नई दिल्ली, 2 मई (आईएएनएस)| जकार्ता एशियाई खेल और एशियाई चैम्पियनशिप-2019 में देश के लिए स्वर्ण पदक जीतने वाले मुक्केबाज अमित पंघल के निजी कोच अनिल कुमार का नाम ‘नियमों’ का हवाला देकर लगातार दूसरे साल द्रोणाचार्य पुरस्कारों के लिए नहीं भेजा गया।
भारतीय मुक्केबाजी महासंघ की दलील है कि अनिल कुमार कैम्प के कोच नहीं हैं और इस कारण वह द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए योग्य नहीं हैं। बीएफआई ने इस साल संध्या गुरुंग और शिव सिंह का नाम प्रस्तावित किया है, जो उसके मुताबिक कई दशक से मुक्केबाजी को अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
तो क्या देश के लिए सम्मान हासिल करने वाले किसी खिलाड़ी का कोई भी निजी कोच द्रोणाचार्य पुरस्कारों के लिए योग्य नहीं है और क्या अब तक किसी भी खिलाड़ी के निजी कोच को द्रोणाचार्य पुरस्कार नहीं मिला है। आंकड़े चौंकाने वाले हैं क्योंकि दर्जनों ऐसे नाम हैं, जो खिलाड़ियों के निजी कोच के तौर पर द्रोणाचार्य पुरस्कार हासिल कर चुके हैं।
द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए योग्यता मानकों में इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि किसी भी खिलाड़ी के निजी कोच को इस पुरस्कार के लिए नामांकित नहीं किया जा सकता। इसमें इसका भी कोई जिक्र नहीं कि सिर्फ किसी प्रतियोगिता के दौरान लगने वाले कैम्प में शामिल कोच ही इस पुरस्कार के लिए योग्य होंगे। तो फिर अनिल कुमार कैसे अयोग्य हुए?
द्रोणाचार्य पुरस्कार वर्षों से मिल रहे राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों का अभिन्न हिस्सा रहा है। ऐसे अनगिनत मौके आए हैं जब खिलाड़ियों की उपलब्धि के लिए उसके निजी कोच को द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। खुद खिलाड़ियों ने इन कोचों के नाम की सिफारिश की है और इन पुरस्कारों के लिए चुनी गई समिति ने उसे आत्मसात किया है।
यह किसी से छिपा नहीं है कि कुश्ती में महाबली सतपाल और रामफल को उनके प्रिय शिष्य सुशील की सफलता के लिए द्रोणाचार्य पुरस्कार मिला। रामफल बाद में योगेश्वर दत्त और फिर बजरंग पूनिया से जुड़े। इसी तरह यशबीर को योगेश्वर के कारण द्रोणाचार्य पुरस्कार मिला। कुश्ती में कैप्टन चांदरूप को विश्व कप में रजत पदक जीतने वाले उनके शिष्य रमेश भोरा के कारण यह पुरस्कार मिला।
कुश्ती में अपने शिष्य की सफलता पर द्रोणाचार्य पुरस्कार पाने वालों की सूची में एक अहम नाम महावीर फोगाट का है, जिन्हें उनकी बेटी गीता और बबीता की सफलताओं के कारण यह पुरस्कार मिला।
बैडमिंटन की बात की जाए तो पुलेला गोपीचंद को उनकी शिष्या पीवी सिंधु और विमल कुमार को सायना नेहवाल के कारण द्रोणाचार्य पुरस्कार मिला। इसी तरह मुक्केबाजी में विजेंदर सिंह की सफलता पर उनके निजी कोच जगदीश प्रसाद को सम्मानित किया गया था।
हाकी में शाहबाद वाले बलदेव सिंह को सुरेंदर कौर और राजबाला की सफलताओं के कारण द्रोणाचार्य पुरस्कार मिला। वैसे बलदेव ने कई खिलाड़ियों को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया, जहां वे देश का नाम रोशन करने में सफल रहीं।
