अफगानिस्तान की जंग को खत्म करने के लिए तालिबान से अमेरिका की वार्ता की ईरान ने निंदा की है। उन्होंने कहा कि “वांशिगटन चरमपंथियों का कद बढ़ा रहा है।” विदेश मंत्री जावेद जरीफ ने बताया कि “ईरान भी तालिबान से बातचीत कर रहा है लेकिन चरमपंथियों के साथ समझौते के लिए दबाव बनाना बिलकुल गलत है।”
उन्होंने कहा कि “यह सभी को अलग करने की कोशिश है और तालिबान से सिर्फ बातचीत करना, सरकार को अलग-थलग करना है, क्षेत्र को अलग और सभी को अलग करना है और इससे कुछ हासिल नहीं होगा। आप तालिबान की तरफ से की जा रही बयानबाजी को देख सकते हैं।”
न्यूयॉर्क की एशिया सोसाइटी में जावेद जरीफ ने कहा कि “मैं पहले कहना चाहता हूँ कि अफगानिस्तान में किसी भी तरह की शान्ति के लिए तालिबान को अलग थलग नहीं किया जा सकता है। आप अफगानिस्तान के भविष्य के बाबत तालिबान सेबातचीत नहीं कर सकते हैं। तालिबान अफगान समाज के बस एक भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं, न की सभी का करते हैं।”
अमेरिका के राष्ट्रपति अफगानिस्तान की जंग का निपटान करने के लिए आतुर है और वांशिगटन इस जंग में 11 सितम्बर 2001 को हुए हमले के बाद कूदा था। क़तर में अमेरिका के विशेष सचिव जलमय खलीलज़ाद में तालिबान के साथ कई स्तर की बातचीत की थी
ख़बरों के मुताबिक, अमेरिका अफगान से सभी सैनिको की वापसी के लिए राज़ी हो गया था और इसके बदले तालिबान ने अपनी सरजमीं पर विदेशी चरमपंथियों को न आने देने का वादा किया था। तालिबान निरंतर अफगान सरकार से बातचीत करने के लिए इंकार करता रहा है।
अमेरिका के साथ रिश्तों में खटास के बावजूद शुरुआत में तालिबान पर अमेरिकी आक्रमण पर चुप था। अफनिस्तान में साल 1996 से 2001 तक तालिबान की मुल्क में सरकार थी। शिया बहुल ईरान ने साल 1998 में तालिबान के साथ जंग शुरू की थी जब अफगान के मज़ार ए शरीफ अफगान शहर में उनके दूतावास पर हमला किया गया था। हालाँकि अब ईरान तालिबान के साथ सम्बन्ध बनाते दिख रहा है।