अलोहा (aloha) कंप्यूटर नेटवर्किंग में इस्तेमाल होने वाला एक टूल है, जो एक सिस्टम की तरह काम करता है, जिसका इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के कम्युनिकेशन के लिए किया जाता है।
अलोहा को सबसे पहले 1970 में बनाया गया था और उस समय इसका इस्तेमाल रेडियो प्रसारण के लिए किया जाता था। इसके बाद हालाँकि अलोहा सिस्टम का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के कंप्यूटर नेटवर्क जैसे सैटेलाइट, इन्टरनेट आदि के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा है।
अलोहा को 1980 के दशक में 1जी फोन आदि में इस्तेमाल किया जाता था। इसके बाद इसे 2जी और 3जी नेटवर्क के लिए लांच किया गया था।
सन 2000 के बाद जब जीपीआरएस सिस्टम चलन में आया था, उसके बाद से अलोहा का इस्तेमाल सामान्य हो गया था।
विषय-सूचि
अलोहा कैसे काम करता है? (function of aloha in hindi)
जब किसी चैनल पर दो या दो से अधिक सिस्टम एक साथ कम्यूनिकेट यानी संचार करने की कोशिश करते हैं, तब उनमे होने वाले टकराव को संभालने का काम अलोहा करता है।
इस काम के लिए अलोहा एक नोड ट्रांसमिट करता है जो चैनल पर प्रसारित हो रहे डेटा का पता लगाता है। यदि एक साथ दो या उससे अधिक नोड ट्रांसमिट हो जाते हैं, तो अलोहा अपनी क्षमता के अनुसार इसे नियंत्रित करता है।
अलोहा का मतलब (meaning of aloha in hindi)
अलोहा का मतलब होता है, ‘हेल्लो’. अलोहा डेटालिंक लेयर पर एक प्रोटोकॉल की तरह काम करता है, जो किसी चैनल पर विभिन्न साधनों के संचार को कण्ट्रोल करता है। यह सुनिश्चित करता है, कि चैनल पर एक बार में एक ही सिग्नल पास हो।
साल 1972 में, एक वैज्ञानिक नें एक ऐसे प्रोटोकॉल का अविष्कार किया, जिसने अलोहा की कार्य क्षमता को दोगुना कर दिया। इसे स्लॉटेड अलोहा प्रोटोकॉल नाम दिया गया था।
इस प्रकार का अलोहा प्रोटोकॉल समय को छोटे-छोटे इंटरवल में बाँट देता है, और प्रत्येक इंटरवल एक निश्चित फ्रेम के लिए होता है। यह प्रोटोकॉल विभिन्न नोड के बीच एक तालमेल बैठा देता है, जिससे उनमें टकराव ना हो।
सबसे पहले बने अलोहा को प्योर अलोहा (Pure ALOHA) कहा गया और बाद में नए बने अलोहा को स्लॉटेड अलोहा (Slotted ALOHA) कहा गया।
प्योर अलोहा क्या है? (pure aloha in hindi)
फ्रेम के आवागमन के दौरान फ्रेम का कोई भी हिस्सा एक दुसरे के साथ मिलना नहीं चाहिए, यदि ऐसा होता है, तो दोनों में टकराव पैदा हो जाएगा।
यदि किसी फ्रेम का कोई हिस्सा टकराता है, तो वह पूरा फ्रेम नष्ट हो जाएगा।
उदाहरण के लिए यहाँ दिया गया चित्र देखें:
यहाँ दिखाए गए चित्र में सिर्फ फ्रेम 1.1 और फ्रेम 3.2 ही अपनी मंजिल तक पहुंचेंगे और बाकी फ्रेम नष्ट हो जायेंगे।
ऐसा इसलिए है, क्योंकि बाकी सभी फ्रेम कहीं ना कहीं एक दुसरे से टकरा रहे हैं।
प्योर अलोहा की कार्य प्रणाली (operation in pure aloha in hindi)
- सभी चैनल एक निश्चित नोड के जरिये अपने सिग्नल भेजते हैं।
- जिस ओर सिग्नल पहुंचते हैं, वह नोड यह सुनिश्चित करता है, कि नोड पहुंचे हैं या नहीं।
- यदि बीच में किसी प्रकार का टकराव होता है, तो नोड को यह पता चल जाता है क्योंकि सिग्नल बीच में ही नष्ट हो जाता है।
- यदि सिग्नल नष्ट हो जाता है, तो नोड कुछ देर इंतजार करते हैं और फिर दूसरा सिग्नल भेजते हैं।
- यदि संचार के बाद फिर से टकराव होता है, तो यह प्रक्रिया फिर से शुरू हो जाती है।
- यदि बार-बार सिग्नल टकराते रहते हैं, तो एक समय ऐसा आता है जब स्टेशन सिग्नल देना बंद कर देता है और इसे बाद में फिर से आरम्भ किया जाता है।
स्लॉटेड अलोहा (slotted aloha in hindi)
प्योर अलोहा में नोड पर ऐसी कोई पाबंधी नहीं थी, जिससे वे समयानुसार सिग्नल भेज सकें। इसी वजह से कई बार टकराव की स्थिति बनती थी।
इस कमी को पूरा करने के लिए अलोहा का एक अच्छा संस्करण निकाला गया, जिसे स्लॉटेड अलोहा नाम दिया गया।
स्लॉटेड अलोहा की प्रक्रिया (working of slotted aloha in hindi)
- सभी नोड के लिए एक निश्चित समय बनाया गया, जिसके दौरान ही वे सिग्नल यानी फ्रेम भेज सकते थे।
- कोई भी नोड समय शुरू होने पर ही फ्रेम भेज सकता था। यदि वह चूक जाता है, तो उसे अगले समय के स्लॉट का इंतजार करना पड़ेगा।
स्लॉटेड अलोहा को समझने के लिए निम्न चित्र को देखें:
इसमें नोड 2.1 और 3.1 में टकराव हो रहा है। इसी प्रकार नोड 1.2 और 4.1 में भी टक्कर हो रही है।
स्लॉटेड अलोहा की कार्य प्रक्रिया (operations in slotted aloha in hindi)
- जब किसी नोड को कोई सिग्नल या फ्रेम भेजना होता है, तो यह अगली समय सीमा का इंतजार करता है और उसके शुरू होने के बाद ही फ्रेम भेजता है।
- किसी भी प्रकार की टक्कर को पहले से ही भांप लिया जाता है और उसी के अनुसार फ्रेमों को एडजस्ट कर दिया जाता है।
- यदि फिर से टक्कर होने की सम्भावना होती है, तो इन्हीं क़दमों को दोहराया जाता है।
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