नई दिल्ली, 4 जुलाई (आईएएनएस)| उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र से 358 लौह अयस्क खनन पट्टों को रद्द करने की मांग पर जवाब दाखिल करने को कहा है।
यह आदेश उन खनन पट्टों के संबंध में है जोकि बिना किसी मूल्यांकन एवं उचित नीलामी प्रक्रिया के आवंटित किए गए थे। जस्टिस एस.ए. बोबडे और बी. आर गवई की पीठ ने सरकार से चार सप्ताह के अंदर अपना जवाब देने को कहा है।
याचिकाकर्ता वकील मोहन शर्मा ने खान और खनिज (विकास और विनिमय अधिनियम) 1957 की धारा 8 ए को भी रद्द करने की मांग की।
शर्मा ने तर्क दिया कि लौह अयस्क खनन पट्टों का विस्तार शीर्ष अदालत 2012 के फैसले के उल्लंघन में था, जिसके अनुसार खानों को केवल मूल्यांकन व नीलामी के साथ ही पट्टे पर दिया जा सकता है।
शीर्ष अदालत की पांच न्यायधीशों की संविधान पीठ ने 27 सितंबर 2012 के अपने बहुमत के फैसले में कहा था कि नीलामी एक बेहतर विकल्प हो सकता है जिसका उद्देश्य राजस्व को बढ़ाना है। मगर प्राकृतिक संसाधनों की नीलामी के अलावा अन्य तरीका बंद भी नहीं किया जा सकता।
याचिकाकर्ता ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा खनन पट्टों के आवंटन व विस्तार में अदालती निगरानी की जांच के अलावा खनन किए गए लौह अयस्क के बाजार मूल्य की वसूली के लिए भी निर्देश की मांग की।
इसके अलावा याचिकाकर्ता ने संपूर्ण देश के लौह अयस्क और खनिजों के 358 से अधिक खानों के आवंटन को समाप्त करने के लिए दिशानिर्देशों की मांग की है। इसमें कहा गया है कि पट्टों को बिना किसी नए मूल्यांकन या नीलामी के फर्मो को विस्तारित किया गया है।
इसी के साथ याचिकाकर्ता ने जांच एजेंसी को इस संबंध में मामला दर्ज करने और खदानों के आवंटन प्रक्रिया की जांच करने की मांग की है।
शर्मा ने आरोप लगाया कि कथित रूप से बड़े दान के बदले 2014-15 में खनन पट्टों से सरकार के खजाने को 4 लाख करोड़ रुपये का वित्तीय नुकसान पहुंचा है। इस नुकसान की भरपाई के लिए उन्होंने 358 खदान पट्टों की नीलामी कराने की भी मांग की है।