जिमनास्टिक में दीपा करमाकर के कोच बिशेश्वर नंदी को यह पुरस्कार मिल चुका है। क्रिकेट की बात करें तो ऋषभ पंत के कोच तारक मेहता और विराट कोहली के कोच राजकुमार शर्मा को भी यह पुरस्कार मिल चुका है। ऐसे सभी नामों का जिक्र सम्भव नहीं क्योंकि इनकी सूची काफी लम्बी है।
द्रोणाचार्य पुरस्कार चयन समिति में शामिल एक सदस्य ने आईएएनएस को बताया कि यह फेहरिस्त काफी लम्बी है और जब द्रोणाचार्य अवार्ड देने की बारी आती है तो नियमों को पूरी तरह ताक पर रख दिया जाता है और खुद इस समिति में शामिल लोग अपने चहेते लोगों को पुरस्कार देने की सिफारिश करते हैं।
खेल पुरस्कारों के लिए हर साल एक चयन समिति बनाई जाती है, जिसमें एक अध्यक्ष होता है, जिसका चयन खेल मंत्रालय करता है। इसके अलावा इसमें दो नामी खिलाड़ी, अलग-अलग खेलों में द्रोणाचार्य पुरस्कार पा चुके तीन कोच, दो खेल पत्रकार या कमेंटेटर, टॉप्स स्कीम के सीईओ, साई की टीम्स डिवीजन के कार्यकारी निदेशक और खेल मंत्रायय के संयुक्त सचिव होते हैं।
2017 में गठित इसी समिति के एक सदस्य ने आईएनएनएस को बताया कि द्रोणाचार्य अवार्डी के तौर पर राष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी पुलेला गोपीचंद 2017 में इस समिति के सदस्य थे और गोपीचंद ने खुद आगे आकर एथलेटिक्स के मरहूम कोच डॉ. आर, गांधी के नाम की सिफारिश की थी जबकि गांधी का योगदान एथलेटिक्स में शून्य है।
सदस्य ने अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर आईएएनएस से कहा, “चूंकी गोपी ने यह सिफारिश की थी, लिहाजा उसे मान लिया गया लेकिन कुछ सदस्यों ने कहा कि तो फिर मिट्टी की कुश्ती को कोच रहे रोशन लाल को भी लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से नवाजा जाना चाहिए। इसे भी मान लिया गया। इसमें सबकी मिली भगत थी। दरअसल, हर साल यही होता है। इस पुरस्कार के लिए काबिल एक या दो लोग ही होते हैं, शेष तो पैरवी पर यह पुरस्कार पाते हैं।”
सदस्य ने कहा कि द्रोणाचार्य पुरस्कारों के लिए बनाए गए योग्यता मानकों में बदलाव होना चाहिए क्योंकि इससे खिलाड़ियों के निजी कोचों के साथ लगातार अन्याय होता आ रहा है। सदस्य ने कहा, “अमित पंघल बस एक उदाहरण है। उसका कोच द्रोणाचार्य के लिए योग्य है लेकिन चूंकी फेडरेशन को किसी और का नाम आगे करना है, लिहाजा नियमों के हवाला देकर उसे नजरअंदाज किया गया जबकि उसके शिष्य ने बीते साल भी एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलोंे में पदक जीता था।”
सदस्य ने यह भी कहा कि द्रोणाचार्य पुरस्कारों के लिए सबसे अधिक घपलेबाजी होती है। खिलाड़ी को अपने कोच का नाम आगे करने की आजादी नहीं दी जाती क्योंकि उसे नियमों में बांध दिया जाता है और फिर संघ अपने मन से लोगों का नाम आगे करते हैं और फिर लॉबिंग का सिलसिला शुरू होता है। सदस्य ने कहा, “चयन समिति में शामिल कई लोग कुछ अयोग्य लोगों के नाम पर असहमत होते हैं लेकिन बहुमत नहीं होने के कारण वे कुछ नहीं कर पाते। हर साल यही होता है और आगे भी होता रहेगा। यह सिलसिला रुकना चाहिए।”