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    अरिजीत शास्वत भागलपुर बिहार

    स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य-मंत्री अश्वनी कुमार चौबे के पुत्र अर्जित शास्वत भागलपुर पुलिस की हिरासत में हैं।

    17 मार्च को हिन्दू नववर्ष पर भागलपुर में निकाली गयी रैलियों ने साम्प्रदायिक तनाव का रूप ले लिया था। कुछ मुस्लिम इलाकों में विरोध के बाद तोड़-फोड़ व आगजनी हुई थी।

    प्रशासन ने कई इलाकों में धारा 144 लगा दिया था। पुलिस व अर्ध-सैनिक बलों ने भागलपुर में फ्लैग मार्च भी किया था।

    इन घटनाओं के बाद बड़ी संख्या में उपद्रव के आरोपियों को गिरफ्तारी हुई थी।

    हालांकि कई मामलों में आरोपी शास्वत का नाम होने के बावजूद उन्हें गिरफ्तार करने में लम्बा समय लगा।

    बिहार की राजनीति में लम्बे समय तक यह मुद्दा गरमाया रहा। लालू यादव के पुत्र व पूर्व उपमुख्य-मंत्री तेजस्वी यादव ने नीतीश यादव पर तीखे हमले करते हुए उन्हें लाचार तक बता दिया हैं।

    अश्वनी चौबे ने अपने बेटे पर दायर एफआईआर की खबरों को झूठ का पुलिंदा बता कर कूड़ेबान में फेंकने की बात कह चुके हैं।

    नीतीश कुमार सरकार ने कई मामलों में शास्वत को मुख्य अभियुक्त बनाया है। इस मुद्दे पर जद(यू) व भाजपा आमने-सामने नजर आ रही है।

    हालांकि खबरें आ रही थी कि भाजपा और जदयू में शास्वत की जमानत के लिए समझौता हो चुका है, पर कोर्ट के जमानत को रद्द करने के बाद इन अटकलों पर विराम लग गया हैं।

    स्वविरोधी बयान

    इस मामले में बिहार पुलिस का रवैया उदासीन रहा है। शास्वत के परिवार की मानें तो उन्होंने शनिवार रात को ही पटना में पुलिस को समर्पण कर दिया था। पर भागलपुर के पुलिस अधीक्षक दावा कर रहे हैं कि उन्हें गिरफ्तार किया गया है।

    तथ्यों में परस्पर विरोध बिहार पुलिस के ऊपर बने विरोध को दर्शाता है।

    आज सुबह शास्वत को भागलपुर के न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया।

    राजनैतिक उथल-पुथल

    बिहार में रामनवमी व नववर्ष की आसपास शुरू हुए दंगों का सिलसिला बिहार की राजनीति को एक उथल-पुथल से भरा मोड़ दे रहे हैं।

    अर्जित शास्वत को नए हिंदूवादी नेता के तौर पर प्रदर्शित किया जा रहा है। और इन मुद्दों से तेजस्वी यादव राष्ट्रीय जनता दल के मुस्लिम वोट बैंक को और मजबूत कर रहे हैं।

    सामाजिक परिदेश्य

    इन घटनाओं को किसी हालत में अच्छा नहीं ठहराया जा सकता है। पर ऐसे में प्रतीत होता है कि जातिवाद से पीड़ित बिहार के समाज में साम्प्रदायिकता का नया रंग जुड़ रहा है।

    सम्भावना है कि ये सांप्रदायिक रंग हिंदुओं को भाजपा के बैनर तले एक कर दे और जातिवाद का राजनीति से वर्चस्व खत्म हो जाये।

    ऐसे में भाजपा के लिए अच्छी खबर है और राजद के लिए अपना मुस्लिम-यादव समीकरण बचाने की चुनौती है।

    जद(यू) इस बवाल के बीच पार्श्व में दिख रही है। मुख्यमंत्री का निर्णय चाहे जातिवाद करे या सांप्रदायिक रूप ले, जद(यू) व नीतीश कुमार पूरी बहस में सुरक्षात्मक रुख बनाये हुए हैं।

    भविष्य

    इन दंगों व उथल-पुथल का व्यापक असर 2019 के लोकसभा चुनाव में पता चलेगा। सम्भावना है कि शास्वत भाजपा के मुख्य प्रचारक बन कर उभरें। भाजपा उनकी छवि यूपी के योगी की तरह पेश करने की कोशिश कर सकती है।

    इसके अलावा नीतीश सरकार को जनता का विरोध देखने को मिल सकता है।

    जो नीतीश कुमार बिहार को दंगा मुक्त बनाने के लिए वोट लेते आये हैं, वे आज बीजेपी का पूरा समर्थन कर रहे हैं।

    भागलपुर में दंगों का इतिहास

    शास्वत ने भागलपुर में एक ऐसे दानव को जगाने की कोशिश की है जो कई वर्षों से सोया था। और भागलपुर में कोई नहीं चाहेगा कि वो जागे।

    1989 के साम्प्रदायिक दंगों में पूरा भागलपुर जला था। सैकड़ों लोगों की जानें गयी थीं। परिवार के परिवार पलायन कर गए थे।

    नितीश के चुनावी वादों मे से एक था उन लोगों को सजा दिलाना जो इन दंगों में आरोपी थे। 2015 में एक आरोपी दशकों बाद पकड़ा गया था।

    बिहार की जनता को नौकरियां चाहिए, तलवारें नहीं, अगर उन्हें जबरदस्ती तलवार दी गयी तो अंजाम भयानक होंगे। बिहार एक और रणवीर सेना और मांझी आंदोलन झेलने की स्थिति में कतई नहीं है।

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