विवादित राम जन्मभूमि अयोध्या मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो सकती है।
2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद केस की सुनवाई करते हुए विवादित जमीन को तीन हिस्से में बांटने का फैसला सुनाया था।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक हिस्सा रामलला को, एक हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को और एक हिस्सा मुस्लिमो को देने का फैसला सुनाया था।
जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय कृष्ण कॉल और जस्टिस के.एम. जोसेफ के बेंच आज इस मामले पर सुनवाई कर सकती है।
इससे पहले 27 सितम्बर को एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के उस फैसले को 5 जजों की बेंच को भेजने से इंकार कर दिया था जिसमे कहा गया था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम में जरूरी नहीं है, नमाज कहीं भी पढ़ा जा सकता है यहाँ तक कि खुले में भी।
1994 के इस फैसले के खिलाफ मुस्लिम समाज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी कि मस्जिद को इस्लाम से अलग नहीं किया जा सकता, और उन्होंने इस फैसले को पुनर्विचार के लिए इसे 5 जजों की बेंच के पास भेजने का अनुरोध किया था। इस मामले में बीते 27 सितम्बर को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने 2:1 की बहुमत से फैसला सुनाया था।
गौरतलब है 1994 में मुस्लिम पक्षकार मो इस्माइल फारुखी ने कोर्ट में अपील की थी कि विवादित भूमि पर मस्जिद थी इसलिए ये भूमि मुस्लिमो को दी जाए ताकि वो नमाज पढ़ सके। इसके खिलाफ हिन्दू पक्षकारों ने आपत्ति जताते हुए कोर्ट का रुख किया था।
इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया था कि इस्लाम में मस्जिद में नमाज जरूरी नहीं है, नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है।
इसके बाद 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित भूमि को 3 हिस्सों में बाँटते हुए हिन्दुओं को पूजा करने की अनुमति दी थी और यथास्थिति बरकार रखने का निर्णय सुनाया था। उसके बाद मुस्लिम पक्षकारों ने इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की थी।