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    जिरगा के आयोजन में अफगानी महिलाएं

    अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी द्वारा आयोजित भव्य परिषद् में बगैर शर्त के संघर्षविराम की मांग की गयी है। अमेरिका ने क़तर की राजधानी दोहा में तालिबान के साथ छठे स्तर की शान्ति वार्ता की शुरुआत की है। इस परिषद् में 3200 से अधिक प्रतिभागी थे। काबुल में चार दिवसीय आयोजन में तालिबान को आमंत्रित नहीं किया गया था जिसका समापन शुक्रवार को होगा।

    जिरगा का आयोजन

    इस परिषद् में दिग्गज अफगानी मौजूद थे लेकिन गनी के सरकार साझेदार के आला नेता अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह और पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने इस समारोह का बहिष्कार किया था। उन्होंने राष्ट्रपति पर आरोप लगाया कि वह 28 सितम्बर को आयोजित चुनावो में बढ़त के लिए यह स्वांग रच रहे हैं। हालाँकि राष्ट्रपति ने इन आरोपों को खारिज किया है।

    तालिबान ने गनी सरकार से सीधे बातचीत के लिए इंकार किया है और दोहा की बातचीत में भी सरकारी अधिकारी मौजूद नहीं है। तालिबान के मुताबिक, अफगानी सरकार पश्चिमी समर्थित कठपुतली है। अमेरिका की सेना ने साल 2001 में तालिबान को सत्ता से उखाड़ फेंका था और इसके बाद उन्होंने खुनी अभियान की शुरुआत की थी।

    हथियारबंद समूहों के साथ ट्रम्प प्रशासन चर्चा कर रहा है ताकि देश की सबसे लम्बी जंग का अंत किया जा सके। बुधवार को अमेरिकी शान्ति राजदूत जलमय ख़लीलज़ाद ने तालिबान के उपसंस्थपक मुल्ला अब्दुल घनी बरादर से मुलाकात की थी।

    तालिबान के लड़ाकों ने अफगान सुरक्षा सेना के भारी संख्या में सैनिको, नागरिकों और अमेरिकी सैनिको की हत्या की है। साल 2018 में 3804 नागरिकों की हत्या हुई है जो साल 2001 से सबसे अधिक भयावह है।

    महिलाओं के अधिकारों की चिंता

    जिरगा के भागीदार दर्जनों समितियों में विभाजित थे और उन्होंने कई मामलो पर चर्चा भी की थी। इसमें 18 वर्षों की जंग पर संघर्षविराम और महिलाओं के अधिकार भी शामिल थे। इस सम्मेलन का पूर्ण परिणाम शुक्रवार के बाद ही जारी  किया जायेगा।  कई समितियों के नेताओं ने कहा कि “वह हिंसा पर तत्काल रोक को देखना चाहते हैं।”

    जिरगा की समितियों में से एक के प्रमुख मोहम्मद कुरैशी ने कहा कि “हर दिन बगैर किसी कारण के अफगानो की हत्या की जा रही है। एक बगैर शर्त संघर्षविराम का ऐलान करना ही चाहिए।”

    कमिटी के सदस्य फैज़ुल्लाह जलाल ने कहा कि “हमें ऐसी शान्ति नहीं चाहिए जहां महिलाओं के अधिकार का सम्मान न हो, अभिव्यक्ति की आज़ादी सुनिश्चित न हो और चुनावो का आयोजन कभी न हो।” अफगान की महिलाओं ने शान्ति प्रक्रिया में खुद को नज़रअंदाज़ करने पर चिंता व्यक्त की है।

    अफगानी महिलाओं को भय है कि तालिबान उन पर सख्त पाबंदियों को लागू करेगा। आतंकी समूह की हुकूमत के दौरान उन्हें स्कूलों और कार्यस्थलों से दूर रखा जायेगा। इस शांति सम्मेलन में भरे संख्या में महिलाओं ने भी भाग लिया था।

    जिरगा के चेयरमैन अब्दुल रब रसूल सय्याफ ने कहा कि “इस सम्मलेन का मकसद सितम्बर के राष्ट्रपति चुनावो में किसी उम्मीदवार का समर्थन करना नहीं है।” अफगानिस्तान में लाया जिरगा सदियों पुराणी परंपरा है जो राष्ट्रीय संकट या बड़े मसलो को सुलझाने के लिए आयोजित की जाती थी।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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