अंतरराष्ट्रीय आपराधिक अदालत के अभियोक्ता ने रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ कथित अपराध पर पूरी जांच को अगले स्तर पर ले जाने की मांग की है। रोहिंग्या शरणार्थी म्यांमार से सैन्य अत्याचारों के कारण बांग्लादेश की सरहद पर आये थे और वहां शिविरों में गुजर-बसर को मज़बूर है।
अभियोक्ता ने कहा कि “सितम्बर 2018 में प्रारंभिक जांच खुलने के बाद वह विभाग से इस हालातों की जांच को करने का आग्रह करेंगी।” बहरहाल म्यांमार इस अदालत का सदस्य नहीं है। आईसीसी पहले से ही दृढ़ है कि क्षेत्र में संभावित अपराध उनके अधिकार क्षेत्र में हैं।
इसका कारण कथित सीमा पार जबरन निर्वासन और बांग्लोदश का आईसीसी का सदस्य होना है। बौद्ध बहुल देश में रोहिंग्या मुस्लिमों को बांग्लादेश के बंगाली कहा जाता है जबकि उनके पूर्वज दशकों से उस सरजमीं पर जीवन यापन कर रहे हैं।
उन्हें साल 1982 से नागरिकता देने के लिए इंकार किया जाता है और इससे वह बेघर हो गए और उन्हें आज़ादी व मूल अधिकार से वंचित कर दिया गया था।
हालिया संकट की शुरुआत साल 2017 में रोहिंग्या चरमपंथी समूह ने म्यांमार के सुरक्षा सैनिको पर हमला किया था। इसकी प्रतिक्रिया म्यांमार की सेना ने एक बर्बर अभियान से दी और उन पर बलात्कार, हत्या और घरो को आगजनी करने के आरोप लगाए थे।
संयुक्त राष्ट्र ने शुक्रवार को 270000 से अधिक बांग्लादेश में निर्वासित रोहिंग्या शरणार्थियों के पंजीकरण की पुष्टि की है और भविष्य में स्वेच्छा से म्यांमार वापस लौटने के अधिकारों की रक्षा के लिए पहचान पत्र मुहैया किये जा चुके है।
यूएन उच्चायुक्त फिलिपो ग्रान्डी ने कॉक्स बाजार की हालिया यात्रा के दौरान कहा कि “पहचान होना ही मूल मानव अधिकार है। याद रखिये कि इनमे से अधिकतर लोगो की पूरी जिंदगी कोई उचित पहचान नहीं रही थी। अत्यधिक उन्नत जीवन के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम है।”