अमेरिका द्वारा कांग्रेस में जारी की गयी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने अफगानिस्तान के साथ रक्षा संबंधों को गहरा करने की इच्छा व्यक्त नहीं की है, जबकि जंग से जूझ रहे देश में भारत सबसे बड़ा क्षेत्रीय साझेदार है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दक्षिण एशिया में साल 2017 में भाषण के दौरान भारत को अफगानिस्तान के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया था।
रिपोर्ट के मुताबिक, अफगान के पुनर्निर्माण में सबसे बड़ा क्षेत्रीय साझेदार भारत है लेकिन नई दिल्ली रक्षा संबंधों को काबुल के साथ गहरा करने की इच्छुक नहीं है। अफगानिस्तान में भारतीय गतिविधियों को लेकर पाकिस्तान की भी चिंताए हैं। सीआरएस की रिपोर्ट को अमेरिकी सांसद तैयार करते हैं।
सीआरएस की रिपोर्ट के अनुसार, इस सम्बन्ध में पड़ोसी देश सबसे महत्वपूर्ण पाकिस्तान को मानते हैं जो सक्रीय रहता है और दशकों से अफगानी मामलो में नकारात्मक भूमिका अदा कर रहा है। डोनाल्ड ट्रम्प ने पाकिस्तान पर सीधे तौर पर आरोप लगाए थे कि जिससे हम लड़ रहे हैं उन आतंकवादियों को पाकिस्तान ने पनाह दे रखी है।
अफगान नेता और अमेरिकी सैन्य कमांडर चरमपंथियों की अत्यधिक ताकत और दीर्घायु प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से पाकिस्तान से जुड़ी है। विशेषज्ञों में बहस है कि पाकिस्तान अफगानी स्थिरता के लिए प्रतिबद्ध है या अफगानी सरजमीं पर बाहरी नियंत्रण कायम करना चाहता है। हक्कानी नेटवर्क को अमेरिका ने विदेशी आतंकी संगठन घोषित किया था जो अब तालिबान का आधिकारिक अर्ध स्वायत्त घटक बन गया है।
अमेरिकी अधिकारी निरंतर कहते रहे हैं कि ज्ञात चरमपंथियों के लिए सुरक्षा पनाह पाकिस्तान है जो अफगानी सुरक्षा के लिए खतरा है। पाकिस्तान एक मज़बूत, एकजुट अफगान राज्य की बजाये एक कमजोर और अस्थिर अफगानिस्तान देख सकता है। काबुल में पश्तून बहुल सरकार है और पाकिस्तान में पश्तून अल्पसंख्यक है।
कुछ पाकिस्तानी नेता ही मानते हैं कि अफगानिस्तान में अस्थिरता पाकिस्तान के लिए हानिकारक हो सकती है। इस्लामाबाद खुद के पैदा किये इस्लामिक चरमपंथियों से ही जूझ रहा है। अफगानिस्तान को पाकिस्तान भारत के खिलाफ रणनीतिक तौर पर इस्तेमाल करना चाहता है। अफगानी नेतृत्व के साथ संबंधों में सुधार से भारत का अफगानिस्तान में प्रभुत्व सीमित हो सकता है।