अमेरिका और तालिबान के अधिकारी अफन शांति समझौते के सभी सिद्धांतों पर रजामंद हैं। इस प्रस्ताव में चरमपंथियों ने अफगानी सरजमीं का इस्तेमाल आतंकवादियों को न करने देने का आश्वासन दिया है। साथ ही तालिबान अपनी अफगानी सरजमीं का आतंकवादियों के संरक्षण करेगा। 28 जनवरी को न्यूयॉर्क टाइम में यह खबर प्रकाशित हुई थी।
तालिबान के साथ समझौता
यह समझौता इस बात की ओर इंगित करता है कि जंग से जूझ रहे देश से अमेरिका अपनी सेना को वापस बुला लेगा। रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान अफगानिस्तान सरकार के साथ बातचीत करेगा। यह समझौता तालिबान के साथ शांति समझौते के करीब पंहुचने का एक बहुत बड़ा कदम है। अफगानिस्तान में दो दशकों से चल रहे युद्ध को अमेरिकी सरकार अब खत्म करने के इच्छुक हैं।
अलबत्ता इस दौरान तालिबान ने अफगानिस्तान के सैनिकों पर कई हमले किये हैं। तालिबान का अफगान में आधे से अधिक भाग पर नियंत्रण हैं। अमेरिका के विशेष राजदूत ज़लमय खलीलजाद कई मौकों पर तालिबान के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर चुके हैं। हाल ही में क़तर में मुलाकात हुई थी, जहां चरमपंथियों का राजनीतिक ऑफिस हैं।
अर्थपूर्ण बातचीत
अफगानिस्तान के युद्ध में अमेरिका 9/11/2001 के हमले के बाद कूदा था। तालिबान ने ओसामा बिन लादेन को संरक्षण प्रदान कर रखा था। शनिवार को ज़लमय खलीलजाद ने कहा कि दोहा में छह दिनों की बातचीत के बाद मैं अफगानी सरकार के साथ चर्चा के लिए अफगानिस्तान जा रहा हूँ। बीती बैठकों के लिहाज से यह वार्ता काफी फलदायी रही है। हमने कई मसलों पर सार्थक प्रगति हासिल की है।
उन्होंने कहा की हम इसका तेज़ी से निर्माण करेंगे और जल्द ही बातचीत करेंगे। कई मसलों पर अभी कार्य करना शेष है। जब तक सभी रजामंद नहीं है तो कोई भी राज़ी नहीं है और इन सब में आंतरिक अफगानी वार्ता और व्यापक सीजफायर शामिल होगा।
नवम्बर में नाटो के द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अशरफ गनी की सरकार का प्रभाव या नियंत्रण 65 फीसदी जनता पर है लेकिन अफगानिस्तान के 407 जिले ही अफगान सरकार के पास है। तालिबान के दावे के मुताबिक वह देश के 70 फीसदी भाग पर नियंत्रण करता है।