डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन ने कंपनियों और व्यक्तियों को एच -1 बी वर्क वीजा प्राप्त करने के नियमों को अधिक कड़ा कर दिया है। ट्रम्प प्रशासन के नए नियमों से सबसे ज्यादा प्रभावित भारतीय आईटी कंपनियां होगी। एच -1 बी वीजा से ग्रीन कार्ड तक को प्राप्त करने में भारतीय लोगो को मुश्किले होगी।
अमेरिकी नागरिकता और आव्रजन सेवाओं द्वारा 22 फरवरी को जारी एक नीति ज्ञापन के मुताबिक अब वे एच -1 बी वीजा देने के लिए जांच को अधिक कड़ा करेंगे। नई नीति के मुताबिक भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों को साबित करना होगा कि जिस नौकरी या कार्य के लिए एच-1बी वीजा पर कुशल कारीगर को बुलाया जा रहा है वो विशिष्ट प्रकार की योग्यता रखता हो और उसे बुलाना बेहद जरूरी हो।
अमेरिका में एच-1 बी वीजा जारी करना अमेरिकी नागरिकता और आव्रजन विभाग को है। इस वीजा अवधि को अब तीन साल से कम भी किया जा सकता है। पहले अमेरिका इस वीजा अवधि को तीन साल के लिए जारी करता था। अमेरिका अब इस वीजा को देने के लिए पहले विस्तृत दस्तावेज और भारतीय फर्मों की अधिक जांच करेगा।
एच-1 बी वीजा को तीन साल अधिक लंबी अवधि तक बढाया जा सकता है। इसके लिए उनसे कुछ प्रश्न पूछे जाते है। ट्रम्प प्रशासन ने पिछले एक साल से एच -1 बी वीजा एक्सटेंशन की प्रक्रिया को और अधिक मुश्किल कर दिया है। नए नियमों का अर्थ यह है कि अब भारतीय आईटी कंपनियों को अब तीन साल के लिए एच-1 बी वीजा आसानी से नहीं मिल पाएगा।
आईटी एसोसिएशन नासकॉम के अध्यक्ष आर चंद्रशेखर ने कहा कि यह नियम योग्यता और कार्यों के बीच संबंध स्थापित करने के लिए व्यावहारिक रूप से आव्रजन अधिकारी के लिए काफी जटिल होगा। इसके लिए कागजी कार्यवाही भी अधिक होगी।
भारतीय वीजा आवेदकों की संख्या में 50% की गिरावट
न्यूयॉर्क स्थित लॉ फर्म साइरस डी मेहता एंड एसोसिएट्स के प्रबंध वकील साइरस डी मेहता ने कहा कि नई नीति से एच -1 बी वीजा श्रमिकों के मालिकों को पहले काफी विस्तृत दस्तावेज प्रस्तुत करना होगा। काम के आदेशों में अधिक विवरण या लाभार्थियों के काम की नियुक्ति के बारे में अधिक दस्तावेज देने होंगे।
सभी प्रमुख आईटी कंपनियां स्थानीय नौकरियों को बढ़ाने की योजना बना रही है। पिछले दो वर्षों में भारतीय आईटी कंपनियों द्वारा दायर किए गए वीजा आवेदनों की संख्या में 50% की कमी आई है।