अयोध्या में विवादित राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है। कल ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे इस केस को भूमि विवाद की तरह मानकर चलाएगा। साथ ही अब अगली सुनवाई 14 मार्च को होगी। अयोध्या विवाद भारत के धार्मिक मामलों से जुड़ा हुआ केस है। हिन्दू व मुसलमानों के बीच में राम जन्मभूमि को लेकर विवाद बना हुआ है।
इस मामले को चलते हुए काफी समय हो चुका है लेकिन अभी तक कोई स्पष्ट निर्णय नहीं हुआ है। भारत के आम लोगों का मानना है कि धर्म से जुड़ा होने के कारण अयोध्या मामले का हल जल्द ही निकाला जाना चाहिए।
जोनाथन स्विफ्ट ने कहा था कि लोगो में धर्म की भावना सिर्फ इतनी है कि वे एक दुसरे से घृणा कर सकें। एक प्रसिद्ध विचारक कोल्टन ने भी कहा है कि लोग अपने धर्म के लिए लड़ना पसंद करते है और मर-मिटने के लिए तैयार हो जाते है। कुछ लोग वास्तव मे धर्म के लिए ही जीते है।
भारत को एक ऐसा देश माना जाता है जो सर्व धर्म समभाव (सभी धर्मों के सम्मान) की विचारधारा को अपनाता है। भारत खुद को विविधता में एकता वाला राष्ट्र मानता है। लेकिन अयोध्या विवाद को देखकर ऐसा लगना प्रतीत नहीं होता है। हिन्दू व मुसलमानों के बीच में मंदिर-मस्जिद विवाद की वजह से कई लोगों की जान तक जा चुकी है।
इस मुद्दे पर राजनीतिक दल सिर्फ रोटियां सेक रहे है। जहां भारत खुद को सभी धर्मों की रक्षा करने वाला मानता है वहीं हिन्दू व मुसलमानों के बीच में अयोध्या विवाद महत्वपूर्ण है।
अयोध्या से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य
6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद जो साम्प्रदायिक दंगा पूरे देश मे हुआ था वो अब भविष्य में कभी भी नहीं होना चाहिए। समस्या के एक तर्कसंगत विश्लेषण के लिए इतिहास को जानना बेहद जरूरी है। इतिहास के अनुसार मुगल सम्राट बाबर की ओर से मुगल सेना के सैनिकों द्वारा इस्तेमाल के लिए, जनरल मीर बाकी द्वारा 15 वीं शताब्दी के दौरान बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था।
बाबर ने दिल्ली साम्राज्य के शासक राजा इब्राहिम लोढ़ी के खिलाफ युद्ध लड़कर उसे हरा दिया था। बाबर सिर्फ एक मुगल राजा था। वह न तो एक इस्लामी मिशनरी था और न ही एक मुस्लिम नायक था। लेकिन कुछ राजनीतिक दलों द्वारा उसकी गलत कल्पना की जाती है। भारतीय मुसलमानों ने बाबार के प्रति वफादारी निभाते हुए अयोध्या में उनके नाम की मस्जिद बनाई थी।
लेकिन भारत के प्राचीन महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या में भगवान राम जन्मभूमि है। भगवान राम एक विशेष समुदाय के पूजनीय न होकर संपूर्ण मानवता के लिए पूजनीय थे।
इसलिए बाबर व राम के बीच तुलना करके मामले को धार्मिक तूल देने का कोई मतलब नहीं है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राजनीतिक दल इस मुद्दे को लेकर अशांति फैला रहे है।
अयोध्या विवाद का हल
अयोध्या विवाद का हल निकालने के लिए सौहार्दपूर्ण समाधान खोजना आवश्यक है। हिन्दू व मुसलमानों के बीच शांति के द्वारा आपसी बातचीत से इसका हल निकाला जा सकता है। मार्च 2002 में विश्व हिंदू परिषद के नेताओं ने घोषणा की थी कि वे अगले शिवरात्रि से पहले विवादित स्थल पर मंदिर का निर्माण शुरू करना चाहते है।
इतना ही नहीं इस संगठन ने तो यह तक कहा हुआ है कि इस मामले में उन्हें कोई भी न्यायिक फैसला स्वीकार्य नहीं होगा क्योंकि ये मामला उनके विश्वास से जुड़ा हुआ है।
दूसरी ओर, बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के नेताओं ने अदालत के फैसले की पालना की इच्छा व्यक्त करते हुए कहा कि वे विवादित स्थल पर मस्जिद के पुनर्निर्माण के लिए अपनी योजनाओं में कोई समझौता नहीं करेंगे।
अभी तक दोनों ही समुदाय के लोग सकारात्मक बातचीत पर नहीं आए है। अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री बने थे उस समय भी अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण का मुद्दा काफी उठा था। अब नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में भी इस मुद्दे को काफी उठाया जा रहा है।
इस मामले का सर्वोतम हल दोनों समुदायों के बीच वार्ता समझौता ही है। क्योंकि न्यायिक फैसले में एक पक्ष को जीत व दूसरे पक्ष को निराशा हाथ लगेगी। जिससे बड़े पैमाने पर धर्म विशेष के लिए कडवाहट व निराशा पैदा हो सकती है।
अयोध्या में राम-जन्मभूमि विवाद की जगह पर शांति और अंतर-धार्मिक सद्भाव के लिए दोनों समुदायो को राष्ट्रीय स्मारक के निर्माण में सहयोग करना चाहिए। इस विवादित स्थल पर दोनो समुदायों के लोगों की भावनाओं का पालन करना चाहिए।
यहां पर दोनों धर्मों के लिए स्मारक बना देना चाहिए। शांति के सभी लोगों के लाभ के लिए पुस्तकालय और अनुसंधान केंद्र की मूल सुविधाएं भी हो सकती है।
“राम मंदिर” और “बाबरी मस्जिद” को शांति के राष्ट्रीय स्मारक के रूप मे यहां इमारत का निर्माण करना चाहिए ताकि इससे दोनो धर्मों के लोगो की भावनाओं को ठेस न पहुंचे और देश की राष्ट्रीय भावना बनी रहे।