चीन की अमेरिका से छिड़ी व्यापार जंग का असर अब रंग दिखाने लगा है। अमेरिका से निर्यात सामान से किनारा कर चीन अन्य देशों में यह विकल्प तलाशने लगा है। भारत एक उभरता हुआ बाज़ार है जहां चीन की पैठ बनी हुई है।
हाल ही में अमेरिका ने कहा था कि दो वैश्विक आर्थिक ताकतों के मध्य द्वन्द से भारत जैसे राष्ट्रों को फायदा होगा। क्या वाकई चीन में अमेरिका की जगह भारत ले सकता है?
चीन का सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में भारत और चीन के मध्य व्यापार के नफा-नुकसान के बाबत वांग हियो के लेख में चीन और भारत के व्यापार के मापदंड को समझाया है। इससे यह समझने में गुरेज नहीं करनी चाहिए कि चीन का भारत की तरफ व्यापारिक झुकाव बढ़ रहा है। लेखक ने कहा कि चीन को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में प्रवेश के लिए भारत के द्वार से होकर ही गुज़ारना होगा। उन्होंने कहा भारत और चीन विश्व की दो सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश है और एशिया की दो निर्णायक अर्थव्यवस्थाएं है।
लेख वांग ने कहा कि चीन और भारत प्राचीन सभ्यता से संबंध रखते हैं और दोनों पड़ोसी देशों के मध्य दोस्ती का एक अलहदा इतिहास है। एक इतिहास जो साल 1962 के युद्ध के जख्मों को कुरेदता है। बहरहाल उन्होंने कहा दोनों राष्ट्र ब्रिक्स, एससीओ और आरसीईपी के सदस्य देश है। दोनों राष्ट्रों की कुल जनसंख्या विश्व की जनसंख्या के 35 फीसदी है और सकल घरेलू उत्पाद विश्व का 20 फिसद है।
वांग हियो ने बताया कि साल 2014 (भारत में भाजपा के सत्ता में आने) के बाद भारत और चीन के मध्य व्यापार और आर्थिक संबंधों का विस्तार हुआ है। साल 2017 में दोनों राष्ट्रों के बीच 84.4 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ है जो साल 2016 से 20.3 प्रतिशत ज्यादा है। चीन साल 2017 के अंत तक भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार बना हुआ है। चीनी निवेशकों ने भारतीय बाज़ार में आठ बिलियन डॉलर का निवेश किया है।
चीन के फायदे बताते हुए लेखक वांग ने कहा कि भारत उभरता हुआ बाज़ार है जो चीनी निवशकों के निशाने पर सटीक बैठता है। दक्षिण एशिया में विस्तार के लिए चीनी निवेशक भारतीय बाज़ार का सहारा ले सकते हैं। चीन के समक्ष मज़बूत बुनियादे ढाँचे हैं जिनकी कमी भारत में खलती है।
वांग हियों ने बताया कि चीन और भारत के सहयोग से दोनों राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय रणनीति को साध सकते हैं। उन्होंने बताया कि चीन और भारत दोनों मुल्क मुक्त व्यापार के पक्षधर है। बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली और विश्व व्यापर संघठन में सुधार के लिए दोनों राष्ट्रों को सहयोग के स्तर को बेहतर करना होगा। भारत में चीनी स्मार्टफोन अपने पाँव पसार रहा है इस वर्ष चीनी निवेशकों ने 53 फीसदी शेयर बढाकर 57 फीसदी कर दिया है। मसलन चीनी स्मार्टफोन कंपनी ओप्पो ने 300 मिलियन डॉलर का निवेश कर भारत को उत्पादन का दूसरा हब बना लिया है। जिसमे भारत के 30000 नागरिकों को नौकरियां मिली है।
ओप्पो के साथ ही अलीबाबा जो भारत की फ़ूड डेलिवर कंपनी ज़माटो की स्टॉकहोल्डर बन गयी है और तन्सेंट अब भारत की चैटिंग एप्प हाइक के साझेदार है। वांग हियो ने बताया कि दोनों मुल्कों के मध्य व्यापार और आर्थिक सहयोग अभी कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। दोनों मुल्कों की सरकारों को एक-दूसरे का भरोसा जीतना होगा और परिवर्तन से ही भारतीय व्यापार के संसार में खुशहाली पनपेगी।
लेखक वांग हियो ने कहा कि दोनों मुल्कों को द्विपक्षीय निवेश संधि और मुक्त व्यापार के बाबत बातचीत करनी चाहिए। आला अधिकारियों की बैठकों से विश्वास बढ़ेगा। व्यापार के पर्यावरण को दुरुस्त करने के लिए दोनों राष्ट्रों को साझा कार्य करना चाहिए। भारत को चीनी की निजी और सरकारी कंपनियों को भारतीय बाज़ार में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। भारत और चीन को बेल्ट एंड रोड परियोजना के तहत सहयोग के नए मॉडल को खोजकर, उन्हें समृद्ध बनाने की कोशिश करनी चाहिए।