पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने शुक्रवार को असहिष्णुता और मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चिंता व्यक्त की, साथ ही समृद्ध और गरीबों के बीच बढ़ती खाई और देश का ज्यादातर पैसा अमीरों की जेब में जाने पर भी चिंता व्यक्य की।
प्रणव मुखर्जी ग्रामीण और औद्योगिक विकास अनुसंधान केंद्र (सीआरआरआईडी) के साथ प्रणव मुखर्जी फाउंडेशन द्वारा आयोजित ‘शांति, सद्भावना व प्रसन्नता की ओर: संक्रमण से परिवर्तन’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर बोल रहे थे।
मुखर्जी ने कहा, ‘जिस देश ने दुनिया को ‘वसुधैव कुतुंबकम’ और सहिष्णुता, स्वीकृति और माफी के सभ्यतावादी सिद्धांतों की अवधारणा दी है वह अब असहिष्णुता के बढ़ते स्तर, क्रोध के अभिव्यक्तियों और मानवाधिकारों के उल्लंघन की खबरों के कारण सुर्ख़ियों में है।
जब राष्ट्र बहुलवाद और सहिष्णुता का स्वागत करता है तो वह विभिन्न समुदायों में सद्भाव को प्रोत्साहन देता है। हम नफरत के जहर को हटाते हैं और अपने रोजमर्रा के जीवन में ईर्ष्या और आक्रमकता को दूर करते हैं तो वहां शांति और भाईचारे की भावना आती है। सबसे ज्यादा खुशहाली उन देशों में होती है जो अपने नागरिकों के लिए मूलभूत सुविधाएं और संसाधनों को सुनिश्चित करते हैं, उन्हें सुरक्षा देते हैं, स्वायत्ता प्रदान करते हैं और सूचना तक लोगों की पहुंच होती है
उन्होंने कहा ‘शांति और सद्भाव तभी कायम रहता है जब एक राष्ट्र बहुलवाद सहिष्णुता को प्रोहत्साहन देता है। जब सहिष्णुता के सिद्धांतों पर चलता है तो वह विविध समुदायों के बीच सद्भावना को बढ़ावा देता है और जब हम अपने रोजमर्रा के जीवन से घृणा, ईर्ष्या और आक्रामकता के विष को निकाल फेंकते हैं तो वहां सद्भाव और भाईचारा आता है’।
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि ‘वो देश अधिक खुशहाल हैं जो अपने निवासियों को बुनियादी सुविधाएं और संसाधन, अधिक सुरक्षा, स्वायत्तता और आजादी के साथ-साथ पर्याप्त शैक्षिक अवसरों और जानकारी अपनी जनता तक पहुँचाना सुनिश्चित करते हैं। उस देश के लोग ज्यादा खुशहाल हैं जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी है और लोकतंत्र सुरक्षित है’।