अफगानिस्तान में शांति प्रयासों को लेकर पाकिस्तान ने ड्राइविंग सीट पकड़ ली है और चीन उसका भरसक सहयोग कर रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान ने कहा कि इस्लामाबाद अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया के लिए अपनी ताकत झोंक देगा। उन्होंने कहा कि अमेरिका और तालिबान के मध्य बातचीत के लिए यूएई में बैठक का आयोजन किया गया था, ताकि इस 17 वर्षों के इस विवाद का अंत किया जा सके।
अधिकारीयों के मुताबिक अमेरिका और तालिबान के प्रतिनिधि इस बैठक से पूर्व दो बार क़तर में मुलाकात कर चुके हैं लेकिन यह पहली बार है, जब अमेरिका और तालिबान ने दोहा के बाहर बातचीत की है। दोहा में विद्रोही समूह का विभाग है।
इमरान खान ने अमेरिका और तालिबान की यूएई में हुई बातचीत में पाकिस्तान के अलहदा किरदार के बाबत बताया था। उन्होंने शांति की अपनी कामना का इजहार किया है और अफगानी जनता के कष्टों का अंत करने की दुआ मांगी है। इमरान खान ने ट्वीटर पर कहा कि अबू दाभी में पाकिस्तान और तालिबान के मध्य बातचीत में पाकिस्तान ने मदद की है।
उन्होंने कहा कि दुआ कीजिये, यह शांति की पहल कारगर सिद्ध हो और तीन दशकों से जंग की आग में पिसती अफगानी जनता को आज़ादी मिले। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया के लिए अपनी ताकत का पूरा इस्तेमाल करेगा।
साल 1996-2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार रही थी। केवल सऊदी अरब, यूएई और पाकिस्तान ने तालिबान की सरकार को मान्यता दी थी।
अफगानिस्तान में बीते 17 वर्षों से जारी जंग की समाप्ति के लिए अमेरिकी अधिकारी सोमवार को तालिबान के साथ वार्ता के लिए मुलाकात की थी। इस बैठक में अफगानिस्तान के अधिकारी उपस्थित नहीं होंगे। तालिबान ने अफगान सरकार के साथ सीधे बातचीत के लिए इनकार दिया था। उन्होंने कहा कि अफगान सरकार अमेरिका के हाथों की कटपुतली है और तालिबान ने सिर्फ अमेरिकी अधिकारियों से बातचीत को हामी भरी थी।