लोक सभा चुनावों को मद्देनज़र रखते हुए भाजपा अध्य्क्ष अमित शाह 9 जुलाई को चेन्नई जायेंगे। वहां वे आगामी चुनावों से संबंधित मुद्दों पर कार्यकर्ताओं और पार्टी के अन्य नेताओं से मिलेंगे। भाजपा अध्यक्ष चेन्नई समेत तमिलनाडु, पुडुचेरी और अंडमान और निकोबार द्वीप के लगभग 10000 बूथ स्तर की समिति को संबोंधित करेंगे।
अटकले ये लगाई जा रही है कि भाजपा इसके द्वारा दक्षिण भारत में अपना शक्ति प्रदर्शन कर सकती है।
हालाँकि पिछले माह ही भाजपा प्रमुख केरल भी गये थे वहां उन्होंने पार्टी के आंतरिक मुद्दे सुलझाये जिनमे से सबसे बड़ा यानी केरल में भाजपा अध्यक्ष के पद का रिक्त रहना।
इससे ये बात तो साफ़ होती है कि पार्टी अब किसी भी हालात में अपनी तैयारियां कम नहीं रखना चाहती। इसी के प्रारूप में अमित शाह समेत पार्टी के कई दिग्गज नेता कमर कस तैयार हो चुके है। पूर्वोत्तर के नुकसान की भरपाई के लिए भाजपा दक्षिण में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहती है।
वर्तमान में भाजपा दक्षिण में 129 में से 21 सीटों पर काबिज़ है पर वह यह आंकङा अवश्य बढ़ाना चाहेगी। अगर उसे खुद के दम पे सरकार बनानी है तो उसे काफी कड़ी मशक्कत भी करनी होगी। दक्षिण में कोई मुख्या चेहरा ना हो पाने की वजह से अब सारी ज़िम्मेदारी पार्टी की आला कमान पे आगई है।
सीटों के हिसाब में देखा जाए तो तमिल नाडु इस लिहाज़ में काफी आगे है।
भाजपा राष्ट्रीय महासचिव पी मुरलीधर राव एक वार्तालाप में कहते है कि पिछले कुछ सालों में भाजपा की छवि खराब हुई है। अन्य पार्टी जैसे डीएमके और अआईएडीएमके भाजपा को तमिल विरोधी पार्टी बताते रहे है। इससे पार्टी की छवि पे खासा प्रभाव पड़ा है।
इसी की आपुर्ति में आला कमान काफी सतर्क हो गया है। शाह के दौरे का मकसद यही बताया जा रहा है।
कर्नाटक में भाजपा की 17 सीटे है। और हाल ही में हुए चुनाव में स्पष्ट बहुमत ना मिलने से पार्टी काफी प्रभावित है। परिणाम स्वरुप कर्नाटक में कांग्रेस ने जोड़ तोड़ की राजनीती कर जेडी (एस) के साथ सरकार बना ली।
भाजपा का लिंगायत कार्ड भी विफल रहा। बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री का दावेदार बनाने का फैसला उसके लिए लाभदायक साबित नहीं हुआ। परिणाम स्वरुप उसे लिंगायत वोटो के लिए भी कड़ा संघर्ष करना पड़ा।