अमेरिका ने नए एच-1 वीजा नियम का ऐलान किया है, जिसमे अमेरिकी यूनिवर्सिटी से शिक्षित विदेशी कर्मचारियों को प्राथमिकता दी जाएगी। यह निर्णय भारत और चीन जैसे देशों से उच्च शिक्षा हासिल करने वाले पेशेवरों को प्रभावित कर सकता है। भारतीय आईटी क्षेत्र में एच-1 वीजा काफी लोकप्रिय है, यह एक गैर अप्रवासी वीजा है जिसके तहत अमेरिकी कंपनियां विदेशी कर्मचारियों को रोजगार मुहैया करती है।
इसके आलावा आवेदनकर्ताओं के लिए इलेक्ट्रॉनिक रजिस्ट्रेशन को भी लांच किया गया है। गुरूवार को फ़ेडरल रजिस्टर में प्रकाशित नए नियन को 1 अप्रैल से लागू किया जायेगा। यूएससीआईएस के निदेशक फ्रांसिस सिस्सना में कहा कि “यह साधारण और उपयुक्त बदलाव कर्मचारियों के लिए सकारात्मक फायदेमंद होंगे, विदेशी कर्मचारियों और एजेंसी को एच-1 वीजा कार्यक्रम पहले से बेहतर मदद कर पायेगा।
इस माह की शुरुआत में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा था कि वह एच-1 वीजा प्रणाली में कुछ बदलाव करना चाहते हैं, ताकि वीजा होल्डर देश में निवास कर सके और नागरिकता के मार्ग पर अग्रसर हो सके। नई पंजीकरण प्रणाली के लागू होने के बाद, कर्मचारियों का खर्च घाट जायेगा और सरकार की दक्षता को बढ़ाएगा।
फ्रांसिस सिस्सना ने कहा कि यूएससीआईएस डोनाल्ड ट्रम्प के लक्ष्य को हासिल करने के लिए आप्रवासी नीति में सुधार कर रहा है। इसे आसान प्रक्रिया में तब्दील किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि “इसका परिणाम यह होगा कि अमेरिका में उच्च डिग्री और मास्टर डिग्री हासिल करने वालो के लिए एच-1 वीजा हासिल करने की संभावनाएं बढ़ जाएगी।
1 अप्रैल से लागू होने के बाद यूएससीआईएस सबसे पहले एच-1 बी वीजा आवेदनकर्ताओं का चयन करेगा। इस बदलाव से अमेरिका में उच्च डिग्री हासिल करने वालों की संख्या में 16 प्रतिशत का इजाफा होगा। साल 2020 के लिए यूएससीआईएस 1, अप्रैल 2019 से आवेदन स्वीकार करना शुरू करेगा।
एच-1 वीजा तीन वर्षों के लिए मानी होता है और इसे तीन सालों के अधिकतम रिन्यू किया जा सकता है। सालाना एच-1 वीजा 65 हज़ार लोगों को मुहैया किया जाता है और 20 हज़ार अमेरिकी संस्थानों में उच्च शिस्क्षा हासिल करने वालों के लिए संरक्षित रखा जाता है।