इमरान खान ने मंगलवार को कहा कि “अफगानिस्तान में सोवियत हुकूमत के खिलाफ अमेरिका की आतंकवाद के खिलाफ जंग में साथ देने की बजाये पाकिस्तान को तटस्थ रहना चाहिए था। बीते दो दशको से अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ अमेरिकी सेना लड़ाई लड़ रही है।”
अफगान जंग में शामिल होना एक गलती
रशिया टुडे को दिए इंटरव्यू में गुरुवार को खान ने कहा कि “मुझे महसूस होता है कि पाकिस्तान को तटस्थ रहना चाहिए था क्योंकि इन समूहों में शामिल होना हमारे खिलाफ गया है। हमने 70000 लोगो को गंवाया है हमारी अर्थव्यवस्था के अरबो रूपए बर्बाद हुए हैं और आखिर में अमेरिका अफगानिस्तान में सफल न होने का कसूरवार भी हमें ठहरा रहा है। मुझे लगता है कि यह पाकिस्तान के सतह ज्यादती है।”
फाइनेंसियल एक्शन टास्क फाॅर्स की बैठक से पूर्व पाकिस्तान खुद को बचाने के लिए ऐसी बयानबाजी कर रहा है। इस्लामाबाद की आतंकवाद को खत्म करने की मूल्यांकन रिपोर्ट को निगरानी समूह अगले महीने जारी करेगा।
इंटरव्यू में खान ने कहा कि “पाकिस्तान में पैदा हुए आतंकी समूहों और अमेरिकी द्वारा वित्तपोषित आतंकवादियों को अफगानिस्तान में जिहाद को अंजाम देने के लिए रखा गया था, यह अब पाकिस्तान के खिलाफ जा रहा है। आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका की जंग में शामिल होने से हमने अपने लोगो को गंवाया है और हमारी अर्थव्यवस्था पर संकट आ गया है। जिसके कारण नकदी के संकट से जूझ रहे देश को कई देशो के समक्ष राहत पैकेज के लिए हाथ फैला पड़ा है।”
उन्होंने कहा कि “इस्लामाबाद ने मुजाहिद्दीन के आतंकवादियों को प्रशिक्षण दिया है, जिसे 1980 के दशक में अफगानिस्तान के खिलाफ युद्ध भड़काने के लिए अमेरिका की सीआईए ने वित्तपोषित किया था। युद्ध में शामिल होने के मैं सख्त खिलाफ था। 80 के दशक में इन मुजाहिद्दीन के जिहादियो को अफगानिस्तान के खिलाफ जंग के लिए भेजा गया था। पाकिस्तान में मौजूद इस समूह के लोग अब जिहाद नहीं करना चाहते, यह आतंकवाद है।”
खान ने कहा कि “आप देख सकते हैं कि अगर हम अमेरिका की 9/11 की जंग में शामिल नहीं होते तो हम विश्व का सबसे खतरनाक देश न होते।” इससे पूर्व खान ने कहा था कि “पाक सरजमीं पर भी 30 से 40 हजार आतंकवादी मौजूद है जो अफगानी और कश्मीर के विभिन्न हिस्सों में लड़ रही है। हमारी पार्टी के सत्ता में आने से पहले की सरकार को सरजमीं पर सक्रीय चरमपंथियो को खदेड़ने की राजनीतिक इच्छा नहीं थी।”