नई दिल्ली, 11 जुलाई (आईएएनएस)| सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को हिंदू समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले पक्षों में से एक द्वारा दायर एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए कहा कि अयोध्या विवाद में अगर मध्यस्थता विफल हो जाती है, तो सर्वोच्च न्यायालय इस मामले पर प्रतिदिन सुनवाई शुरू कर सकता है। मध्यस्थता प्रक्रिया में कोई प्रगति नहीं होने की बात कहते हुए मामले को सूचीबद्ध करने के लिए गोपाल सिंह विशारद ने मंगलवार को शीर्ष अदालत में अर्जी दी।
उनके वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एस.नरसिम्हा ने मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ के समक्ष मामले का उल्लेख किया।
हिंदू दलों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने कहा कि यह विवाद पिछले 69 सालों से अटका पड़ा है और मामले को हल करने के लिए शुरू की गई मध्यस्थता का रुख सकारात्मक नजर नहीं आ रहा है।
वकील ने कहा, “11 संयुक्त सत्र आयोजित किए जा चुके हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि कोई निर्णय नहीं लिया जा सका है। यह विवाद मध्यस्थता के जरिए सुलझाना मुश्किल है।”
वहीं मुस्लिम पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि यह आवेदन मध्यस्थता की प्रक्रिया को खत्म करने का एक प्रयास है और अयोध्या विवाद को हल करने के लिए गठित मध्यस्थों की समिति की कार्यप्रणाली की हिंदू पक्षकारों की आलोचना उचित नहीं है।
न्यायमूर्ति गोगोई की अध्यक्षता वाली एक संविधान पीठ ने मध्यस्थता प्रक्रिया की प्रगति के बारे में समिति से रिपोर्ट मांगी है। अगर मध्यस्थता में कोई प्रगति नहीं देखी जाती है, तो 25 जुलाई से प्रतिदिन की सुनवाई शुरू हो सकती है।
नरसिम्हा ने तर्क दिया कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शुरू मध्यस्थता प्रक्रिया के पहले दौर में खास प्रगति नहीं हुई है।
न्यायालय ने उन्हें आवेदन दाखिल करने की अनुमति दी और कहा कि इसे सूचीबद्ध करने के लिए देखा जाएगा।
10 मई को सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यस्थता कमेटी के कार्यकाल की समयसीमा को 15 अगस्त तक के लिए बढ़ा दिया था।
तब समिति के अध्यक्ष, सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफ.एम.आई. कलीफुल्ला ने मध्यस्थता में प्रगति का संकेत दिया था और कार्य को पूरा करने के लिए समय बढ़ाने की मांग की थी।
न्यायालय ने कहा था कि जरूरत पड़ने पर मध्यस्थता प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सकता है।
अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्षकार हाशिम अंसारी के बेटे इकबाल अंसारी ने कहा, “यह मामला बहुत पुराना है और इस मुद्दे को दो महीने में हल नहीं किया जा सकता है।”
कलीफुल्ला समिति में आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू इसके अन्य सदस्य हैं।