भारत और पड़ोसी देशों के बीच कलह का माहौल बना हुआ है ऐसे में अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी की नई दिल्ली यात्रा कुछ राहत पहुंचा सकती है।
नेपाल में वामपंथी सरकार के सत्ता में काबिज होने के बाद उनका झुकाव चीन की तरफ बढा है।
मालदीव ने अपने राजदूत को वापस बुलाकर भारतीय विमानों को लौटाने को कहा।
वहीं बांग्लादेश रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय पर भारतीय रुख से खफा है।
इस नाराज़गी के माहौल में अफगान का भारत की तरफ नरम रुख से पेश आना नई दिल्ली के लिए शुभ संकेत हैं।
रिपोर्ट के अनुसार अफगानी राष्ट्रपति भारतीय पीएम से मुलाकात करेंगे। यह वार्ता भारत और अफगान के बीच साल 2011 में हुई अफगानिस्तान के रणनीतिक साझेदारी के तहत होगी।
इसके इतर दोनो देशों के मध्य सामरिक मुद्दों पर वार्ता होती रही है।
अफगानिस्तानी राजदूत ने कहा कि अफगानिस्तान इस वक्त बेहद नाजुक हालत में है ऐसी स्थिति में काबुल को अपने सहयोगी देशो के साथ आतंकवाद के खात्मे और सुरक्षा जैसे मसलों पर बातचीत करनी होगी।
अफगानिस्तान को आतंकियों ने अपना गढ़ बना रखा है हाल ही में अफगानिस्तान में आतंकियों ने हमला कर 27 सुरक्षा कर्मियों को मौत के घाट उतारा था।
काबुल के छठे सबसे बड़े शहर को आतंकियों ने तहस नहस कर 100 सुरक्षा अधिकारियों को मार दिया।
अफगानिस्तान राजनीति अस्थिरता की भी मार झेल रहा है। अमेरिका और रूस परस्पर विरोधी बने हुए हैं।
अफगानिस्तान में संसदीय चुनाव अगले माह और राष्ट्रपति चुनाव अगले वर्ष होने की संभावना है। लेकिन अफगान की ऐसी स्थिति चुनाव की इजाज़त नहीं देती।
हाल ही में अफगानिस्तान के अमेरिकी राजदूत ने बयान दिया कि पाकिस्तान ने भारत-अफगानिस्तान व्यापार मार्ग खोलने की इच्छा जाहिर की है।
अब्दाली ने कहा कि पाकिस्तान की नवनिर्वाचित सरकार के अफगान नीति में बदलाव करने की उम्मीद है।
अलबत्ता अफगानिस्तान अगर अपनी सरजमीं पर आतंकवाद का कड़वा घूंट पीता रहेगा तो पाकिस्तान सरकार की बॉर्डर पार से आ रहे आतंकवाद के खिलाफ बनाई नीति में कोई बदलाव नहीं होगा।
दोनो देशों के प्रमुख रक्षा, बचाव और रक्षा हथियारों के विषय पर बातचीत करेंगे।
हाल ही में दोनों देशों ने समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
इसमे भारत ने वादा किया था कि अफगानिस्तान को चार विमान देंगे।