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    अयोध्या मामले,कपिल सिब्बल

    सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या में रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद ढांचा गिराए जाने के 25 वे वर्षगाँठ के पहले यानी आज रंजनभूमि और बाबरी मस्जिद स्वामित्व विवाद पर अंतिम सुनवाई शुरू हो चुकी है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा न्यायमूर्ति अशोक भूषण और जस्टिस एस अहमद नाजीर की तीन सदस्य विशेष पीठ चार दीवानी मुकदमे में इलाहबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के 13 अपीलों पर सुनवाई कर रही है। इलाहबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में अयोध्या विवादित स्थल की सुनवाई में विवादित जमीन को हिन्दू महासभा, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बाँट दिया था।

    इस बीच उत्तर प्रदेश के सिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष ने इस विवाद के समाधान के लिए कोर्ट से कहा था कि अयोध्या से उचित दुरी पर मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है। जहा मस्जिद का निर्माण किया जा सकता है। अखिल भारतीय सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े का प्रतिनिधित्व कर रहे कपिल सिब्बल, अनूप जार्ज चौधरी, राजीव धवन और सुशिल जैन कर रहे है। वहीं अयोध्या रामलला के तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता के परासरण और सी एस वैदयनाथन और सौरभ शमशेरी पेश हुए है। उत्तर प्रदेश सरकार को ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता दलील दे रहे है।

    सिब्बल ने कोर्ट में कहा कि जब भी इस मामले पर कोर्ट में सुनवाई होती है तो बाहर गंभीर प्रतिक्रियाए उत्पन्न हो जाती है। इसलिए कानून और वयवस्था बांये रखने के लिए वह खुद गुजारिश कर रहे है इस मामले की सुनवाई जुलाई 2019 में मुक्कमल कर दी जाए। उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ आये अधिवक्ता तुषार मेहता ने सिब्बल के सभी कथनो को ख़ारिज हुए कहा कि सभी संबंधित दस्तावेज और अपेक्षित अनुवाद प्रतियां रिकॉर्ड में हैं।

    वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड के प्रतिनिधि कपिल सिब्बल ने तुषार मेहता के अभियुक्तों पर संदेह जाहिर किया है। सिब्बल ने कहा कि 19000 हजार पन्नो का दस्तावेज इतने काम समय में फाइल कैसे हो गए। कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उन्हें और अन्य याचिकर्ताओं को प्रासंगिक दस्तावेज नहीं दिए गए है। एक पक्ष के सबूतों के मद्देनजर फैसले पर सुनवाई संभव नहीं है। इसलिए सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से 2019 तक का समय माँगा है।