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    अफगानिस्तान का बाज़ार

    पाकिस्तान के आंतरिक आंकलन के मुताबिक अफगानिस्तान नए गृह युद्ध में शामिल हो सकता है। अमेरिका के साथ तालिबान शान्ति समझौते को मुकम्मल करने में असमर्थ रहा है। जंग से जूझ रहे देश में शान्ति की खोज अभी भी कोसों दूर हैं।

    बीते हफ्ते तालिबान और अमेरिकी अधिकारीयों ने दोहा में बातचीत की शुरुआत की थी। इस शान्ति वार्ता प्रक्रिया पर वार्ता से उनका मकसद 18 वर्षों के संघर्ष का अंत करना है। अफगान ग्रैंड कॉउन्सिल यानी लोया जिरगा की का आयोजन अफगानी राष्ट्रपति अशरफ गनी ने की थी जिसमे तालिबान के साथ शान्ति स्थापित करने के मार्गो पर चर्चा की गयी थी।

    अशरफ गनी ने रमज़ान के पाक महीने की शुरुआत से पूर्व संघर्षविराम के ऐलान करने और 175 तालिबानी कैदियों को रिहा  करने का प्रस्ताव दिया था। इस आयोजन ने शांति समझौते तक पंहुचने के नए मार्ग को खोला है लेकिन पाकिस्तान का इस मसले पर आंकलन उलट तस्वीर प्रदर्शित कर रहा है।

    अफगानी मामलो पर गठित टीम के सदस्य और आला पाकिस्तानी अधिकारी ने कहा कि “हम निराशावादी नहीं होना चाहते हैं लेकिन जमीनी हालात बयां करते हैं कि तालिबान और अमेरिका की मौज़ूदा वार्ता शांति समझौते तक पंहुचने का बेहतर अवसर है।”

    इस आंकलन में विशेष यह है कि अफगानिस्तान गृह युद्ध की तरफ बढ़ रहा है। अधिकारी ने कहा कि “वहां ऐसे तत्व मौज़ूद है जो अफगानिस्तान को अशांति की तरफ धकेलेंगे।” भव्य समारोह लाया जिरगा का कई दिग्गज अफगानी नेताओं ने बहिष्कार भी किया था।

    इसका राष्ट्रपति की सरकार के साझेदार अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह ने भी बहिष्कार किया था। तालिबान भी सरकार से सीधे बातचीत के पक्ष में नहीं है। उन्होंने कहा कि “अमेरिका का टाल-मटोल रवैया भी अफगानी दिक्कतों को जटिल कर रहा है। जिन लोगो को सालो से गुआंतामो में रखा गया था अमेरिका के सामने बैठकर शान्ति वार्ता पर चर्चा कर रहे हैं।”

    मौजूदा हालात में पाकिस्तानी विश्लेषण के मुताबिक अफगानिस्तान शान्ति समझौते की बजाये गृह युद्ध के शिकंजे ने फंस सकता है। अधिकारी ने बताया कि गृह युद्ध का मतलब कतई यह नहीं है कि तालिबान वापस काबुल लौट जायेगा सोवियत ने साल 1989 में अफगानिस्तान छोड़ने के दौरान छह सालो से अधिक समय तक तालिबान को अपने विरोधियों को कमजोर करने के लिए चयनित किया था।

    अधिकारी ने दावा किया कि “किसी भी विफलता का ठिकड़ा पाकिस्तान पर नहीं फोड़ा जा सकता है। तालिबान पर अब हमारा प्रभुत्व सीमित है।” युएई में आयोजित शुरूआती वार्ता के उलट पाकिस्तान ने दोहा बातचीत में हिस्सा नहीं लिया है लेकिन इस प्रक्रिया का आयोजन किया है।

    पाकिस्तान कई वर्षों से अफगानिस्तान की सीमा के साथ बाड़ लगाने का कार्य कर रहा है। इससे सीमा सुरक्षा की बेहतरी सुनिश्चित होगी और लोगो की अनियमित आवाजाही पर रोक लगेगी। कभी कभार चरमपंथी भी इसका फायदा उठाते हैं। यह बाड़ पाकिस्तान में अराजकता को थामेगी क्योंकि लोगो के सिर्फ चयनित बिंदुओं से ही प्रवेश करने की अनुमति होगी।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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