंचा तो लाहौर हवाई अड्डे की सारी बत्तियां बुझा दी गयीं। पायलट्स विमान को अपनी सहज बुद्धि से उतारने की कोशिश करने लगे जब उन्हें पता चला कि जहाँ वे उतरने की कोशिश कर रहे थे, असल में वह आम गाड़ियों के लिए बनी रोड थी।

    हवाई अड्डे के अधिकारियों ने इसे देखते हुए रनवे की बत्तियां दोबारा चालू कर दी और विमान ने आखिरकार लाहौर में आपातकालीन लैंडिंग की। हालांकि इसके बाद तुरंत ही विमान में दोबारा ईंधन भरा गया और उसे पाकिस्तान की सरज़मीं से बाहर जाने का आदेश दे दिया गया।

    अबकी बार विमान को दुबई के नौसैनिक हवाई अड्डे में उतारा गया जहाँ पर 27 यात्रियों को विमान से उतारने की इजाज़त दी गई। इनमें से एक 25 वर्षीय रुपन कतियाल भी दे जिन्हें आतंकियों द्वारा कई बार चाकू मारी गई थी। उन्हें दुबई के डॉक्टरों ने विमान से उतारने के बाद मृत घोषित कर दिया। प्लेन के दुबई में ठहरे रहने के दौरान भारतीय अधिकारी कमांडो ऑपरेशन के तहत विमान पर धावा बोल कर विमान को अपने नियंत्रण में लेना चाहते थे जिसकी अनुमति यूएई की सरकार ने नहीं दी।

    विमान ने इसके बाद अफ़ग़ानिस्तान के कांधार के लिए उड़ान भरी जो उस समय तालिबान के नियंत्रण में था। विमान में मौजूद अपहरणकर्ताओं ने विमान और उसमें बैठे यात्रियों को सुरक्षित छोड़ने के लिए भारत की जेलों में कैद कुछ आतंकियों की रिहाई की शर्त रखी। इनमें मौलाना मसूद अज़हर, ओमर सईद शेख और मुश्ताक़ अहमद ज़रगर शामिल थे। कांधार में तालिबान ने इस दौरान भारत सरकार और आतंकियों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाई।

    यह मामला और एक हफ्ते तक जारी रहा और आख़िरकार केंद्र में तत्कालीन वाजपेयी सरकार को अपहरणकर्ताओं की मांगों के आगे झुकना पड़ गया। तब के विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने तीन आतंकियों के साथ विशेष प्लेन में कांधार के लिए उड़े। उनके विमान के कांधार में उतरने और आतंकियों को छोड़ने के बाद उड़ान संख्या आईसी-814 को अपहरणकर्ताओं ने मुक्त कर दिया और उसने वापस भारत के लिए उड़ान भरी। उसी दिन यानि 31 दिसंबर, 1999 को विमान ने वापस भारत में लैंड किया।

    सरकार की हालातों से निपटने में नाकामी:

    रुपन कतियाल इस हमले में अकेले हताहत होने वाले व्यक्ति थे। मगर वाजपेयी सरकार इस घटना से सही रूप से निपटने में ज़ाहिर तौर पर पूरी तरह नाकाम रही थी। और इस पूरे घटनाक्रम के दौरान भारतीय एजेंसियों की मुश्किल के समय में हालातों से निपटने में नाकामी और अक्षमता खुलकर सामने आई।

    तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी को विमान के अपहरण होने के 100 मिनट तक कोई जानकारी नहीं थी। वे उस समय,वायुसेना के विशेष विमान से दिल्ली आ रहे थे और विमान के दिल्ली में उतरने के बाद ही उन्हें इस बारे में सूचित किया गया। अमृतसर में उतरने के पूरे 45 मिनट तक विमान अमृतसर हवाई अड्डे पर खड़ा रहा इसके बाद भी किसी भी प्रकार के कमांडो ऑपरेशन का क्रियान्वन नहीं किया जा सका।

    इसकी वजह एनएसजी (ब्लैक कमांडो) जोकि आतंकी विरोधी ऑपरेशन को अंजाम देने में सक्षम दल है उसके पास किसी प्रकार के विमान का न होना था जो उनको अमृतसर तक जल्द से जल्द पहुंचा सकता था। साथ ही अपहृत विमान को और देर अमृतसर में रोके रखने की कोशिश भी विफल रही।

    भारत दुबई में कमांडो ऑपरेशन करना चाह रहा था जिसके लिए संयुक्त राष्ट्र अमीरात की सरकार राज़ी नहीं थी। भारत सरकार को अमरीका से भी निराशा हाथ लगी जिसका कि खाड़ी देशों पर अच्छा प्रभाव है मगर उसने भी अमीराती सरकार पर दबाव डालने की कोई कोशिश नहीं की।

    भारत सरकार को जिन तीन आतंकियों को छोड़ना पड़ा उनमें से मौलाना मसूद अज़हर के ऊपर साल 2001 में हुए संसद भवन पर हमले का आरोप गया। जैश-ए-मोहम्मद संगठन की शुरुआत भी उसी ने की और उसके पाकिस्तान में अभी भी खुला घूमने का शक है।

    ओमर शेख के ऊपर अमरीका में 9/11 के हमलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का शक है और पत्रकार डेनियल पर्ल के अपहरण और हत्या के आरोप भी उस पर लगे। 2002 में पाकिस्तान की पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया और तब से अभी तक वह पाकिस्तान की जेल में बंद है।

    अहमद ज़रगार के ऊपर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकियों को ट्रेनिंग देने का आरोप है, जिनका इस्तेमाल जम्मू और कश्मीर में हिंसा फ़ैलाने के लिए किया जाता है।

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