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    अरुण बनाम कपिल

    गुजरात विधानसभा चुनाव में जब से राहुल गाँधी के धर्म का मुद्दा उठा है तब से चुनाव के सारे मुद्दे कहीं गायब हो गए है। बड़े बड़े राजनेता अब सिर्फ धर्म की ही बात कर रहे है।

    राहुल का हिन्दू होना या ना होना दोनों पक्षों के लिए महत्वपूर्ण सवाल है। कहीं न कही इसी सवाल पर राजनीतीक पार्टियां चुनाव जीतने के सवप्न भी देख रही है। हिन्दू होना राजनीतिक दलों की योग्यता है या इस चुनाव में मात्र हिन्दू होना ही सबसे बड़ी योग्यता है। सवाल इसलिए भी बड़ा है क्यूंकि इस मुद्दे पर दोनों ही पार्टिया आमने सामने है।

    कपिल सिब्बल भले ही पेशे से एक वकील और राजनेता हो लेकिन धर्म को लेकर उनकी दावेदारी किसी महान पंडित से कम नहीं है। कपिल जी को चुनावी मौसम में यह पता है कि हिन्दू कौन होते है और कौन हिन्दू नहीं होते है। उन्होने ने राहुल के धर्म पर वार करने वालों को आड़े हाथों लेते हुए कहा है कि “मोदी कोई हिन्दू नहीं है क्यूंकि उन्होने कट्टरवादी विचारधारा को आगे बढ़ाया है।” 

    कपिल जो बोल रहे है सो बोल रहे है लेकिन यह बात तो सब जानते है कि मोदी का धर्म हिन्दू ही है और बीजेपी का एजेंडा हमेशा से हिंदूवादी ही रहा है, फिर क्या कारण है कि चुनाव में खुद बीजेपी इस बात को डंके की चोट पर कह रही है कि हम ही असली हिन्दू पार्टी है? अरुण जेटली ने कपिल सिब्बल को जवाब देते हुए कहा है कि “कांग्रेस का हिन्दू प्रेम छलावा है जबकि हमारा हिन्दू प्रेम जगजाहिर है। हम हमेशा हिन्दुओं की भावनाओं का सम्मान करते आए है।” 

    बात जितनी छोटी लग रही है उतनी है नहीं। खुद राहुल गाँधी ने हिन्दू होने के प्रमाण देते हुए कहा है कि वो शिव भक्त हिन्दू है लेकिन धर्म उनका निजी मामला है। सोचने वाली बात है कि राहुल को यह क्यों कहना पड़ रहा है कि वो शिव भक्त हिन्दू है? सवाल यह भी है कि जब राहुल खुद को पूरी मीडिया के सामने ‘शिव भक्त हिन्दू’ कह रहे है तो यह मामला उनका निजी मामला कैसे है? निजी मामलों के लिए मीडिया को कौन बुलाता है? इन सभी प्रशनो का जवाब यही है कि धर्म जैसे मामले भारतीय चुनाव में कभी निजी नहीं होते। राजनीति में धर्म हमेशा सार्वजनिक ही होता है।

    गुजरात में जिस तरह से हिन्दू होने की या हिन्दू कहलाने की मारामरी हो रही है उस पर बाकि राजनीतिक पार्टियों ने भी मौन तोडा है। धर्म की राजनीति पर सबसे ज्यादा दुख है मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख असद्दुदीन ओवैसी को। उन्होने राजनीतिक पार्टियों पर धार्मिक कार्ड खेलने का आरोप लगाते हुए कहा है कि “कांग्रेस और बीजेपी यह विवाद पैदा कर दलितों और आदिवासियों को क्या यह बताना चाहती है कि वह तुच्छ हैं”

    असद्दुदीन का सवाल वाजिब है कि क्यों पार्टिया हिन्दू कहलाना पसंद कर रही है? और उनके हिन्दू प्रेम से अन्य धर्म के लोग क्या यह नहीं सोचेंगे कि राजनेताओं के लिए हम तुच्छ है और हिन्दू ही प्रधान है। धर्मनिरपेक्ष देश में चुनाव धर्मप्रधान कैसे हो सकता है।

    लेकिन सवाल यहां पर यह भी है कि गुजरात के चुनाव में असद्दुदीन क्यों कूदे? क्या इसलिए की मामला हिन्दू होने का था? या इसलिए कि मामला बीजेपी से जुड़ा था? असद्दुदीन ने कहा है कि हिन्दू कहलाना बीजेपी के लिए गर्व की बात है लेकिन खुद को मुस्लिम कहने पर लोग मुझपर सवाल खड़े करते है और ऊंगलिया उठाते है।